आरक्षण प्रदान करने के लिए परमादेश जारी नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2022-01-26 08:13 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकार को आरक्षण प्रदान करने के लिए कोई परमादेश जारी नहीं किया जा सकता है।

न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की बेंच ने पंजाब राज्य के सरकारी मेडिकल / डेंटल कॉलेजों में तीन प्रतिशत का खेल कोटा प्रदान करने के लिए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा जारी एक निर्देश को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की।

इस मामले में, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने रिट याचिकाओं की अनुमति दी और पंजाब सरकार को निर्देश दिया कि वह राज्य में सभी निजी गैर-सहायता प्राप्त गैर-अल्पसंख्यक चिकित्सा/दंत चिकित्सा संस्थान में आतंकवादी प्रभावित व्यक्तियों/सिख दंगा प्रभावित व्यक्तियों के बच्चों/पोते-पोतियों के लिए एक प्रतिशत आरक्षण/कोटा प्रदान करने वाली अधिसूचना जारी करे।

कोर्ट ने आगे निर्देश दिया कि उक्त आरक्षण / कोटा प्रबंधन कोटे की सीटों पर भी लागू होगा। इसने आगे निर्देश दिया कि नई अधिसूचना में सरकारी मेडिकल / डेंटल कॉलेजों में तीन प्रतिशत के खेल कोटा का भी प्रावधान होगा। पंजाब राज्य ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दी।

सुप्रीम कोर्ट की पीठ द्वारा विचार किया गया मुद्दा यह था कि क्या राज्य सरकार की कार्रवाई में एक विशेष श्रेणी के व्यक्तियों के लिए आरक्षण/कोटा का एक विशेष प्रतिशत निर्धारित करने का नीतिगत निर्णय लेने संबंधी रिट याचिका पर पहले से किये गये प्रावधान के अलावा किसी विशेष श्रेणी के व्यक्तियों के लिए आरक्षण का एक विशेष प्रतिशत प्रदान करने का निर्देश देने संबंधी परमादेश जारी करके हस्तक्षेप किया जा सकता है?

कोर्ट ने इस पहलू पर निम्नलिखित निर्णयों का उल्लेख किया: (i) गुलशन प्रकाश (डॉ.) और अन्य बनाम हरियाणा सरकार और अन्य, (2010) 1 एससीसी 477 (पैरा 27) में रिपोर्ट किया गया; (ii) अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और अन्य बनाम सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया एससी/एसटी कर्मचारी कल्याण संघ और अन्य, (2015) 12 एससीसी 308 (पैरा 26); (iii) सुरेश चंद गौतम बनाम उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य, (2016) 11 एससीसी 113 (पैरा 49) और (iv) मुकेश कुमार और एक अन्य बनाम उत्तराखंड सरकार और अन्य, (2020) 3 एससीसी 1 (पैरा 18 और 19) में रिपोर्ट किया गया।

कोर्ट ने कहा कि उपरोक्त निर्णयों में कहा गया है कि न्यायालय द्वारा राज्य सरकार को आरक्षण प्रदान करने का निर्देश देने वाला कोई परमादेश जारी नहीं किया जा सकता है।

पीठ ने कहा,

"यह आगे कहा गया कि आरक्षण प्रदान नहीं करने के लिए उनकी कार्रवाई को सही ठहराने के लिए राज्य को मात्रात्मक डेटा एकत्र करने का निर्देश देने वाला कोई परमादेश भी जारी नहीं किया जा सकता है। यह देखा गया कि भले ही सार्वजनिक सेवाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का प्रतिनिधित्व कम होने का मामला न्यायालय के संज्ञान में लाया गया हो, कोर्ट द्वारा राज्य सरकार को आरक्षण प्रदान करने के लिए कोई परमादेश जारी नहीं किया जा सकता है।"

इसलिए, अपील की अनुमति देते हुए, कोर्ट ने इस प्रकार देखा:

9. उपरोक्त निर्णयों में इस न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून को मामले के तथ्यों पर लागू करते हुए, हमारी राय है कि हाईकोर्ट ने परमादेश की रिट जारी करने और राज्य सरकार को खिलाड़ियों के लिए प्रदत्त एक प्रतिशत आरक्षण/कोटा के बजाय तीन प्रतिशत आरक्षण/कोटा प्रदान करने के लिए निर्देश देने में गंभीर त्रुटि की है। राज्य सरकार ने ख्रिलाड़ियों के लिए एक प्रतिशत आरक्षण/कोटा का सचेत नीतिगत निर्णय लिया था। राज्य सरकार ने दिनांक 25.07.2019 को एक विशिष्ट आदेश भी जारी किया था। इसलिए, हाईकोर्ट ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए परमादेश की एक रिट जारी करके राज्य सरकार को खिलाड़ियों के लिए आरक्षण का एक विशेष प्रतिशत अर्थात मौजूदा एक प्रतिशत को तीन प्रतिशत करने का निर्देश देते हुए अपने अधिकार क्षेत्र को पार कर लिया है। इसलिए, हाईकोर्ट द्वारा पारित आक्षेपित सामान्य निर्णय और आदेश टिकाऊ नहीं है, जिसमें राज्य को खिलाड़ियों के लिए 3% आरक्षण प्रदान करने और/या सरकारी मेडिकल/डेंटल कॉलेजों में 3% का खेल कोटा प्रदान करने का निर्देश दिया गया है, और यह परमादेश रद्द और निरस्त किए जाने के योग्य है।

केस नाम: पंजाब सरकार बनाम अंशिका गोयल

साइटेशन: 2022 लाइवलॉ (एससी) 84

केस नं./तारीख: सीए 317/ 2022 | 25 जनवरी 2022

कोरम: न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना

वकील: अपीलकर्ता के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोरा, प्रतिवादी के लिए वरिष्ठ अधवक्ता पी एस पटवालिया

केसलॉ: आरक्षण प्रदान करने के लिए राज्य सरकार को परमादेश जारी नहीं किया जा सकता

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