केंद्र के कोयला खदान की नीलामी के ख़िलाफ़ झारखंड सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कोयला खदान की नीलामी की शुरुआत करने के बाद झारखंड सरकार ने केंद्र के इस क़दम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
यह याचिका वक़ील तपेश कुमार सिंह ने दायर की है जिसमें उस नीलामी प्रक्रिया को चुनौती दी गई है जिसको इसलिए शुरू किया गया है कि देश में औद्योगिक गतिविधियां ज़ोर पकड़ें और उत्पादन बढ़ने से इसकी बाज़ार में क़ीमत में थोड़ी नरमी आए और भारत कोयला उत्पादन में आत्मनिर्भर हो जाए। याचिका में कहा गया है कि इस क़दम से आदिवासी लोगों को नुक़सान होगा।
याचिका के अनुसार,
"विशाल आदिवासी जनसंख्या पर सामाजिक और राज्य के विशाल वन क्षेत्रों और यहां रहने वाले लोगों पर पर्यावरण के प्रभाव के आकलन की ज़रूरत है जिन पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका है…COVID-19 के कारण दुनिया में जो निवेश का जो नकारात्मक माहौल है उसको देखते हुए इस विरल प्राकृतिक संपदा के वाणिज्यिक दोहन के बदले अच्छी क़ीमत मिलने की उम्मीद कम है।"
सिंह ने आगे कहा कि चूंकि खनिज क़ानून (संशोधन) अधिनियम 14 मई 2020 को ख़त्म हो चुका है इसलिए नीलामी की प्रक्रिया क़ानूनी रूप से वैध नहीं कही जा सकती।
याचिका आगे यह भी कहती है कि खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम 1957 की धारा 11(A)(1) के तहत कोयला के खनन के लिए प्रतिस्पर्धी ठेके के लिए ऐसे कंपनियों को आवेदन की अनुमति है जो भारत में कोयले का खनन करती हैं, इस तरह 11 जून को जो अधिसूचना जारी की गई उसके द्वारा वैश्विक भागीदारी और प्रतिस्पर्धा की बात को समाप्त कर दिया गया है।
इस मामले की तत्काल सुनवाई की ज़रूरत जताते हुए याचिककर्ता ने कहा है कि नीलामी प्रक्रिया को औपचारिक रूप से शुरू करने से एक दिन पहले ही झारखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इस निर्णय को चुनौती दे दी।
राज्य ने अपनी याचिका में कहा कि देश में ऊर्जा के लिए रणनीतिक और आर्थिक रूप से इस महत्त्वपूर्ण वस्तु पर नीतिगत फिसलन और वह भी इतने कम समय के अंतराल पर, निवेशकों के आत्मविश्वास को बढ़ाएगा कि नहीं विशेषकर COVID-19 की स्थिति को देखते हुए दुनिया के देश चीन से बिदक कर भारत की ओर देख रहे हैं?"
फिर, याचिका में केंद्र सरकार के इस निर्णय के आधार पर यह कहते हुए प्रश्न उठाया है और पूछा है कि इन दो तिथियों के बीच क्या हुआ जब अगस्त 2010 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कोयला खनन में 100 फ़ीसदी विदेशी निवेश की अनुमति दी थी और 13 मार्च 2020 को खनन क़ानून एक अस्थाई क़ानून बन गया।
राज्य ने इस आधार पर भी इस कदम को चुनौती दी है कि जिन राज्यों में कोयला भंडार है उनका मुनाफ़ा विदेशी प्रतिस्पर्धा के कारण कम हो जाता है जिसे पहले केंद्र सरकार ने अपने ही निर्णय से इनकार किया था