''जूनियर अधिवक्ता कर रहे हैं तत्काल मामलों को सूचीबद्ध करवाने के लिए संघर्ष, रजिस्ट्री अमीरों के मामलों को बिना समय गंवाए लिस्ट कर रही है'' : जीएचसीएए अध्यक्ष ने CJ को पत्र लिखा

Update: 2020-06-06 14:59 GMT

जूनियर अधिवक्ताओं और ''नाॅन-वीआईपी मुविक्कलों'' को उनके मामलों को सूचीबद्ध करवाने में आ रही परेशानियों को उजागर करते हुए गुजरात हाईकोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन (GHCAA) के अध्यक्ष ने मुख्य न्यायाधीश (CJ) को एक पत्र लिखा है।

इस पत्र में  आग्रह किया गया है कि वे न्यायालय में नियमित सुनवाई, फिज़िकल कामकाज को फिर से शुरू कर दें ताकि मामलों को सूचीबद्ध करने में रजिस्ट्री के अधिकार को समाप्त किया जा सके और प्रत्येक अधिवक्ता को समान रूप से रोस्टर के अनुसार सौंपे गए विषय के संबंध में सुनवाई करने वाले न्यायाधीश के समक्ष पेश होने की अनुमति मिल सके।  

वरिष्ठ अधिवक्ता यतिन ओझा ने बताया है कि-

''40 अधिवक्ताओं का एक ग्रुप कल मुझसे मिलने आया था। उनमें से अधिकांश वकील जूनियर थे। वह विशेष रूप से मेरे पास यह बताने आए थे कि उनके मामलों को कई सप्ताह तक सुनवाई के लिए सूचीबद्ध नहीं किया गया (लेकिन अब उनको स्वीकार कर लिया गया है)।

उन्होंने मेरा ध्यान इस तरफ भी खींचा कि कैसे अरबपतियों के मामलों को कुछ ही समय में सूचीबद्ध कर दिया जाता है।" 

उन्होंने यह भी बताया कि इन वकीलों ने न केवल अपनी पीड़ा व्यक्त की, बल्कि अपना गुस्सा और निराशा भी व्यक्त की।

ओझा ने बताया कि

''पिछले तीन दिनों में कम से कम 100 अधिवक्ताओं ने या तो मुझसे या महासचिव से गंभीर शिकायत की है, जिसमें बताया गया है कि उन्होंने भले ही अपने मामलों को एक सिंगल पीडीएफ में दायर किया हो, लेकिन एक पखवाड़े तक उनके मामलों को सूचीबद्ध नहीं किया जा रहा है भले ही इसके लिए उन्होंने कितनी ही ईमानदारी से प्रयास किए हों। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि रजिस्ट्री ने भाई-भतीजावाद को बढ़ावा देने और पक्षपाती होने के लिए दृढ़ संकल्प कर लिया है।'' 

उन्होंने एक उदाहरण का हवाला दिया, जिसमें बताया कि कैसे रजिस्ट्री ने 10 दिनों तक एक महिला की तरफ से दायर जमानत अर्जी को सूचीबद्ध नहीं किया। इस महिला ने यह अर्जी अपने और अपने पति की तरफ से दायर की थी। इसके लिए एक बेतुकी आपत्ति जताते हुए कहा गया कि अर्जी में पत्नी का जेंडर नहीं बताया गया है।

उन्होंने बताया कि उनको सौ से अधिक वकीलों से मैसेज प्राप्त हुए हैं, जिनमें बताया गया है कि उनकी तरफ से कई सप्ताह या महीने पहले मामले दायर किए गए थे, परंतु अभी तक यह मामले सूचीबद्ध नहीं हुए हैं।

इनमें से कई मामले ऐसे भी हैं ,जिनमें तत्काल सुनवाई करने की मांग संबंधी एक नोट भी लगाया गया था। उदाहरण के लिए, एक छात्र को उसकी परीक्षा में बैठने से रोक दिया गया था, इसलिए उसने अपनी आगामी परीक्षाओं में उपस्थित होने की याचिका दायर की थी।

लाॅकडाउन होने से पहले ही उसकी याचिका में नोटिस जारी हो चुका था। ऐसे में ''यदि इस मामले को परिचालित या सूचीबद्ध नहीं किया जाता है तो उसकी याचिका निष्फल हो जाएगी और उसका कैरियर बर्बाद हो जाएगा।

मामलों को सूचीबद्ध करने में हो रहे इस भेदभाव को सही साबित करते हुए उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने एक मामले को हाईकोर्ट की वेबसाइट से डाउनलोड किया है। इस केस के स्टेटस के अनुसार श्री अरिज खंभाता ने 29 मई 2020 को एक याचिका दायर की थी।

पत्र में कहा गया है कि-

''सभी जानते हैं कि श्री अरिज खंभाता कौन हैं। वे 3 जून, 2020 को अपने मामले में आदेश लेकर चले गए। 29 मई 2020 को रजिस्ट्री को सूचना मिली थी कि श्री खंभाता ने मामला दायर किया है। जबकि इस मामले को एक दिन के अंदर आगे बढ़ा दिया गया और 3 जून 2020 के लिए सूचीबद्ध कर दिया गया।, जबकि 30 मई 2020 और 31 मई 2020 को शनिवार व रविवार था।''

" एक अन्य मामला एएएसीओआरपी एक्जिम इंडिया प्राइवेट लिमिटेड का है। इस मामले का स्टेटस भी हाईकोर्ट की वेबसाइट से ही डाउनलोड किया गया है। इस केस की प्रस्तुतीकरण की तारीख भी 26 मई 2020 है और 3 जून 2020 को आदेश पारित कर दिया गया था।'' 

