जानिए 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाए जाने की वजह और इसके इतिहास के बारे में

Update: 2022-01-26 07:24 GMT

गणतंत्र दिवस (Republic Day) हर साल 26 जनवरी को देशभर में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है, क्योंकि 26 जनवरी 1950 के दिन ही भारत का संविधान लागू किया गया था।

गणतंत्र दिवस के दिन देश की राजधानी दिल्ली में राजपथ पर परेड का आयोजन किया जाता है।  इसके साथ ही इस दिन राष्ट्रपति द्वारा तिरंगा झंडा फहराया जाता है और 21 तोपों की सलामी दी जाती है।

साथ ही स्वतंत्रता सेनानियों और वीर योद्धाओं को स्मरण किया जाता है।

26 जनवरी को चुनने की वजह

भारत की संविधान सभा की स्थापना 9 दिसंबर 1946 को भारत के संविधान को लिखने के लिए की गई थी। डॉ० भीमराव आंबेडकर, जवाहरलाल नेहरू, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि संविधान सभा के प्रमुख सदस्य थे।

संविधान निर्माण में कुल 22 समितीयां थीं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण मसौदा समिति (Drafting Committee) थी। इस समिति का कार्य संपूर्ण 'संविधान लिखना' या ' संविधान का निर्माण करना' था।

मसौदा समिति (Drafting Committee) की अध्यक्षता डॉ.भीम राव अंबेडकर ने की थी।

संविधान सभा में कुल 11 सत्र आयोजित किए और इस विशाल संविधान को 2 वर्ष, 11 महीने और 18 दिन की अवधि में तैयार किया गया।

भारत की संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को भारत के संविधान को अपनाया और 26 जनवरी 1950 को लागू किया। इस दिन को चुनने की मुख्य वजह लाहौर कांग्रेस अधिवेशन है। भारत का संविधान लिखने के लिए भारत की संविधान सभा की स्थापना 9 दिसंबर 1946 को हुई थी। मसौदा समिति (Drafting Committee) की अध्यक्षता डॉ बी आर अम्बेडकर ने की, जो उस समय कानून मंत्री थे।

आपको बता दें, 26 जनवरी, 1929 को पहली बार पूर्ण गणराज्य का प्रस्ताव पेश किया गया था। इस वजह से 26 जनवरी के दिन भारतीय सविंधान को लागू किया गया। इसलिए, 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस (रिपब्लिक डे) के रूप में मनाया जाता है।

26 नवंबर, 1949 को समिति ने अपना काम समाप्त कर दिया था। 25 नवंबर, 1949 को संविधान सभा की कार्यवाही शुरू होने से एक दिन पहले बीआर अंबेडकर ने एक भाषण दिया था इस भाषण में भविष्य के लिए तीन चेतावनी दी थी ।

पहला लोकतंत्र में लोकप्रिय विरोध की जगह के बारे में था ।

उन्होंने कहा,

"किसी को सविनय अवज्ञा, असहयोग और सत्याग्रह के तरीकों को छोड़ना चाहिए। दूसरी चेतावनी करिश्माई अधिकार के लिए बिना सोचे-समझे प्रस्तुत करने के विषय में था।"

अंबेडकर ने कहा,

"धर्म में भक्ति एक आत्मा के उद्धार के लिए एक रास्ता हो सकती है । लेकिन राजनीति में भक्ति या नायक की पूजा क्षरण और अंतत तानाशाही के लिए एक निश्चित रास्ता है । उनकी अंतिम चेतावनी यह थी कि भारतीयों को राजनीतिक लोकतंत्र से संतुष्ट नहीं होना चाहिए क्योंकि भारतीय समाज में असमानता और पदानुक्रम अभी भी समाहित थे।

उन्होंने कहा,

"अगर हम लंबे समय तक इसे (समानता) से इनकार करते रहेंगे तो हम अपने राजनीतिक लोकतंत्र को संकट में डालकर ही ऐसा करेंगे।"

पहली बार 1979 में जब पहला प्रस्ताव 26 नवंबर को संविधान को अपनाने की वर्षगांठ के रूप में मनाने और कानूनी दस्तावेज के निर्माताओं द्वारा परिकल्पित देश में कानून की स्थिति का आकलन करने के लिए प्रस्तुत किया गया था।

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