अदालत में संतुलन कभी-कभी अनुचित और अधिक अनुचित के बीच होता है: सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ ने गुरुवार को टिप्पणी की कि अदालत में संतुलन हमेशा उचित और अनुचित के बीच नहीं होता, बल्कि कभी-कभी यह दो अनुचित चीजों के बीच होता है। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में अदालत को यह निर्धारित करना है कि क्या अधिक अनुचित है।
यह टिप्पणी सहायक अनुभाग अधिकारियों की नियुक्ति और पदोन्नति से जुड़े विवाद में की गई। इस मामले की सुनवाई सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच कर रही है।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने मामले से निपटते हुए कहा,
"अन्याय केवल मामले के गुण-दोष को नहीं देख रहा है। अन्याय यह भी देख रहा है कि क्या हमें सुलझाए गए मुद्दों को सुलझाना चाहिए। अदालत में संतुलन हमेशा इस बात के बीच नहीं होता है कि क्या उचित है और क्या अनुचित है। कभी-कभी यह अनुचित और अधिक अनुचित के बीच होता है। फिर हमें यह देखना होगा कि कौन-सा अधिक अनुचित है। अब इस मुद्दे को सुलझाना अधिक अनुचित होगा।"
याचिकाकर्ताओं ने अदालत से अनुरोध किया कि असिस्टेंट के पद पर सीधी भर्ती या पदोन्नति द्वारा की गई नियुक्तियां, जो याचिकाकर्ताओं की पदोन्नति से पहले 2002 से 2005 के बीच की गई हैं, उन पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए और उन्हें अमान्य घोषित किया जाना चाहिए।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि इस तरह के पुनर्विचार के बाद ही पदोन्नति के माध्यम से अनुभाग अधिकारियों का पद भरा जाना चाहिए।
केस टाइटल: R.THENMOZHI-I AND ORS. v. HIGH COURT OF JUDICATURE AT MADRAS AND ORS. | Diary No. 32571-2021 XII