अस्पताल द्वारा गलत परिवार को डेड बॉडी देने का मामलाः सुप्रीम कोर्ट ने एनसीडीआरसी के मुआवजा कम करने के आदेश पर रोक लगाई
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के उस आदेश पर रोक लगा दी है,जिसमें केरल के एक शोक संतप्त परिवार को दिए गए मुआवजे को कम कर दिया गया था। इस परिवार को उनके मृतक सदस्य के अंतिम संस्कार करने से वंचित कर दिया गया था क्योंकि अस्पताल ने इनके परिजन की डेड बाॅडी किसी अन्य परिवार को सौंप दी थी।
जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस नवीन सिन्हा की खंडपीठ ने प्रतिवादी-अस्पताल को नोटिस जारी किया है और कहा है कि लगाए गए आदेश के संचालन पर रोक रहेगी।
2009 में, एर्नाकुलम मेडिकल सेंटर हास्पिटल ने याचिकाकर्ताओं के पिता पुरुषोत्तमन के शव को एक कांथी के परिवार को सौंप दिया था। गलती का पता लगने से पहले, कांथी के परिवार ने पुरुषोत्तमन के शरीर का अंतिम संस्कार कर दिया था। इस प्रकार याचिकाकर्ताओं को उनके पिता को एक आखिरी बार देखने से वंचित कर दिया था।
ऐसी परिस्थितियों में, वर्तमान याचिकाकर्ताओं ने राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के समक्ष आवेदन दायर किया था। आयोग ने अस्पताल को निर्देश दिया था कि वह अपनी सेवाओं में बरती गई लापरवाही के लिए याचिकाकर्ताओं को ब्याज सहित 25 लाख रुपये मुआवजा प्रदान करें।
हालांकि, एनसीडीआरसी ने अस्पताल द्वारा दायर अपील पर सुनवाई करते हुए मुआवजे की राशि को घटाकर 5 लाख रुपये कर दिया। इसी के साथ अस्पताल को निर्देश दिया गया था कि वह राज्य आयोग के उपभोक्ता कानूनी सहायता खाते में जुर्माने के तौर पर 25 लाख रुपये जमा कराए।
सर्वोच्च आयोग द्वारा दिया गया तर्क यह था कि कांथी के रिश्तेदारों ने पुरुषोत्तमन का सही तरीके से अंतिम संस्कार कर दिया था और उनकी राख को याचिकाकर्ताओं को दे दिया गया था ताकि वह बाकी के धार्मिक संस्कारों को पूरा कर सकें।
याचिकाकर्ताओं ने एनसीडीआरसी के ''असंवेदनशील दृष्टिकोण'' की निंदा करते हुए उपरोक्त आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है।
एसएलपी के अनुसार, इस आदेश का ऑपरेटिव भाग आयोग द्वारा जुलाई, 2019 में पारित किया गया था। हालांकि, सभी कारणों के साथ पूर्ण निर्णय मार्च 2020 में जारी किया था। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि ''ऑपरेटिव भाग को पारित करने और आठ महीने के अंतराल के बाद तर्क आदेश पारित करने की आदत अनुचित है।''
यह भी कहा गया कि याचिकाकर्ताओं ने जो मानसिक पीड़ा और आघात झेला है,उसको देखते हुए मुआवजे के रूप में 5 लाख रुपये की राशि अपर्याप्त है। उनको आखिरी बार अपने पिता को देखने के अवसर से भी वंचित कर दिया गया। यह भी दलील दी गई कि उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया गया था क्योंकि वे हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार अपने पिता का अंतिम संस्कार नहीं कर पाए।
एओआर कार्तिक अशोक के निर्देश पर वरिष्ठ अधिवक्ता वी चिताम्बरेश याचिकाकर्ताओं के लिए पेश हुए।
केस का शीर्षकः पीआर जयश्री व अन्य बनाम एर्नाकुलम मेडिकल सेंटर व अन्य
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