"कानून की अज्ञानता कोई बचाव नहीं है": सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 32 के तहत दायर रिट याचिका रद्द की, कलकत्ता हाईकोर्ट के समक्ष लंबित याचिका की शीघ्र सुनवाई की मांग की थी

Update: 2022-11-11 14:16 GMT

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने एक रिट याचिका को खारिज करते हुए कहा कि "कानून की अज्ञानता कोई बचाव नहीं है।" याचिका में हाईकोर्ट के समक्ष लंबित एक याचिका की शीघ्र सुनवाई के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी।

नेपाल दास नामक एक व्यक्ति ने कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा याचिका की शीघ्र सुनवाई की मांग करते हुए एक रिट याचिका के जरिए सुप्रीम कोर्ट का का दरवाजा खटखटाया था।

जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस ओका की पीठ ने कहा,

"भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दायर की गई है, जिसमें एक याचिका की शीघ्र सुनवाई के लिए निर्देश देने की मांग की गई है जो पहले से ही हाईकोर्ट के समक्ष लंबित है। कानून की अज्ञानता कोई बचाव नहीं है।",

अनुच्छेद 32

भारत के संविधान का अनुच्छेद 32 मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के संबंध में सुप्रीम कोर्ट को मूल अधिकार क्षेत्र देता है। अनुच्छेद 32 के तहत उपचार केवल संविधान के भाग III द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन तक ही सीमित है।

पिछले महीने जस्टिस कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने अनुच्छेद 32 के तहत दायर एक याचिका पर आश्चर्य व्यक्त किया, जिसमें यह घोषणा करने की मांग की गई थी कि संविधान का भाग III अल्ट्रा वायर्स और शून्य है।

पीठ ने याचिका खारिज करते हएु कहा, विडंबना यह है कि यह रिट याचिका स्वयं संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर की गई है जो कि अध्याय III के तहत एक मौलिक अधिकार है, जिसे वह अल्ट्रा वायर्स और शून्य के रूप में घोषित करना चाहता है।

केस डिटेलः नेपाल दास बनाम कलकत्ता हाईकोर्ट| 2022 लाइव लॉ (एससी) 946 | डब्ल्यूपी (सीआरएल) 306/2022 | 7 नवंबर 2022 | जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस. ओका

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