पत्रकार और यूट्यूबर अभिसार शर्मा ने भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 के तहत असम पुलिस द्वारा दर्ज की गई FIR के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
उनका कहना है कि यह FIR उनके द्वारा असम सरकार की 'सांप्रदायिक राजनीति' की आलोचना करने और एक निजी संस्था को 3000 बीघा ज़मीन आवंटित करने पर सवाल उठाने वाला वीडियो प्रकाशित करने के बाद दर्ज की गई।
उन्होंने BNS की धारा 152 (आईपीसी के तहत पूर्ववर्ती राजद्रोह कानून का स्थान लेने वाली धारा) की वैधता को भी चुनौती दी है। यह मामला 28 अगस्त को जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है।
संक्षेप में मामला
उक्त वीडियो में शर्मा ने गुवाहाटी हाईकोर्ट के मामले का ज़िक्र किया, जहां दीमा हसाओ क्षेत्र में खनन के उद्देश्य से निजी सीमेंट कंपनी (महाबल सीमेंट्स) को 3000 बीघा ज़मीन आवंटित करने के बारे में असम सरकार से सवाल किया गया। इस संदर्भ में, शर्मा ने आरोप लगाया कि असम सरकार ने अडानी समूह को 9000 बीघा ज़मीन दी और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा पर अडानी समूह को प्राथमिकता देने और सांप्रदायिक राजनीति में लिप्त होने का आरोप लगाया।
बताया गया कि शर्मा पर भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 152 (राष्ट्र की संप्रभुता को ख़तरे में डालना), 196 (विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना) और 197 (राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा के लिए हानिकारक आरोप) के तहत मामला दर्ज किया गया।
शिकायतकर्ता आलोक बरुआ हैं, जिन्होंने आरोप लगाया कि शर्मा की टिप्पणी से सांप्रदायिक भावनाएं भड़कीं और राज्य के अधिकारियों के प्रति अविश्वास की भावना पैदा हुई।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट वर्तमान में BNS की धारा 152 को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रहा है। हाल ही में इसने ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और सलाहकार संपादक करण थापर को असम पुलिस द्वारा BNS की धारा 152 के तहत दर्ज एक FIR में गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा भी प्रदान की है।
यह याचिका AoR सुमीर सोढ़ी के माध्यम से दायर की गई।
Case Title: ABHISAR SHARMA Versus UNION OF INDIA AND ORS., W.P.(Crl.) No. 338/2025