धार्मिक प्रथा 'होली सेक्रामेंट' के खिलाफ दायर याचिका रद्द, केरल हाईकोर्ट ने कहा- यह ईसाईयों की आस्‍था का मामला

Update: 2020-01-28 03:00 GMT

केरल हाईकोर्ट ने चर्चों में 'होली सेक्रामेंट' ‌प्रदान करने की धार्मिक प्रथा के खिलाफ दायर जनहित याचिका को रद्द कर दिया है।

डॉक्टरों और डेन्ट‌िस्टों के संगठन 'क्वालीफाइड प्राइवेट मेडिकल प्रैक्टिशनर्स एसोसिएशन' ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी , जिसमें 'होली सेक्रामेंट' वितर‌ित किए जाने की प्रथा को अस्वास्‍थ्यकर बताया गया था और कहा गया था कि उक्त प्रथा से आम जनता के स्वाथ्य को गंभीर खतरा है, विशेषकर सहभागियों के लिए।

उल्‍लेखनीय है कि 'होली सेक्रामेंट' ईसाई धर्म की प्रथा है, जिसमें गिरजाघरों में रोटी और शराब बांटकर यीशु मसीह के 'लास्ट सपर' को स्मरण किया जाता है।

होली सेक्रामेंट की प्रथा में चर्च में पादरी हर सहभागी के मुंह में एक ही प्याली और चम्मच से शराब परोसते हैं।

याचिकाकर्ताओं के अनुसार, यह प्रक्रिया लार से गंदगी फैलने की आशंका को जन्म देती है, जोकि कई बीमारियों के के प्रमुख कारणों में से एक है। उनमें से कुछ बीमारियां हवा में लार की बूंदों की मौजूदगी से भी फैल सकती हैं। लार की गंदगी के कारण बड़ी संख्या में लोगों में संक्रमण फैलने की आशंका होती है। इसलिए लोगों को ऐसी प्रथाओं में शामिल होने से बचना चाहिए।

यााचिका में मांग की गई थी कि खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण को यह सुनिश्‍चित करने के लिए निर्देशित किया जाए कि चर्च सहित सभी धार्मिक संस्थानों में जहां भोजन वितरित किया जाता है, वहां स्वच्छता संबंधी मानकों का पालन किया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के अनुसार केवल सुरक्षित भोजन ही व‌ितर‌ित किए जाए।

अधिनियम के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए, चीफ जस्टिस एस मानिकुमार और जस्टिस शाजी पी चाली की बेंच ने कहा कि खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण को चर्चों में होली सेक्रामेंट के वितरण या व्यवस्थापन में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं दिया गया है।

कोर्ट ने कहा धार्मिक समूह के सदस्यों द्वारा, होली सेक्रामेंट प्राप्त करने की प्रथा, सदस्यों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता है, जिसे संविधान के अनुच्छेद 21 में संरक्षित किया गया है।

बेंच ने कहा-

होली सेंक्रामेंट के वितरण की प्रथा, जिसे यूचरिस्ट कहा जाता है, प्रभु यीशु मसीह के लास्ट सपर का स्मरण है। कहानी यह है कि प्रभु यीशु के साथ जिस रात विश्वासघात किया गया, उन्होंने रोटी लिया और जब उन्हें धन्यवाद दिया गया तो उन्होंने उसे तोड़ कर कहा, 'यह मेरा शरीर है, जो तुम्हारे लिए है; इसे मेरी याद में करना।'

उसी तरह, रात के खाने के बाद, उन्होंने कप लिया और कहा- 'यह कप मेरे खून का नया नियम है; ऐसा करो, जब भी तुम मेरी याद में इसे प‌‌ियो। (1 कॉर‌िन्‍थ‌ियंस 11:23-25)। अधिकांश ईसाई पवित्र यूचरिस्ट, जिन्हें आमतौर पर पवित्र रोटी और पवित्र शराब कहा जाता है,कभी-कभी प्राप्त करते हैं और कुछ नियमित रूप से प्राप्त करते हैं। यह ईसाइयों का विश्वास है, जो यीशु मसीह के शिष्य हैं।

कैथोलिक समुदाय इसे यूचरिस्ट या मास कहता है। कुछ ईसाई संप्रदाय इसे 'पवित्र भोज' कहते हैं और इसे आमतौर पर 'पवित्र संस्कार' या 'होली सेक्रामेंट' कहते हैं। कई ईसाई समुदाया इसे बहुत अधिक महत्व देते हैं; हालांकि सभी ईसाई मानते हैं कि जब पवित्र रोटी और शराब प्राप्त की जाती है तो वे यीशु मसीह द्वारा निर्देशित सिद्धांतों और नियमों का पालन कर रहे होते हैं। इस समारोह को यीशु मसीह के लौटने तक पूरी ईमानदारी और विश्वास के साथ और समर्पण के साथ मनाया जाता है।

विभिन्न ईसाई संप्रदायों में होली सेक्रामेंट की प्राप्ति के संबंध में अलग-अलग दृष्टिकोण हैं। हालांकि, यह कभी अनिवार्य नहीं होता है और यह उन धर्मावलंबियों द्वारा प्राप्त किया जाता है, जिन्हें ईसाई धर्म में पूर्ण विश्वास है।

होली कम्यूनियन को ईसाई समुदाय द्वारा पवित्र माना जाता है, इसलिए पुजारियों द्वारा अत्यंत सावधानी और स्वच्छता से वितरित किया जाता है। एक धर्मावलंबी होली सेंक्रामेंट अपने विश्वास के कारण ग्रहण करता है, न कि भूख मिटाने के लिए। यह भोजन नहीं है। इसका अपना धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है।"

संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का हवाला देते हुए, हाईकोर्ट ने कहा कि धर्मावलंबी द्वारा होली सेक्रामेंट ग्रहण करना उक्त प्रथा में उस व्यक्ति का विश्वास है । किसी नागर‌िक का धार्मिक विश्वास उस व्यक्ति की धार्मिक स्वतंत्रता है।

हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए, कहा कि याचिकाकर्ता ऐसा कोई उदाहरण नहीं दिया है, जिससे पता चले कि होली सेक्रामेंट वित‌रित किए जाने से किसी व्यक्ति को कोई संक्रामक रोग हुआ या स्वास्‍थ्य संबंधी खतरा पैदा हुआ।

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