Justice Yashwant Varma Case : सुप्रीम कोर्ट ने माना- रिलीज नहीं किए जाने थे वीडियो, साथ ही किया सवाल- इससे कार्यवाही पर क्या असर पड़ेगा?

Update: 2025-07-30 11:49 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (30 जुलाई) को सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल की इस दलील से सहमति जताई कि जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास के बाहरी हिस्से में लगी आग में जलते हुए नोटों वाले वीडियो आंतरिक जांच के लंबित रहने के दौरान पब्लिश नहीं किए जाने चाहिए थे।

साथ ही न्यायालय ने यह भी कहा कि केवल वीडियो के प्रकाशन के कारण प्रक्रिया को दूषित नहीं माना जा सकता। खंडपीठ ने कहा कि महाभियोग की कार्यवाही संसद में स्वतंत्र रूप से आंतरिक रिपोर्ट के संदर्भ के बिना आयोजित की जाएगी। न्यायालय ने यह भी पूछा कि जस्टिस वर्मा ने वीडियो हटाने के लिए पहले न्यायालय का रुख क्यों नहीं किया।

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ए.जी. मसीह की खंडपीठ ने जस्टिस वर्मा की रिट याचिका पर फैसला सुरक्षित रखते हुए ये टिप्पणियां कीं। याचिका में जस्टिस वर्मा को आंतरिक जांच रिपोर्ट को चुनौती दी गई थी, जिसमें उन्हें घर में नकदी रखने के मामले में दोषी ठहराया गया था। साथ ही तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना द्वारा उन्हें हटाने की सिफ़ारिश भी की गई थी।

सुनवाई के दौरान, जस्टिस वर्मा की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने दलील दी कि "टेप लीक हो गए थे", जिससे जज के प्रति घोर पूर्वाग्रह और प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची। सुप्रीम कोर्ट ने, जिस दिन जजों के आंतरिक जांच करने के लिए पैनल गठन किया था, उसी दिन अपनी वेबसाइट पर दिल्ली पुलिस और दमकल विभाग द्वारा ली गई तस्वीरें और वीडियो अपलोड किए, जिनमें नकदी की मौजूदगी दिखाई दे रही थी।

खंडपीठ के इस सवाल का जवाब देते हुए कि जस्टिस वर्मा ने जांच शुरू होने से पहले न्यायालय का रुख क्यों नहीं किया, सिब्बल ने कहा,

"टेप जारी कर दिया गया था। यह पहले ही जारी हो चुका था, मेरी प्रतिष्ठा पहले ही धूमिल हो चुकी थी। मैं न्यायालय क्यों आऊँ?"

जस्टिस दत्ता ने कहा:

"हम इस मामले में फिलहाल आपके साथ हैं। इसे [जारी] नहीं किया जाना चाहिए था।"

लेकिन फिर उन्होंने आगे कहा:

"इससे क्या फ़र्क़ पड़ता है? यह आपको दिखाना होगा। इसका मतलब यह नहीं है कि प्रक्रिया में कोई चूक हुई है, जिससे संसद की आपके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की शक्ति प्रभावित होती है, क्योंकि संसद, मुझे ज़ोर देकर कहने की ज़रूरत नहीं है, की अपनी शक्तियां हैं। संसद को न्यायपालिका की बात या चीफ जस्टिस की सिफ़ारिशों से निर्देशित नहीं होना चाहिए। उन्हें स्वतंत्र रूप से कार्य करना चाहिए। अगर संसद प्रस्ताव स्वीकार करती है और अगर कोई जांच समिति गठित होती है तो आप जानते हैं कि समिति के सदस्य कौन हो सकते हैं। क्या आपको लगता है कि वे सदस्य, उच्च क्षमता वाले लोग, प्रारंभिक रिपोर्ट से प्रभावित होंगे, जहां आपको उसके निष्कर्षों को ध्वस्त करने का पूरा मौका मिलेगा। या क्या यह दलील दी जाएगी कि वेबसाइट पर डाले गए इस टेप का मतलब है कि सब कुछ दूषित हो गया।"

सिब्बल ने जवाब दिया कि इसी टेप की वजह से जस्टिस वर्मा को जनता की नज़र में दोषी ठहराया गया। चूंकि वीडियो न्यायालय की वेबसाइट पर अपलोड किए गए, इसलिए लोग उन पर अधिक विश्वास करेंगे। लेकिन जस्टिस दत्ता ने सवाल उठाया कि यह मुद्दा उसी समय क्यों नहीं उठाया गया।

उन्होंने कहा:

"टेप वेबसाइट पर डाल दिया गया, उसके बाद आपको समिति के समक्ष अपना प्रभावी बचाव प्रस्तुत करने का अवसर मिला। यह अवसर प्रक्रिया तक ही सीमित था।"

बाद में जस्टिस दत्ता ने कहा कि जज का आचरण विश्वास पैदा नहीं करता, क्योंकि वे कार्यवाही में पूरी तरह से भाग लेने के बाद भी उसकी वैधता पर सवाल उठा रहे थे।

Case Details: XXX v THE UNION OF INDIA AND ORS|W.P.(C) No. 699/2025

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