दिल्ली की अनाधिकृत कॉलोनियों में रहने वालों को मिलेगा मालिकाना हक, लोकसभा ने पास किया विधेयक

बिल से दिल्‍ली विकास प्राधिकरण द्वारा चिन्‍हित 1731 अनाधिकृत कालोनियों को, जो 175 वर्ग किलोमीटर में फैली हैं और जिनमें ज्यादातर विभिन्न राज्यों से आए गरीब प्रवासी रहते हैं, को लाभ होगा।

Update: 2019-11-29 07:48 GMT

लोकसभा ने शुक्रवार को ‌दिल्ली राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र (अनाधिकृत कॉलोनियों में निवासियों के संपत्ति अधिकारों की मान्यता) विधेयक, 2019 को ध्वनिमत से पारित कर दिया।

केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्री हरदीप सिंह पुरी द्वारा पेश विधेयक दिल्ली की अनाधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले व्यक्तियों के संपत्ति अधिकारों को मान्यता देने के लिए; पावर ऑफ अटॉर्नी ब्रिकी के लिए समझौता, वसीयतनामा, अधिकार पत्र या मुआवजे के भुगतान के सबूत के किसी भी दस्तावेज के आधार पर स्वामित्व या हस्तांतरण या रेहन के अधिकार प्रदान करने के लिए, एक फ्रेमवर्क प्रदान करना चाहता है।

बिल से दिल्‍ली विकास प्राधिकरण द्वारा चिन्‍हित 1731 अनाधिकृत कालोनियों को, जो 175 वर्ग किलोमीटर में फैली हैं और जिनमें ज्यादातर विभिन्न राज्यों से आए गरीब प्रवासी रहते हैं, को लाभ होगा।

विधेयक को पेश करते समय, पुरी ने कहा कि सरकार 31 दिसंबर तक अपने आधिकारिक पोर्टल पर सभी कालोनियों के डिजिटल नक्शे अपलोड करने की प्रक्रिया में है। विधेयक का समर्थन करते हुए उत्तर-पूर्वी दिल्ली के भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने कहा कि विधेयक से लगभग 70 लाख लोगों को लाभ होगा।

विधेयक का समर्थन करते हुए, कांग्रेस के सांसद अधीर रंजन चौधरी ने सरकार से स्पष्ट करने को कहा कि उसने दिल्ली मास्टर प्लान, 2021 के आदेश का संरक्षण करते हुए विधेयक को कैसे लागू करने की योजना बनाई है। उन्होंने सरकार से निवासियों के अधिकारों को अधिकृत करने के लिए लगाए गए शुल्कों को कम करने के लिए कहा।

चर्चा के दौरान डीएमके सांसद दयानिधि मारन ने सरकार से सवाल किया कि उसने सैनिक फार्म्स की कानूनी स्थिति पर क्यों चुप्पी साथ रखी है, जो दिल्ली का एक पॉश इलाका है और कथित तौर पर अनधिकृत कॉलोनी होने के कारण विवादों में रहा है। मारन ने पूछा, "आपको सैनिक फार्म्स को विनियमित करने से क्या रोक रहा है।"

सरकार से विधेयक पर पुनर्विचार करने की अपील करते हुए आरएसपी सांसद एनके प्रेमचंद्रन ने कहा कि इस विधेयक का "मसौदा भयानक तरीके से तैयार किया गया" है। उन्होंने कहा कि विधेयक ने सूरज लैंप एंड इंडस्ट्रीज (पी) लिमिटेड बनाम हरियाणा राज्य और अन्य, (2012) 1 एससीसी 656 के मामले में दिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्पष्ट रूप से उल्लंघन किया है, उस आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि पॉवर ऑफ अटॉर्नी का लेनदेन 'स्थानान्तरण' या 'ब‌िक्री' नहीं है और इस प्रकार पूर्ण स्थानान्तरण या हस्तांतरण नहीं माना जा सकता।

इस सवाल के जवाब में पुरी ने बिल में शामिल उद्देश्यों और कारणों के विवरण का हवाला दिया,

"अनधिकृत कॉलोनियों की जमीनी हकीकत और वहां के निवासियों की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के मद्देनजर, ये अपेक्षित है कि ऐसी कॉलोनियों के निवासियों के स्वामित्व, हस्तांतरण या रेहन के अधिकारों की पहचान और प्रदान पावर ऑफ़ अटॉर्नी, बिक्री के समझौते, वसीयतनामा, कब्जा पत्र और अन्य मुआवजे के भुगतान के प्रमाण के अन्य दस्तावेजों के आधार पर पहचाना जाए। कॉलोनियों के विकास, पुनर्विकास की सुविधा, जिनमें मौजूदा बुनियादी ढांचे, नागरिक और सामाजिक सुविधाओं में सुधार आद‌ि कर जीवन की बेहतर गुणवत्ता की जा सकती है, के लिए भी ये वांछनीय है।"

मुख्य विशेषताएं

संपत्ति के अधिकारों की मान्यता: विधेयक में यह प्रावधान है कि केंद्र सरकार दिल्ली में अनाधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले व्यक्तियों के संपत्ति अधिकारों को मान्यता दे सकती है; उन्हें पावर ऑफ अटॉर्नी, ब्रिकी के लिए समझौता, वसीयतनामा, अधिकार पत्र या मुआवजे के भुगतान के सबूत के किसी भी दस्तावेज के आधार पर स्वामित्व या हस्तांतरण या रेहन के अधिकार प्रदान किए जा सकते हैं।

संबधित प्रावधान, भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899, पंजीकरण अधिनियम, 1908, आयकर अधिनियम, 1961 और सूरज लैंप मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बावजूद कार्य करता है।

निवासी: विधेयक एक निवासी को पंजीकृत सेल डीड या अन्य उपरोक्‍त दस्तावेजों के आधार पर संपत्ति के भौतिक कब्जे वाले व्यक्ति के रूप में परिभाष‌ित करता है। यह निवासियों के कानूनी उत्तराधिकारियों के अधिकारों को भी मानता है, हालांकि इसमें किरायेदार, लाइसेंसधारी आदि शामिल नहीं है।

अनधिकृत कॉलोनी: विधेयक केवल उन अनधिकृत कॉलोनियों पर लागू होगा, जिन्हें डीडीए द्वारा नियमित करने के लिए अधिसूचित किया गया है।

शुल्क का भुगतान: निवासियों को स्वामित्व प्राप्त करने के लिए अंतिम लेनदेन पर स्टाम्प शुल्क और पंजीकरण शुल्क के साथ केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित शुल्क (नाममात्र) का भुगतान करना होगा।

विधेयक को अब अब विचार के लिए राज्यसभा के समक्ष पेश किया जाएगा।

बिल डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें 



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