मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु सरकार के रमजान म‌हीने में म‌‌स्‍जिदों में चावल बांटने के आदेश के खिलाफ दायर याचिका रद्द की

Update: 2020-04-27 08:09 GMT

 Madras High Court

मद्रास हाईकोर्ट ने रमजान के पवित्र महीने में मस्जिदों में मुफ्त चावल वित‌रित करने के तमिलनाडु सरकार के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है। तमिलनाडु सरकार ने 16 अप्रैल को रमजान के महीने में राज्य की 2,895 मस्जिदों को 5,450 टन चावल वितर‌ित करने आदेश दिया था, ताकि रोजेदारों की मदद हो सके।

ज‌स्टिस एम सत्यनारायणन और जस्टिस एम निर्मल कुमार की पीठ ने आदेश की वैधता की पुष्टि करते हुए इसे रद्द करने से इनकार कर दिया। 'हिंदू मुन्नानी' नामक एक संगठन आदेश को रद्द करने के लिए याचिका दायर की थी।

पीठ ने प्रफुल्ल गोराडिया बनाम यूनियन ऑफ ‌इंडिया (2011) 2 SCC 568 के मामले पर भरोसा किया, जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट ने हज यात्रियों को सहायता देने के संदर्भ में संविधान के अनुच्छेद 27 के की सीमओं का परीक्षण किया था।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था,

"जवाबी हलफनामे के अनुसार, सरकार किसी भी समुदाय को तीर्थयात्रा के लिए मदद देने के विचार के ‌विरोध में नहीं है, उदाहरण के लिए सरकार कुंभ का खर्च वहन करती है , भारतीय नागरिकों को मानसरोवर की को तीर्थ यात्रा में मदद करती है, पाकिस्तान में मंदिरों और गुरुद्वारों की यात्रा में मदद करती है, इस प्रकार, कोई भेदभाव नहीं मौजूदा नहीं है।"

इस फैसले की रोशनी में हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की मांग को अस्वीकार कर दिया। पीठ ने कहा, य‌ाचिका 'धार्मिक आधार' पर दायर की गई है।

देश की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति, जिसके तहत सरकार सभी धार्मिक समूहों की मदद करती है, की चर्चा करते हुए हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के शब्दों को दोहराया, "हमारे संस्थापकों की बुद्धिमत्ता का परिणाम है कि हमारा संविधान धर्मनिरपेक्ष है और विविधता का सम्‍मान करता है। हमारे संस्थाकों की महानता है कि 1947 के विभाजन के मध्य उन्होंने संयम बरता और भारत को हिंदु देश के बजाया धर्मनिरपेक्ष बनाने का फैसला किया। यही कारण है कि तमाम विविधताओं के बावजूद, एकमात्र नीति जो स्थिरता के लिए कार्य कर सकती है और प्रगति प्रदान कर सकती है, वह धर्मनिरपेक्षता है और सभी समुदायों, पंथों, संप्रदायों आदि को समान सम्मान देना है।"

याचिका में योजना में अन्य कमजोर वर्गों को शामिल करने की मांग भी की गई थी। हाईकोर्ट ने इस संबंध में राज्य सरकार के संबं‌ध‌ित प्राध‌िकरणों को नोटिस जारी किया है।

सुनवाई के दरमियान पीठ ने यह पाया कि याचिकाकर्ता-संगठन ने इसके संबंध में कोई बयान नहीं दिया है कि वह एक पंजीकृत संगठन है, इसलिए, याचिका को सार्वजनिक हित का होने के नाते, यह मानने का फैसला किया कि याचिका एक व्यक्ति द्वारा दायर की गई है, जिन्होंने खुद को उक्त संगठन का सचिव बताया था।

मामला अगली सुनवाई के लिए 7 मई को सूचीबद्ध किया गया है।

मामले का विवरण:

केस टाइटल: हिंदू मुन्नानी बनाम तमिलनाडु राज्य (एक अन्य जुड़ा हुआ मामला भी)

केस नं: WP No.7500 / 2020

कोरम: जस्टिस एम सत्यनारायणन और जस्टिस एम निर्मल कुमार

प्रतिनिधित्व: एडवोकेट टी अन्नामलाई और ए वेंकटेश कुमार (याचिकाकर्ताओं के लिए); सरकारी वकील वी जयप्रकाश नारायण (राज्य के लिए)

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