'कमल धार्मिक प्रतीक है; धार्मिक नामों और प्रतीकों वाली पार्टियों पर प्रतिबंध लगाने वाली याचिका में भाजपा को शामिल किया जाना चा‌हिए: मुस्लिम लीग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा

Update: 2023-03-20 14:30 GMT

इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को भी राजनीतिक दलों को धार्मिक नामों और प्रतीकों से रोकने की मांग वाली याचिका में प्रतिवादी बनाया जाना चाहिए, क्योंकि बीजेपी का प्रतीक कमल एक "धार्मिक प्रतीक" है। मुस्लिम लीग ने कहा कि कमल हिंदू और बौद्ध धर्म से जुड़ा धार्मिक प्रतीक है।

मुस्लिम लीग की ओर से पेश सी‌नियर एडवोकेट दुष्यंत दवे ने जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ को बताया, "हमने भारतीय जनता पार्टी सहित कई पार्टियों को शामिल करने के लिए एक आवेदन दायर किया है। भाजपा का प्रतीक 'कमल' है, जो एक धार्मिक प्रतीक है।"

मुस्लिम लीग ने मामले में उत्तरदाताओं के रूप में शिवसेना, शिरोमणि अकाली दल, हिंदू सेना, हिंदू महासभा, क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक फ्रंट, इस्लाम पार्टी हिंद, आदि जैसे 26 अन्य दलों की भी शामिल करने की मांग की।

उल्लेखनीय है कि यूपी शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष सैयद वसीम रिजवी (अब जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी के रूप में जाने जाते हैं) की जनहित याचिका में केवल दो पक्षों- आईयूएमएल और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) को प्रतिवादी के रूप में शामिल किया गया है।

पिछली सुनवाइयों पर न्यायालय ने कहा था कि याचिकाकर्ता को अपने दृष्टिकोण में चयनात्मक नहीं होना चाहिए। वहीं एआईएमआईएम की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट और पूर्व अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि कि याचिका विचार योग्य नहीं है।

उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता के किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं हुआ है और इसलिए अनुच्छेद 32 के तहत याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।

उन्होंने कहा, याचिकाकर्ता ने सभी धार्मिक नामों वाले सभी राजनीतिक दलों को शामिल करने के पहले के निर्देश का पालन नहीं किया, इसलिए, याचिका अकेले इसी आधार पर खारिज करने के लिए उत्तरदायी है।

वेणुगोपाल ने कहा, "उन्होंने मुस्लिम नामों से केवल दो पार्टियों को पक्षकार बनाया है।"

उन्होंने बताया कि इसी तरह की याचिका दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष लंबित है।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट गौरव भाटिया ने कहा कि दूसरे पक्ष की ओर से कई गलत बयान दिए गए हैं। याचिका में केवल यह निर्देश देने की मांग की गई है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधान और अभिराम सिंह बनाम सीडी कॉमाचेन का पालन किया जाए।

खंडपीठ ने सुनवाई को चार सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया, जिसमें प्रतिवादियों को हाईकोर्ट के समक्ष लंबित बताई गई याचिका की प्रति प्रस्तुत करने के लिए कहा गया, ताकि यह पता लगाया जा सके कि विषय वस्तु समान है या नहीं। पीठ ने यह भी कहा कि वह प्रारंभिक आपत्तियों पर विचार करेगी।

सुनवाई के अंत में दोनों पक्षों में बीच तीखी बहस हुई। दवे ने कहा कि याचिकाकर्ता भाजपा समर्थक है और उसे उस पार्टी में शामिल होना चाहिए, जिस पर भाटिया ने कहा कि "यह एक दुर्भाग्यपूर्ण टिप्पणी है"

ईसीआई ने अपने जवाबी हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत कोई स्पष्ट वैधानिक प्रावधान नहीं है, जो धार्मिक नामों वाले राजनीतिक दलों के पंजीकरण पर रोक लगाता है।

पिछली सुनवाई के दौरान वेणुगोपाल ने कहा था कि "दूरगामी परिणामों" के मद्देनजर इस मामले पर संविधान पीठ को विचार करना चाहिए।

केस टाइटल: सैयद वसीम रिजवी बनाम ईसीआई और अन्य। WP(C) No 908/2021 PIL]

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