'डिक्री धारक को डिक्री का फल चखने में उम्र लग जाती है': सुप्रीम कोर्ट ने निष्पादन में देरी पर अफसोस जताया
सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए कि यह एक क्लासिक केस है, जहां निष्पादन की कार्यवाही खुद मुकदमेबाजी का एक और दौर बन गई और डिक्री धारक को डिक्री की सफलता का फल चखने में एक उम्र लग गई, हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर एसएलपी को खारिज कर दिया।
जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की बेंच ने इन्हीं टिप्पणियों के साथ डिक्री कोर्ट को डिक्री को तत्काल निष्पादित करने का निर्देश दिया।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, 'हम आक्षेपित आदेश में हस्तक्षेप करने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं हैं। डिक्री कोर्ट आज से एक महीने के भीतर डिक्री को तुरंत निष्पादित करेगा। तदनुसार, विशेष अनुमति याचिका खारिज की जाती है।"
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दो अन्य मामलों में भी लंबी निष्पादन कार्यवाही पर चिंता व्यक्त की थी।
मामला
3 मार्च, 2021 को प्रशासनिक सिविल जज (दक्षिण), साकेत कोर्ट, नई दिल्ली ने आदेश पारित किया था, जिसके खिलाफ याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
एक निष्पादन याचिका में, न्यायालय ने साइट प्लान में बिंदु 'X' के रूप में दिखाए गए हिस्से के लिए कब्जे का वारंट जारी किया था, साथ ही न्यायिक अधिकारी (bailiff) को एक और निर्देश दिया कि वह ताले और दरवाजे तोड़ दे और साइट प्लान में 'X' के रूप में चिह्नित हिस्से के पीछे के हिस्से को, जिस पर याचिकाकर्ताओं (निर्णय देनदार के कानूनी वारिस//मूल प्रतिवादी ) अवैध रूप से कब्जा किया है, उसे खाली कराएं।
हाईकोर्ट के समक्ष मुद्दा यह था कि क्या याचिकाकर्ता अपने खिलाफ पारित डिक्री को विफल करने के लिए उस पर निर्माण के जरिए अवैध कब्जे को जारी रख सकते हैं।
जस्टिस अमित बंसल की पीठ ने रमेश चंद सांकला और अन्य बनाम विक्रम सीमेंट और अन्य (2008) 14 एससीसी 58, रोशन दीन बनाम प्रीति लाल (2002) 1 एससीसी 100 के फैसलों का हवाला देते हुए फैसला सुनाया।
उन्होंने कहा, "उपरोक्त निर्णयों से यह पता चलता है कि संविधान के अनुच्छेद 226 और 227 के तहत शक्तियां विवेकाधीन और न्यायसंगत हैं और न्याय के व्यापक हित में प्रयोग की जानी चाहिए.....। याचिकाकर्ता संपत्ति के अवैध रूप से कब्जा करने और उस पर गैरकानूनी निर्माण करने के अपने खुद के गलत और अवैध कृत्यों से अनुचित लाभ प्राप्त करने की मांग कर रहे हैं ताकि डिक्री के निष्पादन को विफल किया जा सके। ऐसा वादी संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत न्यायालय के न्यायसंगत अधिकार क्षेत्र की मांग करने का हकदार नहीं है।"
केस शीर्षक: अजीत सिंह (मृतक) Thr. Lrs.& Ors. बनाम पद्मा भंडारी (मृतक) Thr. Lrs. & Ors. | Special Leave to Appeal (C) No(s). 949/2022
कोरम: जस्टिस एसके कौल और एमएम सुंदरेश