शपथ लेने के बाद जज को भविष्य की संभावनाओं के बारे में एक पल भी नहीं सोचना चाहिए: जस्टिस अभय ओक

Update: 2025-06-30 06:10 GMT

बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र एंड गोवा द्वारा आयोजित सम्मान और रिटायरमेंट समारोह में बोलते हुए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस अभय ओक ने कहा कि शपथ लेने के बाद किसी भी जज को अपने भविष्य की संभावनाओं के बारे में एक क्षण के लिए भी नहीं सोचना चाहिए।

उन्होंने कहा,

"एक बार जब आप जज की शपथ लेते हैं तो भविष्य की संभावनाओं के बारे में एक पल के लिए भी नहीं सोचना चाहिए। जैसे ही आप ऐसा सोचने लगते है, आप अपनी शपथ के अनुसार काम नहीं कर पाएंगे।"

जस्टिस ओक ने कहा कि जजों को इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए कि उनके फैसलों पर राजनेता या आलोचक क्या कहेंगे बल्कि केवल यह देखना चाहिए कि फैसला संविधान की चारदीवारी के भीतर है या नहीं।

उन्होंने कहा,

"अपने फैसलों के प्रभावों के बारे में कभी न सोचें। केवल यह सोचें कि आपका फैसला संविधान की चारदीवारी के भीतर है या नहीं। यह जरूरी नहीं कि किसी राजनेता के खिलाफ दिया गया फैसला ही सबसे अच्छा हो। अगर कोई फैसला किसी राजनेता के पक्ष में भी हो और वह संविधान के अनुरूप हो, तो वह भी सही है। लोगों की और आलोचकों की बातों की चिंता न करें।"

अपने अनुभव साझा करते हुए उन्होंने कहा कि जब उन्होंने 28 जून, 1983 को वकालत शुरू की थी तब उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वह सुप्रीम कोर्ट के जज बनेंगे।

उन्होंने कहा,

"मैंने पूरी सेवा के दौरान सुप्रीम कोर्ट में काम करने का अवसर पाया। मैं मानता हूं कि जज के रूप में जो काम आप करते हैं, वह सबसे पवित्र कार्य होता है जो कहीं और नहीं कर सकते।”

उन्होंने जस्टिस एच.आर. खन्ना का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे एडीएम जबलपुर केस में अल्पमत फैसले देने से पहले उन्होंने अपनी पत्नी से कहा था कि वह देश के चीफ जस्टिस नहीं बन पाएंगे और वही हुआ।

समापन में उन्होंने लंबित मामलों पर चिंता व्यक्त की।

उन्होंने कहा,

"महाराष्ट्र की निचली अदालतों में करीब 56 लाख मुकदमे लंबित हैं। पुणे में ही 7.8 लाख केस लंबित हैं। बॉम्बे हाईकोर्ट में 6.64 लाख केस लंबित हैं, जिनमें से 50% से ज्यादा 5 साल से पुराने हैं। सुप्रीम कोर्ट में 84,872 मामले लंबित हैं।"

उन्होंने कहा कि 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि प्रति 10 लाख आबादी पर 50 जज होने चाहिए जबकि अब यह संख्या सिर्फ 22 है।

उन्होंने कहा,

"वकीलों को एकजुट होकर सरकार से कहना चाहिए कि जजों की संख्या बढ़ाई जाए वरना लोग न्यायपालिका की आलोचना करते रहेंगे।”

उन्होंने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट को नियुक्ति प्रक्रिया को सुचारू करना चाहिए वरना मामलों का बोझ बढ़ता ही रहेगा।

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