जम्मू कश्मीर में 144 बच्चों को हिरासत में लिया गया, लेकिन कोई अवैध हिरासत नहीं, सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्ट पेश

Update: 2019-10-02 04:34 GMT

जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कि राज्य में कोई भी बच्चा अवैध हिरासत में नहीं है, जम्मू-कश्मीर किशोर न्याय समिति ने अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी है।

पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार राज्य की विशेष स्थिति को समाप्त करने के मद्देनजर क्षेत्र में कर्फ्यू के उपाय किए जाने के बाद 9 और 11 वर्ष की आयु के बच्चों सहित 144 किशोरों को हिरासत में लिया गया था। उनमें से कुछ को उसी दिन रिहा किया गया था और बाकी को किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2013 के प्रावधानों के तहत 'कानून के साथ संघर्ष में किशोर' के रूप में आगे हिरासत में भेजा गया।

पुलिस के आधार पर दी गई रिपोर्ट

यह रिपोर्ट जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक की रिपोर्ट के हवाले से दी गई है। चार सदस्यीय किशोर न्याय समिति को दी गई अपनी रिपोर्ट में डीजीपी ने जोर दिया, "राज्य मशीनरी कानून के शासन को लगातार बनाए हुए है और कानून के साथ संघर्ष में एक भी किशोर को अवैध रूप से हिरासत में नहीं लिया गया है।"

डीजीपी ने कहा कि ये किशोर हिरासत में संबंधित जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के आदेशों के आधार पर ऑब्जर्वेशन होम्स में रखे गए हैं। डीजीपी द्वारा आगे कहा गया कि राज्य में बाल कल्याण समितियां प्रभावी रूप से काम कर रही हैं।

जनहित याचिका के बाद दिए गए थे निर्देश

दरअसल 20 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने बाल अधिकार विशेषज्ञ एनाक्षी गांगुली और शांता सिन्हा द्वारा दायर जनहित याचिका में कश्मीर में बच्चों के अवैध हिरासत के आरोपों पर रिपोर्ट देने के लिए समिति को निर्देश दिया था।

उसके बाद J&K हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस अली मोहम्मद माग्रे की अध्यक्षता वाली समिति ने 23 सितंबर को बैठक की और किशोरों के संबंध में दायर जमानत अर्जियों और हैबियस कॉरपस याचिकाओं के संबंध में उच्च न्यायालय सहित निचली अदालतों से रिपोर्ट मांगने का प्रस्ताव किया। समिति ने याचिका में लगाए गए आरोपों के बारे में जम्मू-कश्मीर के डीजीपी, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के संभागीय आयुक्तों से भी रिपोर्ट मांगी।

डीजीपी ने आरोपों का खंडन करते हुए दावा किया कि जब भी किशोर पब्लिक ऑर्डर को बनाए रखने के लिए किए गए निवारक उपायों के तौर पर हिरासत में लिए गए तो उन्हें किशोर न्याय (राज्य अधिनियम) 2013 में निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार निपटा गया।

गांगुली और सिन्हा की जनहित याचिका ने मीडिया आउटलेट्स द वाशिंगटन पोस्ट, द टेलीग्राफ, बिजनेस इनसाइडर, द क्विंट, टीआरटी वर्ल्ड और स्क्रॉल में रिपोर्ट किए गए बच्चों को हिरासत में रखने के कम से कम 12 विशिष्ट मामलों का उल्लेख किया था।

जनहित याचिका में पंपोर, अवंतीपोरा, क्रू, त्राल, पुलवामा आदि स्थानों पर बड़ी संख्या में नाबालिगों और युवकों को सुरक्षा बलों द्वारा उठाए जाने की खबरें भी बताई गईं हैं।

इन रिपोर्टों के बारे में डीजीपी ने कहा,

"याचिका में लगाए गए विशिष्ट आरोपों की क्षेत्र से प्राप्त जानकारी से पुष्टि नहीं की गई है। व्यक्तिगत मामलों में जहां यह आरोप लगाया गया है कि किशोरों को पुलिस द्वारा कानून के उल्लंघन में हिरासत में लिया गया है और उन्हें दर्ज भी नहीं किया गया है, तथ्यात्मक रूप से सही नहीं पाया गया।"

डीजीपी द्वारा कहा गया कि ये कहानी पुलिस को बदनाम करने के इरादे से बनाई गई और इसमें सनसनीखेज तत्व हो सकते हैं। पुलिस रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकांश मीडिया रिपोर्टों में जांच के लिए पर्याप्त विवरणों की कमी थी। मीडिया रिपोर्टों में तथ्य 'पतली हवा की कल्पना है, " समिति ने डीजीपी के हवाले से कहा है।

"पथराव करते हैं तो उन्हें मौके पर ही पकड़ लिया जाता है"

समिति ने पुलिस के हवाले से कहा, "अक्सर ऐसा होता है कि नाबालिग / किशोर जब पथराव करते हैं तो उन्हें मौके पर ही पकड़ लिया जाता है और घर भेज दिया जाता है। इनमें से कुछ घटनाओं को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया है।"

जनहित याचिका में पुलिस द्वारा मीडिया रिपोर्ट को "पूरी तरह से बेबुनियाद, अपमानजनक " बताते हुए स्पष्ट रूप से नकारा गया है और कहा गया है कि इनका कोई स्पष्ट मूल्य नहीं है।

रिपोर्ट के आंकड़े

समिति ने यह भी कहा कि उसने मिशन निदेशक, जम्मू और कश्मीर चाइल्ड प्रोटेक्शन सोसाइटी (JKCPS) से राज्य के दो ऑब्जर्वेशन होम में स्थिति के बारे में रिपोर्ट मांगी- जिनमें एक हरवान, श्रीनगर और दूसरा आर एस पुरा, जम्मू में है।

JKCPS के निदेशक के अनुसार, हरवन में 6 अगस्त से 23 सितंबर तक कानून के साथ संघर्ष में 36 किशोर लाए गए थे। उनमें से 21 को जमानत दे दी गई थी और शेष 15 के संबंध में जांच चल रही है जबकि आर एस पुरा में कानून के साथ संघर्ष में 10 किशोर लाए गए और उनमें से 6 को जमानत दे दी गई थी। निदेशक ने उल्लेख किया है कि शेष 4 किशोरों के संबंध में जांच लंबित है।

वहीं जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार ( सुप्रीम कोर्ट के भेजे जाने के लिए ) को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में समिति ने डीजीपी और JKCPS मिशन निदेशक द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्टों का स्पष्ट रूप से ना तो समर्थन किया है और ना ही इस पर विवाद बताया है।

समिति ने इस बात का उल्लेख नहीं किया है कि उसने पुलिस और मीडिया की रिपोर्टों में परस्पर विरोधी तथ्यों का कोई स्वतंत्र सत्यापन किया है या नहीं। समिति की रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद छह दिनों के अभ्यास का परिणाम है लेकिन इसमें किसी भी क्षेत्र के दौरे के बारे में चुप्पी साधी गई है और ऑब्जर्वेशन होम के निरीक्षण या हिरासत में लिए गए किशोरों के साथ साक्षात्कार की जानकारी भी नहीं दी गई है। 



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