BREAKING| लोकसभा स्पीकर ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति की घोषणा की

Update: 2025-08-12 09:11 GMT

लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने जज (जांच) एक्ट, 1968 के तहत जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास पर बेहिसाब नकदी मिलने के मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित करने की घोषणा की।

इस समिति के सदस्यों में सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस अरविंद कुमार, मद्रास हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एम.एम. श्रीवास्तव और कर्नाटक हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट वासुदेव आचार्य शामिल हैं।

यह निर्णय जस्टिस वर्मा को हटाने के लिए लोकसभा के 146 सदस्यों द्वारा लोकसभा स्पीकर के समक्ष महाभियोग प्रस्ताव प्रस्तुत किए जाने के बाद आया है।

कानून के अनुसार, किसी जज को संविधान के अनुच्छेद 124 और 217 के तहत "सिद्ध कदाचार" या "अक्षमता" के आधार पर पद से हटाया जा सकता है। कार्यवाही शुरू करने के लिए महाभियोग का नोटिस कम से कम 100 लोकसभा सदस्यों या 50 राज्यसभा सदस्यों द्वारा प्रायोजित होना चाहिए। इसके बाद पीठासीन अधिकारी (अध्यक्ष) महाभियोग के नोटिस का सत्यापन करेंगे। यदि वह इसे स्वीकार करने का निर्णय लेते हैं तो उन्हें चीफ जस्टिस/जज, हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और प्रतिष्ठित न्यायविद की तीन सदस्यीय समिति का गठन करना होगा। समिति का कार्य जज (जांच) एक्ट, 1968 के अंतर्गत संचालित होगा।

यदि समिति अपनी रिपोर्ट में आरोप को सत्य पाती है तो रिपोर्ट को चर्चा और मतदान के लिए सदन में प्रस्तुत किया जाता है।

जस्टिस वर्मा पर महाभियोग चलाने के लिए उपस्थित और मतदान करने वाले कम से कम दो-तिहाई बहुमत का जज को हटाने पर सहमत होना आवश्यक है।

यह मामला 14 मार्च को दिल्ली हाईकोर्ट के तत्कालीन जज जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास के बाहरी हिस्से में आग बुझाने के अभियान के दौरान अचानक मिले नोटों के विशाल ढेर से संबंधित है।

इस खोज के बाद भारी सार्वजनिक विवाद छिड़ जाने के बाद तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना ने तीन जजों की आंतरिक जांच समिति गठित की - जस्टिस शील नागू (तत्कालीन पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस), जस्टिस जी.एस. संधावालिया (तत्कालीन हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस) और जस्टिस अनु शिवरामन (कर्नाटक हाईकोर्ट की जज)।

इसके साथ ही जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद हाईकोर्ट वापस भेज दिया गया और जांच लंबित रहने तक उनसे न्यायिक कार्य वापस ले लिया गया।

समिति ने जस्टिस वर्मा को प्रथम दृष्टया दोषी पाते हुए अपनी रिपोर्ट मई में चीफ जस्टिस खन्ना को सौंपी, जिसे चीफ जस्टिस ने आगे की कार्रवाई के लिए राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दिया, क्योंकि जस्टिस वर्मा ने चीफ जस्टिस की इस्तीफ़ा देने की सलाह मानने से इनकार कर दिया था।

पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वर्मा की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने आंतरिक जांच तथा उन्हें हटाने की चीफ जस्टिस की सिफारिश को चुनौती दी थी।

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