सुप्रीम कोर्ट ने कहा, आरोपी नशे के कारण बेहोशी की हालत में न हो तो नहीं कम होती अपराध की गंभीरता
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर आरोपी अत्यधिक नशे के कारण अक्षम हालात में न हो तो नशे को अपराध की गंभीरता कम करने का कारक नहीं माना जा सकता है।
सूरज जगन्नाथ जाधव बनाम महाराष्ट्र राज्य के मामले में जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एमआर शाह की खंडपीठ के समक्ष विवाद था कि आरोपी ने जब अपनी पत्नी पर केरोसिन डालकर माचिस से आग लगाई थी, तब वह शराब के नशे में था। उसकी हालत ऐसी थी कि वह समझ नहीं पा रहा था कि वह क्या कर रहा है। यह दलील दी गई कि उसने मर चुकी पत्नी को बचाने की कोशिश की, उसे बचाने के लिए उस पर पानी भी डाला और ऐसा करते हुए उसे चोट भी लगी।
कालू राम बनाम राजस्थान राज्य (2000) 10 SCC 324 के फैसले का हवाला देते हुए, जिस पर अभियुक्तों द्वारा भरोसा किया गया, बेंच ने कहाः
इसलिए, कालू राम (सुप्रा) के मामले में इस कोर्ट का फैसला, जिस पर आरोपी की ओर से पेश विद्वान वकील ने भरोसा किया है, अभियुक्त को किसी भी प्रकार से सहायता नहीं करता है, विशेष रूप से किसी सबुत की अनुपस्थिति में, जिससे ये साबित हो पाए कि अभियुक्त अत्यधिक नशे की स्थिति में था और/या वह ऐसे नशे में था कि उसने अपना होश खो दिया था।
संतोष बनाम महाराष्ट्र राज्य (2015) 7 SCC 641 और भगवान तुकाराम डांगे बनाम महाराष्ट्र राज्य (2014) 4 SCC 270 के निर्णयों का उल्लेख करते हुए बेंच ने अपील को खारिज कर दिया और कहा:
जिस तरह से आरोपी ने मृतक पर मिट्टी का तेल डाला और जब वह बचने के लिए कमरे से भागने की कोशिश कर रही थी, तब आरोपी ने पीछे से आकर माचिस की तीली फेंक दी और उसे जला दिया, हमारी राय है कि पीड़िता की हत्या की गई है और मामले में धारा 300 लागू होती है।