Manipur Violence | सुप्रीम कोर्ट ने जातीय समूहों के बीच मतभेदों को सुलझाने के लिए आयोग गठित करने की जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार किया
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (11 दिसंबर) को संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर रिट याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। उक्त याचिका में मणिपुर राज्य के तीन जातीय समुदायों, नागाओं, मैतेईस और कुकिस के बीच मतभेदों को सुलझाने में सहायता के लिए एक जांच आयोग गठित करने के निर्देश देने की मांग की गई थी।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने तीन याचिकाकर्ताओं- एक पीड़ित, एक नागरिक और एक लॉ स्टू़डेंट- द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहे थे।
पीठ ने याचिका में मांगी गई राहत को ''बहुत अस्पष्ट'' पाया।
याचिकाकर्ताओं के लिए सीनियर वकील गोपाल शंकरनारायणन ने समाधान की आवश्यकता पर बल दिया और संघर्षग्रस्त समुदायों के बीच शांति स्थापित करने का प्रयास किया।
उन्होंने कहा,
"माई लॉर्ड्स इसका कारण यह है- हमें एक कदम पीछे हटना होगा और तथ्य पर एक नजर डालनी होगी। यह न्यायालय, दुर्भाग्य से, या सौभाग्य से एक ऐसी संस्था है, जिसकी ओर हर कोई इस तरह की स्थितियों में देख रहा है...आपने अतीत में ऐसा किया है। इसीलिए मैं कह रहा हूं, एक जांच आयोग बैठते हैं और शायद इस न्यायालय का कोई पूर्व न्यायाधीश भी बैठा हो। इन समुदायों को एक मेज पर एक साथ लाने के लिए... क्योंकि यह जारी रहेगा माई लॉर्ड... आपमें विभिन्न समुदायों के प्रतिनिधि एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे होंगे, कुछ लोग सरकार पर आरोप लगा रहे होंगे। भारत के अन्य लोग सरकार पर आरोप लगा रहे हैं। नागालैंड में कोई भी यह सुनिश्चित करने का प्रयास नहीं कर रहा है कि कुछ संघर्ष विराम हो।”
न्यायालय ने अनिवार्य रूप से ऐसे आयोगों के गठन के दायरे के पहलू पर अपनी आपत्ति जताई।
सीजेआई ने टिप्पणी की कि ऐसे मामलों में शायद "राजनीतिक अधिकारियों द्वारा समाधान" की आवश्यकता होती है और न्यायपालिका के लिए पहले समिति गठित करना और फिर उसकी रिपोर्ट को लागू करना कई जटिलताएं हैं।
सीनियर वकील ने अपनी प्रार्थना के रूप में "समिति" नहीं बल्कि "आयोग" की विशिष्टता पर प्रकाश डाला।
उन्होंने आगे कहा,
"ऐसे आयोग का जनादेश सीमित है, यह कुछ भी लागू करने के लिए नहीं है।"
वकील ने यह भी बताया कि अब तक इन समुदायों के प्रतिनिधियों के बीच कोई संयुक्त बैठक नहीं हुई है।
महिलाओं के खिलाफ हिंसा की प्रकृति की जांच करने और पुनर्वास, भावनात्मक, आर्थिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक के लिए आवश्यक उपायों पर रिपोर्ट देने के लिए 7 अगस्त, 2023 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश द्वारा गठित जस्टिस गीता मित्तल की अध्यक्षता वाली 3 सदस्यीय समिति का जिक्र करते हुए मणिपुर राज्य में 4 मई, 2023 से हुई यौन हिंसा के पीड़ितों का समर्थन करते हुए सीजेआई ने कहा, “यदि आप चाहें तो आप एक विशिष्ट मुद्दे के साथ जस्टिस गीता मित्तल (समिति) के पास जा सकते हैं कि क्या हो सकता है और क्या हो सकता है। यदि वह कहती है कि मेरे पास छूट नहीं है तो हमारे पास वापस आ जाओ।”
यह तर्क देते हुए कि मित्तल समिति के पास मौजूदा उपाय से अलग जनादेश है, सीनियर वकील ने राज्य समुदायों के बीच चल रहे जातीय संघर्ष पर जोर दिया।
उन्होंने कहा,
“नागा और कुकी पहाड़ियों में हैं। उनकी संख्या कम है लेकिन उनका क्षेत्र बहुत बड़ा है। यह उन प्रमुख मुद्दों में से एक है, जो उन्हें प्रभावित कर रहा है। घाटी में मीटी लोग संख्या में अधिक हैं लेकिन उनका भूमि क्षेत्र छोटा है। यह और कई मुद्दे सूचीबद्ध हैं।
पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि यदि कोई विशिष्ट शिकायतें हैं तो उन्हें जस्टिस मित्तल की अध्यक्षता वाली समिति के ध्यान में लाया जा सकता है। पीठ ने याचिकाकर्ताओं को कानून में उपलब्ध अन्य कदम उठाने की छूट दी।
ऐसा करते हुए सीजेआई ने टिप्पणी की,
"जब तक आगे बढ़ने का कोई स्पष्ट रास्ता नहीं है, हम परिकल्पना करते हैं कि हमारे हस्तक्षेप से जमीनी स्तर पर निश्चित स्थितिजन्य बदलाव आएगा, अन्यथा क्या होता है, आप जानते हैं, उम्मीदें जगी हैं, यह अच्छी तरह से आप जानते हैं कि न्यायालय है कुछ नहीं कर रहा। यह ध्यान भटकाने वाला है, ऐसा करना कार्यपालिका की जिम्मेदारी है...हम उस रास्ते पर चल रहे हैं जिस पर हम कभी नहीं जा सकते, हमारे पास जमीन पर प्रदर्शन सुनिश्चित करने का कोई साधन नहीं है, जो केवल हमारी वैधता को प्रभावित करता है।''
केस टाइटल: युमलेम्बम सुरजीत सिंह बनाम भारत संघ, डब्ल्यू.पी.(सी) संख्या 001341 - / 2023