आपातकालीन वार्ड जैसी तत्परता से काम करें हाईकोर्ट: जस्टिस सूर्यकांत

Update: 2025-11-15 11:21 GMT

झारखंड हाईकोर्ट के सिल्वर जुबली समारोह में शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि देश के हाईकोर्ट को ऐसी संस्थाओं के रूप में विकसित होना होगा जो अन्याय पर उतनी ही तेजी, दक्षता और सटीकता से प्रतिक्रिया दें, जितनी तेजी से कोई अस्पताल का आपातकालीन वार्ड जीवन बचाने के लिए करता है। उन्होंने कहा कि जैसे आपातकालीन विभाग एक क्षण की देरी भी बर्दाश्त नहीं कर सकता, वैसे ही न्यायपालिका को भी ऐसी क्षमता और तत्परता विकसित करनी होगी जिससे संकट की घड़ी में तुरंत राहत दी जा सके।

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि हाइकॉर्ट्स को अपनी कार्यप्रणाली में तकनीकी क्षमता को मजबूत करना होगा, प्रक्रियाओं को सरल बनाना होगा, विशेषज्ञता विकसित करनी होगी और न्यायिक तंत्र को ऐसी चुस्ती देनी होगी कि उभरते हालातों के अनुसार तुरंत प्रतिक्रिया दी जा सके। उनके अनुसार, यह केवल प्रशासनिक सुधार नहीं बल्कि न्याय तक पहुंच की व्यवस्था के विकास का अगला अनिवार्य चरण है।

उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट सामाजिक परिवर्तन के शक्तिशाली इंजन बन सकते हैं, क्योंकि उनका संवैधानिक दायित्व, व्यापक अधिकार क्षेत्र और जनता से निकटता उन्हें समाज के सबसे गहरे मुद्दों से जोड़ती है। यहां न्याय के उच्च सिद्धांत आम लोगों के जीवन की वास्तविकताओं से मिलते हैं और यही उन्हें न्यायिक सुधारों का सबसे प्रभावी मंच बनाता है।

अपने न्यायिक जीवन के शुरुआती दिनों को याद करते हुए उन्होंने बताया कि उनकी पहली सुनवाई अंतरदेशीय बाल अभिरक्षा विवाद थी, जिसमें दो छोटे बच्चों की मौन पीड़ा ने उन्हें इस बात का एहसास कराया कि जज होना केवल कानूनी सिद्धांत लागू करना नहीं, बल्कि सबसे कमजोर और असहाय लोगों तक कानून की सुरक्षा पहुंचाने की गहरी जिम्मेदारी है।

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि संविधान ने तीन स्तरों वाली न्याय प्रणाली बनाई है, ट्रायल कोर्ट जो जनता के रोज़मर्रा के विवाद सुलझाती हैं, सुप्रीम कोर्ट जो संवैधानिक सीमाओं की अंतिम संरक्षक है और इनके बीच हाईकोर्ट जो नागरिकों और संविधान के बीच सेतु का काम करते हैं। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट को प्राप्त शक्तियां अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट की तुलना में अधिक व्यापक हैं, क्योंकि वे न केवल मौलिक अधिकारों बल्कि सामान्य कानूनी अधिकारों की भी रक्षा कर सकते हैं।

उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट अमूर्त अधिकारों को ठोस राहत में बदलते हैं और उनके निर्णय स्थानीय संदर्भों, सांस्कृतिक वास्तविकताओं और क्षेत्रीय चुनौतियों को प्रतिबिंबित करते हैं, जिससे न्याय में मानवीय स्पर्श और स्थानीय आधार मिलता है।

झारखंड हाईकोर्ट की उपलब्धियों पर बात करते हुए जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि पिछले पच्चीस वर्ष इस न्यायालय की दृढ़ता, नवाचार और संवैधानिक मूल्यों के प्रति गहरे समर्पण का उदाहरण रहे हैं। उन्होंने आदिवासी अधिकारों, श्रमिक सम्मान, पर्यावरण संरक्षण और खनिज संसाधनों के न्यायपूर्ण उपयोग से जुड़े महत्वपूर्ण निर्णयों की सराहना की।

उन्होंने न्यायालय की तकनीकी सुधारों के प्रति प्रतिबद्धता की प्रशंसा की, जैसे ई–फाइलिंग, डिजिटल केस–ट्रैकिंग, खोज योग्य डेटाबेस और दृष्टिबाधित लोगों के लिए उपकरण। उनके अनुसार आधुनिक समय में तकनीक न्याय प्रशासन का अनिवार्य हिस्सा है।

जस्टिस सूर्यकांत ने न्यायालय की मानवीय पहल का भी उल्लेख किया और कहा कि जज राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के माध्यम से कानूनी साक्षरता और न्याय तक पहुंच के कार्यक्रमों को आकार देते हैं, जिससे समाज के सबसे कमजोर वर्गों तक न्याय पहुंचता है।

भविष्य को लेकर उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को तकनीकी परिवर्तन, जलवायु संकट, साइबर अपराध, डिजिटल साक्ष्य और संसाधनों को लेकर होने वाले विवाद जैसे उभरते खतरे से निपटने के लिए वैज्ञानिक समझ और विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी। बढ़ते मामलों और प्रक्रियागत विलंब से निपटने के लिए न्यायालयों को पारंपरिक ढांचे से आगे बढ़कर अधिक लचीले मॉडल अपनाने होंगे।

समारोह के अंत में उन्होंने कहा कि झारखंड हाईकोर्ट के सभी चीफ जस्टिस, जजों, अधिकारियों और वकीलों के योगदान ने न्याय की इस ध्वनि को और गहन और सामंजस्यपूर्ण बनाया है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह विरासत आने वाले कई दशकों तक इसी गरिमा के साथ आगे बढ़ती रहेगी।

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