जस्टिस चंद्रचूड़ का बयान अयोध्या फैसले के खिलाफ क्यूरेटिव याचिका दायर करने का आधार बन सकता है: प्रोफ़ेसर मोहन गोपाल

Update: 2025-09-30 04:10 GMT

प्रोफ़ेसर डॉ. मोहन जी गोपाल ने कहा कि अयोध्या राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद पर पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़ की हालिया टिप्पणियां इस फैसले को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव याचिका दायर करने के लिए पर्याप्त आधार प्रदान कर सकती हैं।

प्रोफ़ेसर गोपाल ने कहा कि जस्टिस चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की कि बाबरी मस्जिद का निर्माण ही "अपवित्रीकरण का एक मौलिक कृत्य" था। उनकी यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट 2019 के फैसले के विपरीत है, जिसमें मस्जिद के निर्माण के लिए मंदिर को नष्ट करने का कोई सबूत नहीं मिला था।

तत्कालीन चीफ रंजन गोगोई और जस्टिस एस.ए. बोबडे, जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर की पीठ द्वारा दिए गए 2019 के फैसले में हिंदू पक्षकारों को विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण की अनुमति दी गई थी, जबकि यह माना गया था कि मुसलमान उस पर अपना विशेष अधिकार स्थापित करने में विफल रहे हैं। फैसले में यह भी दर्ज किया गया कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि मस्जिद को ध्वस्त मंदिर के ऊपर बनाया गया। माना जाता है कि जस्टिस चंद्रचूड़ ने ही यह फैसला लिखा था।

प्रो. गोपाल ने कहा कि फैसले और जस्टिस चंद्रचूड़ की बाद की टिप्पणियों के बीच इस तरह की असंगति फैसले में विश्वास को कम कर सकती है।

उन्होंने कहा,

“एक अदालत की अंतिम ज़िम्मेदारी ऐसे फैसले सुनाना है, जो विश्वास जगाएं। न्याय न केवल होना चाहिए, बल्कि न्याय होते हुए दिखना भी चाहिए, खासकर उन लोगों द्वारा जो मुकदमा हार गए हैं। मेरी निजी राय में अयोध्या का फैसला गलत था। अब सवाल यह है कि क्या हमें जस्टिस चंद्रचूड़ की बातों के आलोक में क्यूरेटिव पिटीशन दायर करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए। शायद हमें ऐसा करना चाहिए। देखते हैं आगे क्या होता है।”

वह कालीकट यूनिवर्सिटी में सीएच मोहम्मद कोया राष्ट्रीय संगोष्ठी में वकील और IUML सांसद हारिस बीरन द्वारा उठाए गए एक प्रश्न का उत्तर दे रहे थे।

उन्होंने आगे फैसले को "मनगढ़ंत" और "अतार्किक" बताया।

उन्होंने कहा,

"फैसले का परिशिष्ट शुद्ध रूप से धर्मतंत्र था। यह एक बिना हस्ताक्षर वाला परिशिष्ट था। पूरा फैसला संदिग्ध है।"

प्रोफ़ेसर गोपाल ने कहा,

"मैं जजों से कहूंगा कि जब आप पीठ में हों तो कृपया अपनी विचारधारा के बारे में पारदर्शी रहें।"

इस संदर्भ में, उन्होंने याद दिलाया कि प्रोफ़ेसर उपेंद्र बक्सी ने जस्टिस चिन्नप्पा रेड्डी की खुलेआम यह कहने के लिए प्रशंसा की कि वे मार्क्सवादी हैं। उन्होंने आगे कहा कि आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग (EWS) मामले में जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस एस रवींद्र भट ने सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की दलीलों पर अपनी आपत्तियां व्यक्त करने में बहुत पारदर्शिता बरती थी। हालांकि, बाद में उन्हें दलीलों में दम नज़र आया और उन्होंने आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग (EWS) कोटा रद्द कर दिया।

प्रोफेसर ने कहा,

"हम जजों से बस यही चाहते हैं - हमारे पास सभी प्रकार की विचारधाराओं वाले जज हों, यह अपरिहार्य है। हम बस ईमानदारी, सत्यनिष्ठा और पारदर्शिता चाहते हैं।"

प्रोफ़ेसर गोपाल ने कहा कि अगर जस्टिस चंद्रचूड़ की अयोध्या मामले पर दृढ़ मान्यताएं होतीं तो उन्हें यह कहते हुए इस मामले से खुद को अलग कर लेना चाहिए था कि वे इस मामले पर वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण नहीं रख सकते, क्योंकि उनका मानना ​​था कि बाबरी मस्जिद का निर्माण अपवित्रता है।

उन्होंने टिप्पणी की,

"तो अंततः, हम जो उठा रहे हैं, वह ईमानदारी का सवाल है। क्या जस्टिस चंद्रचूड़, जो मेरे अच्छे मित्र और एक उल्लेखनीय न्यायविद हैं, उनमें इन मामलों में पारदर्शिता बरतने की आवश्यक न्यायिक निष्ठा है?"

प्रो. गोपाल ने कहा कि जस्टिस चंद्रचूड़ की टिप्पणियों के मद्देनजर अयोध्या का फैसला अब "विकृत" हो गया। उनके अनुसार, क्यूरेटिव पिटीशन जनता की राय को बदलने और उन्हें यह बताने का एक अवसर होगा कि वास्तव में क्या हुआ था।

उन्होंने कहा,

"आइए जानें कि उन्होंने (जस्टिस चंद्रचूड़) क्या कहा और क्यूरेटिव पिटीशन पर काम करें और मांग करें कि पूरे मामले की फिर से सुनवाई हो। यह अब विकृत हो चुका है। इस तरह की प्रतिक्रिया के माध्यम से हम जनता की राय को प्रभावित कर सकते हैं। आइए, जस्टिस चंद्रचूड़ की टिप्पणियों को लोगों को यह समझाने के अवसर में बदलें कि उस मामले में वास्तव में क्या हुआ था और उम्मीद है कि हम पूरे मामले की फिर से सुनवाई के लिए न्यायालय का भी रुख करेंगे।"

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