कामाख्या मंदिर: असम सरकार ने कहा- डोलोई समाज मंदिर मामलों को संतोषजनक ढंग से चला रहा है; सुप्रीम कोर्ट ने मौजूदा व्यवस्था जारी रखने की इजाजत दी
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में गुवाहाटी हाईकोर्ट द्वारा 2017 में पारित आदेश निष्क्रिय करार दिया, जिसमें उपायुक्त को गुवाहाटी में कामाख्या मंदिर में विकासात्मक गतिविधियों के लिए भक्तों द्वारा दिए गए दान को प्राप्त करने और उसी के संबंध में अलग अकाउंट बनाए रखने का निर्देश दिया गया था।
जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस पंकज मित्तल की खंडपीठ ने आदेश दिया कि डोलोई (मुख्य पुजारी) समाज द्वारा मंदिर के मामलों के प्रबंधन की मौजूदा व्यवस्था के मद्देनजर हाईकोर्ट का आदेश लागू नहीं होगा।
न्यायालय ने असम सरकार के इस कथन पर ध्यान दिया कि "वर्तमान में डोलोई समाज स्थानीय प्रशासन के साथ घनिष्ठ समन्वय में मंदिर प्रशासन के मामलों को संतोषजनक ढंग से चला रहा है और वर्तमान व्यवस्था जारी रह सकती है।"
हाईकोर्ट ने 2015 में उपायुक्त को भक्तों और जनता द्वारा दिए गए दान को प्राप्त करने का निर्देश दिया था। साथ ही कहा था कि ऐसे दान का अलग अकाउंट रखना चाहिए और इसे कामाख्या मंदिर की विकासात्मक गतिविधियों के लिए खर्च करना चाहिए।
बाद में इस आदेश पर पुनर्विचार की मांग करते हुए कहा गया कि कामाख्या मंदिर के धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष पहलुओं के प्रबंधन पर डोलोई का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी मान्यता दी गई है।
इस प्रकार, तदनुसार यह तर्क दिया गया कि उपायुक्त को भक्तों और जनता से प्राप्त दान का अलग अकाउंट रखने का निर्देश नहीं दिया जा सकता है। 2017 में हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट करते हुए पुनर्विचार का निपटारा कर दिया कि प्राप्त दान केवल मंदिर की विकासात्मक गतिविधियों के लिए होगा, न कि सामान्य चढ़ावे के लिए। इसके साथ ही इसे खारिज कर दिया।
हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की गईं। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष असम राज्य ने हलफनामा पेश किया, जिसमें बताया गया कि मां कामाख्या कॉरिडोर से संबंधित मामलों पर चर्चा के लिए 13.08.2023 को बैठक हुई थी। इसकी अध्यक्षता असम के मुख्यमंत्री ने की। उसमें यह निर्णय लिया गया कि "वर्तमान में डोलोई समाज स्थानीय प्रशासन के साथ निकट समन्वय में मंदिर प्रशासन के मामलों को संतोषजनक ढंग से चला रहा है और वर्तमान व्यवस्था जारी रह सकती है।"
इसके बाद 08.11.2023 को राज्य द्वारा दायर अन्य हलफनामे में यह आश्वासन दिया गया कि असम सरकार पीएम-डिवाइन योजना के तहत मंदिर की विकास गतिविधियों को सक्रिय रूप से ले रही है।
हलफनामे में कहा गया,
"असम सरकार पीएम डिवाइन योजना के तहत मां कामाख्या मंदिर की विकास गतिविधियों को बड़े पैमाने पर ले रही है।"
इसके अलावा, राज्य के सक्षम अधिकारियों द्वारा यह भी निर्णय लिया गया कि एसबीआई कामाख्या मंदिर शाखा के बचत बैंक अकाउंट में पड़ी निश्चित राशि (लगभग 11 लाख) को 2 सप्ताह के भीतर डोलोई समाज, मां कामाख्या देवालय को सौंपी जा सकती है। तदनुसार, अकाउंट बंद कर दिया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में इन हलफनामों में राज्य द्वारा दिए गए आश्वासनों को दर्ज किया और उसी के मद्देनजर आदेश दिया:
“इसलिए विवादित आदेशों को अब लागू करने की आवश्यकता नहीं है और हम निर्देश देते हैं कि विवादित आदेशों के बजाय राज्य सरकार के उपरोक्त हलफनामों में जो दर्ज है और मंदिर के मामलों के प्रबंधन की मौजूदा व्यवस्था जारी रहेगी। हम राज्य सरकार के इस आश्वासन को रिकॉर्ड में लेते हैं कि वह पीएम-डिवाइन योजना के तहत बड़े पैमाने पर मां कामाख्या मंदिर की विकास गतिविधियां चला रही है। उक्त आश्वासन का राज्य सरकार द्वारा सही अर्थों में पालन किया जाएगा।''
केस टाइटल: कविंद्र प्रसाद सरमा बनाम मुख्य सचिव असम सरकार एवं अन्य, डायरी नंबर 23917/2017
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