सरकारी ड्यूटी का पालन कराने के लिए परमादेश जारी करने को हाईकोर्ट बाध्य : सुप्रीम कोर्ट
“उचित मामलों में पक्षकारों के साथ अन्याय होने से रोकने के लिए कोर्ट खुद वैसा आदेश जारी कर सकता है या निर्देश जारी कर सकता है, जो सरकार या लोक अधिकारियों को देना या करना चाहिए था।”
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को जारी एक फैसले में कहा है कि हाईकोर्ट को न केवल परमादेश (रिट ऑफ मैण्डैमस) जारी करने का अधिकार है, बल्कि वह सरकारी कर्तव्यों के निर्वहन के लिए अपने इस अधिकार के इस्तेमाल को लेकर बाध्य भी है।
न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की खंडपीठ ने कहा कि उचित मामलों में पक्षकारों के साथ अन्याय होने से रोकने के लिए कोर्ट खुद वह आदेश जारी कर सकता है या निर्देश जारी कर सकता है, जो सरकार या सरकारी अधिकारियों को देना या करना चाहिए था।
यह मामला निजी सड़क विवाद से जुड़ा है। हरे कृष्ण मंदिर ट्रस्ट ने एक अर्जी दायर करके ट्रस्ट को जाने वाले आतंरिक मार्ग को गलत तरीके से पुणे नगर निगम के नाम पर की गयी प्रविष्टि को सुधारने की मांग राज्य सरकार से की थी। महाराष्ट्र सरकार के शहरी विकास विभाग ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था और कहा था कि जमीन का मालिकाना हक पुणे नगर निगम का था। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के आदेश को चुनौती देने वाली ट्रस्ट की याचिका खारिज कर दी थी और कहा था कि विवादित जमीन क्षेत्रीय एवं शहरी योजना कानून की धारा 88 के तहत आती है।
सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को निरस्त करते हुए हरे कृष्ण मंदिर ट्रस्ट की अपील स्वीकार कर ली और कहा कि विवादित निजी सड़क किसी भी समय पुणे नगर निगम की नहीं रही।
सुप्रीम कोर्ट की दो-सदस्यीय बेंच ने गलत प्रविष्टि को ठीक करने के लिए परमादेश जारी करने से हाईकोर्ट द्वारा इनकार किये जाने को लेकर कहा :
"संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत प्राप्त शक्तियों का इस्तेमाल करने वाले उच्च न्यायालयों को न केवल मैण्डैमस रिट या उसी प्रकृति का आदेश जारी करने का अधिकार है, बल्कि ये वैसे सभी आदेशों पर अमल कराने की भी शक्तियां रखते हैं जिन्हें सरकार अमल कराने में असफल रही हो या सरकार ने सांविधिक, कानून या नीतिगत फैसले के आधार पर प्राप्त विशेषाधिकार का सही इस्तेमाल नहीं किया हो या उसने कुत्सित इरादों से या अप्रासंगिक विचार के तहत आदेश पर अमल किया हो। इन सभी मामलों में हाईकोर्ट को परमादेश (रिट ऑफ मैण्डैमस) जारी करना चाहिए और सरकार अथवा सार्वजनिक प्राधिकार को मिले विशेषाधिकार का उचित और कानून के दायरे में अमल को मजबूर करने के लिए दिशानिर्देश जारी करने चाहिए।"
कोर्ट ने आगे कहा :
"कोर्ट पब्लिक ड्यूटी का पालन कराने के लिए मैण्डैमस रिट जारी करने के लिए बाध्य है। इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि कानूनी कर्तव्य पर अमल कराने के लिए परमादेश जारी करना जरूरी है। आवदेक को इस कर्तव्य की मौजूदगी का अहसास कराया जाना चाहिए। इससे पहले कि परमादेश जारी किया जा सके, सांविधिक कर्तव्य जरूर मौजूद होना चाहिए। जब तक प्रावधान में एक वैधानिक कर्तव्य या अधिकार नहीं महसूस किया जा सकता, तब तक उसे लागू करने के लिए मैण्डैमस जारी नहीं किया जा सकता।"
"हाईकोर्ट अनुच्छेद 226 के तहत याचिका की सुनवाई करने के अधिकार से सिर्फ इसलिए वंचित नहीं है कि राहत पाने के याचिकाकर्ता के अधिकार पर विचार करने में तथ्यों के प्रश्नों का भी निर्धारण करना होता है। अनुच्छेद 226 के तहत दायर याचिका में हाईकोर्ट के पास तथ्य और कानून दोनों पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र प्राप्त है। यह सही है कि अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल विवेकाधीन है, लेकिन विशेषाधिकार का इस्तेमाल मजबूत न्यायिक सिद्धांतों के आधार पर किया जाना चाहिए।"
केस का विवरण
केस नं. : सिविल अपील संख्या 6156/2013
केस का नाम : हरे कृष्ण मंदिर ट्रस्ट बनाम महाराष्ट्र सरकार
कोरम : न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा और इंदिरा बनर्जी
वकील : सीनियर एडवोकेट पल्लव सिसोदिया, एडवोकेट ब्रज के. मिश्रा (अपीलकर्ताओं के लिए), निशांत आर. कातनेश्वरकर (सरकार की ओर से) और एडवोकेट मार्कंड डी. आदकर एवं राजेश कुमार (निगम के लिए)
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