AI-Generated फर्जी सामग्री के लिए बिचौलियों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए: जस्टिस राजेश बिंदल
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस राजेश बिंदल ने कहा कि तकनीकी बिचौलियों को उनके द्वारा होस्ट की जाने वाली सामग्री के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए, खासकर जब इसमें हेरफेर की गई मीडिया और डीप फेक सामग्री शामिल हो। उन्होंने कहा कि भारत एक "बिल्ली-और-चूहे के युग" में प्रवेश कर रहा है, जहां तकनीक विनियमन से भी तेज़ी से विकसित हो रही है, जिससे निजता, डेटा सुरक्षा और न्याय प्रणाली के लिए गंभीर जोखिम पैदा हो रहे हैं।
ऑल इंडिया लॉयर्स फ़ोरम द्वारा "कानूनी व्यवस्था में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की भूमिका" विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में बोलते हुए जस्टिस बिंदल ने इस बारे में बुनियादी सवाल उठाए कि जब AI-Generated वीडियो और तस्वीरें बिना किसी रोक-टोक के फैलती हैं तो ज़िम्मेदारी किसकी होनी चाहिए:
"किसी को ज़िम्मेदार होना होगा कि उसने इसे बनाया... बिचौलियों को भी ज़िम्मेदार बनाया जाना चाहिए कि जो कुछ भी अपलोड किया जाता है, उसकी ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए।"
उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि इन प्लेटफ़ॉर्म को केवल निष्क्रिय होस्ट के रूप में काम नहीं करना चाहिए, बल्कि अपने प्लेटफ़ॉर्म पर प्रसारित होने वाली अनियंत्रित और असत्यापित सामग्री की भी ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए।
उन्होंने एक सत्यापन प्रणाली की आवश्यकता पर ज़ोर दिया:
"ऐसी प्रणाली क्यों नहीं हो सकती... जहां मध्यस्थ सत्यापन के बाद ही फ़ाइल अपलोड करे, न कि कोई तुरंत उसे अपलोड कर दे... उस पर जांच होनी चाहिए।"
उन्होंने आगे कहा कि चीन जैसे देश पहले से ही मध्यस्थों पर कड़े शुल्क लगाते हैं और भारत को भी इसी तरह के मॉडल पर विचार करना चाहिए।
जस्टिस बिंदल ने अनियमित AI सामग्री के खतरनाक परिणामों पर चेतावनी दी।
उन्होंने कहा,
"AI ने कुछ वीडियो, कुछ फ़ोटो डीप फ़ेक विकसित किए... अगर सत्यापन के बाद उन्हें पता चलता है कि हाँ, यह फ़र्ज़ी है तो उन्हें इसे अपलोड नहीं करना चाहिए।"
उन्होंने संवेदनशील डेटा की व्यापक उपलब्धता के प्रति भी आगाह किया:
"बहुत सारी जानकारी... डार्क वेब पर बिक्री के लिए उपलब्ध है।"
सात ही कहा कि मध्यस्थों को इस तरह के दुरुपयोग को रोकने के लिए कार्रवाई करनी चाहिए।
उन्होंने भारत में "डिजिटल गिरफ़्तारियों", धोखाधड़ी वाले धन हस्तांतरण और निष्क्रिय बैंक खातों के दुरुपयोग की बढ़ती प्रवृत्ति के मुद्दे पर भी बात की, जिसने वित्तीय संस्थानों और नियामकों के लिए मज़बूत निवारक प्रणालियां अपनाने की तत्काल आवश्यकता पैदा कर दी है। उन्होंने RBI द्वारा हाल ही में म्यूल हंटर AI की तैनाती का स्वागत किया, जो अचानक बढ़े हुए उच्च-मूल्य वाले लेनदेन दिखाने वाले संदिग्ध बैंक खातों को स्वचालित रूप से फ्रीज कर देता है।
इसके अलावा, उन्होंने कानूनी क्षेत्र में AI के महत्व पर ज़ोर दिया और बताया कि AI टूल्स ने मामलों में देरी के कारणों का पता लगाने में मदद की। उन्होंने सहज रूप से एक आंकड़ा भी दिया कि AI टूल्स ने यह पता लगाने में मदद की कि लगभग 35% स्थगन वकीलों की अनुपस्थिति के कारण होते हैं। उन्होंने आगे कहा कि AI मोटर दुर्घटना मुआवज़ा गणना और NI Act की धारा 138 के तहत चेक बाउंस मामलों जैसे नियमित मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, जो अकेले भारत के कुल लंबित मामलों का लगभग 10% है।
अंत में जस्टिस बिंदल ने लोगों से तकनीक को अपनाने और उस पर निर्भर न रहने का आग्रह किया, जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 51ए(जे) में परिलक्षित होता है, जो नागरिकों से आलोचनात्मक सोच बनाए रखते हुए वैज्ञानिक सोच विकसित करने का आग्रह करता है।