हिरासत केंद्रों में रखे गए विदेशी नागरिकों के बच्चों के हित की सुरक्षा कैसे करेंगे? कर्नाटक हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा
कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वे इस बात पर अपना जवाब दें कि गिरफ्तार किए गए अवैध अप्रवासियों के उन बच्चों के हित की सुरक्षा के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं, जिन्हें हिरासत केंद्रों में रखा गया है।
न्यायमूर्ति के. एन.फेनेंद्र ने राज्य और केंद्र सरकार से कहा है कि यदि इस विषय पर कोई अंतरराष्ट्रीय संधिपत्र या समझौता और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय हैं तो उनका हवाला दिया जाए और मामले में समाधान निकाला जाए।
केंद्र व राज्य सरकार को 4 दिसंबर तक अदालत के समक्ष उनका जवाब देने के लिए कहा गया है। अदालत ने कहा कि,''यदि बच्चा नाबालिग है तो उसे उसके माता-पिता के साथ रखने की अनुमति दी जा सकती है लेकिन क्या होगा यदि वह नाबालिग नहीं है और माता-पिता इतने सक्षम नहीं है कि वह नजरबंदी केंद्र के बाहर, उसकी देखभाल कर सकें। ऐसे बच्चों का भविष्य क्या होगा? ऐसे बच्चों के लिए राज्य को व्यवस्था करनी होगी। अगर कोई समाधान नहीं है, तो हमें दिशा-निर्देश पारित करने होंगे।''
कथित बांग्लादेशी नागरिकों की याचिका पर सुनवाई
अदालत कथित बांग्लादेशी नागरिकों, बाबू खान और अन्य द्वारा दायर की गई जमानत अर्जियों पर सुनवाई कर रही है, जिन्हें विदेशी अधिनियम के तहत राज्य में अवैध रूप से रहने के मामले में गिरफ्तार किया गया है। पिछली सुनवाई पर सरकार ने अदालत को सूचित किया कि 58 अवैध विदेशी नागरिकों को निर्वासित किया जा चुका है।
केंद्र सरकार के वकील ने अदालत को बताया कि गृह मंत्रालय ने 2014 और 2018 में सभी राज्यों को पत्र लिखा था कि वह अपने यहां हिरासत केंद्र स्थापित करें, ताकि उन विदेशी नागरिकों को रखा जा सके जो भारत में अवैध रूप से रह रहे हैं। यह हाल का विकास नहीं है। सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को जारी अधिसूचना में राज्यों द्वारा स्थापित किए जाने वाले नजरबंद केंद्रों के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया दी गई थी। ऐसे केंद्र जेलों से बाहर होंगे और गिरफ्तार किए गए विदेशियों की संख्या के आधार पर होंगे। एफआईआर दर्ज होने या संज्ञान लेने के तुरंत बाद से ही विदेशी नागरिक के प्रत्यावर्तन / निर्वासन के लिए प्रक्रिया शुरू कर दी जाती है।
इसके अलावा, यह भी कहा गया कि भारत की 33 देशों के साथ समझौता/ संधि है, जिसमें बंगलादेश और विदेशी नागरिक शामिल हैं, यदि अन्य मानदंडों को पूरा किया जाता है, तो उन्हें भारत की एक अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद उनकी सजा काटने के लिए उनके देश वापस भेजा जा सकता है। जब तक उन्हें वापस नहीं भेजा जाता है, उन्हें हिरासत केंद्रों में रखा जाता है ताकि शीघ्र निर्वासन के लिए वह आसानी से उपलब्ध हो सकें। अन्यथा कई मामलों में जब विदेशी नागरिक जमानत पर रिहा होते हैं, तो वे उनके निवार्सन से पहले ही फरार हो जाते हैं।
न्यायमूर्ति के.एन.फेनेंद्र ने कहा,
'' जमानत के आदेश या सजा के आदेश में यह स्पष्टीकरण देने होंगे कि जब एक बार कोई विदेशी नागरिक रिहा हो जाए तो उसे हिरासत केंद्र में स्थानांतरित करना होगा। यह निरंतर अपराध है और उन्हें समाज में घूमने की अनुमति नहीं दी जा सकती। गिरफ्तार किया गया है या नहीं अगर उनको पकड़ा गया है/ एफआईआर दर्ज की गई है, तो उनको अदालत के सामने लाया जाए। भले ही अदालत अग्रिम जमानत या नियमित जमानत दे, लेकिन उनको निरोध केंद्रों में रखा जाना चाहिए।''
अदालत ने कहा, ''हालांकि, विदेशी नागरिकों की गरिमा को बनाए रखना होगा। हिरासत केंद्र ,छात्रों या वरिष्ठ नागरिकों के छात्रावास की तरह सभी बुनियादी सुविधाओं के साथ होने चाहिए। न्यायालय विदेशी नागरिकों को एफआरआरओ कार्यालयों में उपस्थिति दर्ज कराने के लिए निर्देश जारी नहीं कर सकती।''
केंद्र सरकार के वकील ने कहा कि राज्य को अधिसूचनाओं में निर्धारित एसओपी का पालन करना होगा। अगर आरोपी को जमानत पर रिहा किया जाता है तो यह राज्य के प्रशासन की जिम्मेदारी होगी कि वह उसका पता लगाए और उसे हिरासत केंद्र में रखे। कोर्ट ने कहा कि,''बेंगलुरु बहुत सारे अवैध प्रवासियों से भर गया है, इसीलिए मुझे इस मामले को तय करने में इतना समय लग रहा है।''
गिरफ्तार किए गए बांग्लादेशी नागरिकों में से एक के वकील सिराजुद्दीन अहमद की ओर से एक सवाल पूछा गया कि क्या जिस विदेशी नागरिक ने आधार कार्ड, इलेक्शन आई कार्ड बनवा लिया है और वोट दिया है, तो उसका वोट वैध है? अदालत ने कहा, ''हां, उसका वोट तब तक वैध है जब तक कि उसको हिरासत में नहीं लिया जाता है। जैसे ही वह पकड़ा जाता है उसे हिरासत केंद्र में रखा जाना चाहिए। आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र नागरिकता का अधिकार प्रदान नहीं करते।''
पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि अपराध मामूली है या विदेशी अधिनियम के तहत है, तो विदेशी नागरिकों को हिरासत केंद्र के अंदर रखा जा सकता है,जिसमें महिला व पुरूषों को अलग-अलग रखा जाएगा। हालांकि, अगर अपराध गंभीर है, तो संभवत जमानत खारिज कर दी जाएगी।