''हम राज्यों को कैसे आदेश जारी कर सकते हैं कि अपराध न करेंं''- राकेश पांडे एनकाउंटर मामले की जांच सीबीआई से करवाने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने विचार करने से इनकार किया

Update: 2020-08-25 13:18 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने उस जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया है,जिसमें मांग की गई थी कि 9 अगस्त को लखनऊ में वांछित अपराधी राकेश पांडे को कथित मुठभेड़ में मार गिराने के मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से करवाई जाए। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट के पास जाने की स्वतंत्रता दी है।

मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन की पीठ ने अधिवक्ता विशाल तिवारी की तरफ से दायर याचिका पर सुनवाई की, जिसमें मांग की गई थी कि राकेश पांडे के कथित मुठभेड़ मामले की निष्प्क्ष,स्वतंत्र और पक्षपात रहित जांच करवाई जाए। यूपी एसटीएफ अमिताभ यश के अनुसार 9 अगस्त को यूपी स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने राकेश पांडे को एक मुठभेड़ के दौरान मार गिराया था।

अधिवक्ता तिवारी अदालत में पेश हुए और कहा कि ''हर दिन, राज्य इस तरह के अपराध कर रहे हैं।'' इस पर, सीजेआई एसए बोबडे ने जवाब दिया, ''क्या आप हमसे अपेक्षा करते हैं कि हम राज्यों के खिलाफ आदेश पारित करें ताकि अपराध न कर सकें?''

याचिकाकर्ता ने शीर्ष अदालत से आग्रह किया था कि एक तीन सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया जाए। जिसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश द्वारा की जाए और उसके सदस्यों मे हाईकोर्ट से सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को शामिल किया जाए।

याचिका में यह भी निर्देश देने की मांग की गई थी कि उन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज की जाए जिन्होंने कथित मुठभेड़ को अंजाम दिया है। कहा था कि इन सभी के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 (मर्डर), 201 (सबूतों को मिटाना), 120-बी (आपराधिक षड्यंत्र) और अन्य धाराओं के तहत केस दर्ज किया जाए।

यह भी दलील दी गई कि सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस को गैंगस्टर विकास दुबे के कथित एनकाउंटर के बाद चेतावनी दी थी कि ऐसी घटनाओं को दोहराया नहीं जाना चाहिए। "लेकिन यूपी पुलिस ने सभी चेतावनियों को एक तरफ रख दिया है और न्यायपालिका के वर्चस्व को चुनौती दे रही है। यह भी बताया गया कि 9 अगस्त 2020 को सुबह सरोजनी नगर पुलिस स्टेशन के पास लखनऊ-कानपुर राजमार्ग पर एक मुठभेड़ में आरोपी राकेश पांडे / हनुमान पांडेय को उत्तर प्रदेश स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने गोली मार दी थी,जो भाजपा नेता कृष्णानंद राय की वर्ष 2005 में हुई हत्या के मामले में आरोपी था।''

तिवारी ने आरोप लगाया है कि इससे ''आतंक का राज'' सामने आया है और ''अभियुक्तों को मारने के लिए पूरे राज्य के अधिकारियों को संगठित किया गया है।'' उन्होंने कहा कि यह सब राज्य सरकार के प्रमुख की सहमति के बिना नहीं किया जा सकता है और इस तरह के पंजीकृत संगठित हत्यारे डेमोक्रेटिक सोसाइटी में अवांछित हैं।

याचिका में कहा गया है कि-

''अतिरिक्त न्यायिक हत्या या फर्जी पुलिस मुठभेड़ों की कानून के तहत पूरी तरह से निंदा की गई है। एक लोकतांत्रिक समाज में पुलिस को अंतिम न्याय देने या दंडात्मक प्राधिकारी बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। सजा की शक्ति केवल न्यायपालिका के पास निहित है। जब पुलिस डेयर डेविल बन जाती है तो कानून के पूरे नियम ध्वस्त हो जाते हैं और पुलिस के खिलाफ लोगों के मन में भय पैदा हो जाता है, जो लोकतंत्र के लिए बहुत खतरनाक है और इससे आगे भी अपराध बढ़ सकते हैं।''

उत्तर प्रदेश स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने लखनऊ के सरोजनी नगर पुलिस स्टेशन के पास मुठभेड़ में भाजपा नेता कृष्णानंद राय की 2005 में हुई हत्या के एक आरोपी राकेश पांडे को गोली मार दी थी। यूपी के मऊ जिले के रहने वाले पांडेय उर्फ​हनुमान पांडे पर 1 लाख रुपये का इनाम रखा गया था। वह एक वांछित अपराधी था और कई जघन्य अपराधों में भी शामिल था।

यह मुठभेड़ कानपुर के गैंगस्टर विकास दुबे के मामले के एक महीने बाद हुई थी। विकास पर 8 पुलिसकर्मियों की हत्या का आरोप था। जब उत्तर प्रदेश एसटीएफ विकास को लेकर आ रही थी तो उनकी कार कानपुर पहुंचने के बाद पलट गई थी। पुलिस का दावा है कि दुबे ने भागने का प्रयास किया था, लेकिन पुलिस ने उसे जिंदा पकड़ने की कोशिश की, लेकिन आत्मरक्षा के चलते उसे गोली मारनी पड़ी। इस मुठभेड़ में चार पुलिसकर्मी घायल हो गए थे,दुबे को अस्पताल ले जाया गया था,परंतु डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया था।

मुठभेड़ की संदिग्ध प्रकृति को लेकर बड़े हंगामे के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) बीएस चैहान की अध्यक्षता में 3 सदस्यीय पैनल को मंजूरी दी थी। जो आठ पुलिसकर्मियों की हत्या और गैंगस्टर विकास दुबे व उसके पांच कथित सहयोगियों की मुठभेड़ में हुई हत्या के मामलों की जांच करेगा।

19 अगस्त को, सुप्रीम कोर्ट ने उस आवेदन को खारिज कर दिया था जिसमें यूपी के गैंगस्टर विकास दुबे की कथित मुठभेड़ की जांच करने के लिए गठित न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) बी एस चैहान की अध्यक्षता वाले जांच आयोग को भंग करने की मांग की गई थी।

Tags:    

Similar News