ओझा ने इस संबंध में बताना जारी रखा और कहा कि इस तरह के भेदभाव का एक तीसरा उदाहरण भी है। जो कस्तूरी कंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टी और लैंड डेवलपर्स नामक एक बहुत प्रसिद्ध बिल्डर से संबंधित है। हाईकोर्ट की वेबसाइट से डाउनलोड किए गए स्टेट्स के अनुसार इस बिल्डर के केस की प्रस्तुति की तारीख 29 मई 2020 थी और इसे 4 जून 2020 के लिए सूचीबद्ध किया गया था।

उन्होंने आश्चर्य जताते हुए कहा कि-

'' चौथा मामला सन फार्मास्युटिकल इंडस्ट्रीज लिमिटेड/पूर्ववर्ती रैनबैक्सी लैबोटरीज द्वारा दायर किया गया है। यह एक टैक्स मामला है। माननीय प्रधानमंत्री ने खुद अपने लाइव भाषण में समाचार चैनल पर सार्वजनिक रूप से कहा था कि लाॅकडाउन खत्म होने तक कर की कोई वसूली नहीं की जाएगी। इस मामले में भी केस का स्टेटस हाईकोर्ट की वेबसाइट से डाउनलोड किया गया है।

यह मामला भी एक जून 2020 के लिए सूचीबद्ध किया गया था। हालांकि मुझे बताया गया है कि डिवीजन बेंच इस मामले में कोई भी राहत देने के पक्ष में नहीं थी और इसे खारिज करना चाहती थी। अब इस मामले में सुनवाई 1 जुलाई 2020 तक के लिए स्थगित कर दी गई है। उस मामले को अत्यावश्यक कैसे कहा जा सकता है,जब खुद याचिकाकर्ता के अधिवक्ता उस मामले में चार सप्ताह का समय दिए जाने का अनुरोध करते हैं।''

पत्र में जिन पांच मामलों का हवाला दिया गया है,उनमें से तीन तस्कर हैं (भारत सरकार के अनुसार) और दो शीर्ष औद्योगिक घराने। जहां मामलों को 24 घंटे में प्रसारित किया गया है या तत्काल सुनवाई की मांग करने वाले किसी आग्रह या नोट के बिना ही इतनी जल्दी सूचीबद्ध कर दिया गया है। 

यह निराशाजनक है कि-

''जूनियर अधिवक्ता और नाॅन- वीआईपी मुविक्कल डिप्टी रजिस्ट्रार को व्यक्तिगत संदेश भेजकर उनके मामले को रजिस्टर्ड करवाने का भी प्रयास कर रहे हैं और उनके मामलों में कुछ नहीं किया जा रहा है। इतना ही नहीं कोई उनके फोन कॉल्स को अटेंड नहीं करता है। न ही हेल्पलाइन के जरिए कोई सहायता की जा रही है। ऐसे में बार के सदस्य अब हताशा और अवसाद की कगार पर आ गए हैं।'' 

जीएचसीएए अध्यक्ष ने मुख्य न्यायाधीश से अनुरोध किया है कि वह रजिस्ट्री से सारा विवरण मंगवाए और इस बात की पुष्टि करें कि लाॅकडाउन के दौरान चार या पांच अधिवक्ताओं ने ही 40 से 70 तक मामले दायर किए हैं और उनके मामलों को सिर्फ तीन अदालतों के समक्ष ही रखा गया है। ऐसा इसलिए नही किया गया है कि '' इन तीनों कोर्ट के माननीय न्यायाधीश ने उनको कोई फेवर किया है ,बल्कि इस कारण से कि यह सभी माननीय न्यायाधीश उदार दृष्टिकोण वाले हैं।''

यह भी तर्क दिया गया कि-

'' जब कुछ अधिवक्ताओं ने अपने मामलों को प्रसारित करने के लिए जोर दिया था तो उन्हें धमकी दी गई थी कि अगर उन्होंने इसी तरह का आग्रह जारी रखा तो उनके मामलों को नाम के साथ दो या तीन माननीय न्यायालयों के सामने सूचीबद्ध कर दिया जाएगा और वास्तव में उनके मामलों को इसी तरह सूचीबद्ध कर भी दिया गया था।'' 

अदालतों को नियमित रूप से खोलने के अपने अनुरोध को दोहराते हुए कहा कि 

"अब बंद रखने के लिए कुछ नहीं बचा है'' क्योंकि  एक्सपर्ट की राय के अनुसार वैक्सीन बनने में या उपलब्ध होने में कम से कम छह माह का समय लगेगा। इसलिए ''अदालतें एक अनिश्चित काल तक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अपना काम नहीं कर सकती है और विशेष रूप से जब ऐसी गंभीर शिकायतें की जा रही हों।''

''जूनियर्स वकील टूट जाएंगे, उनके पास जाने के लिए कोई जगह नहीं होगी और अगर ऐसी ही स्थिति बनी रही तो वह आत्महत्या कर सकते हैं।''

यह भी बात सामने आई है कि इस सप्ताह मद्रास हाईकोर्ट के तीन न्यायाधीश का COVID 19 पाॅजिटिव पाया गया है, इसलिए कोर्ट में शुरू की गई नियमित सुनवाई को फिर से वर्चुअल सुनवाई में तब्दील कर दिया गया है। 

पत्र डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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