हाईकोर्ट तथ्यों के जटिल प्रश्न खड़े करने वाली रिट याचिका सुनने से इनकार कर सकता है : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर स्पष्ट किया है कि हाईकोर्ट उस रिट याचिका को सुनने से इनकार कर सकता है जिसमें तथ्यों के जटिल प्रश्न खड़े किये गये हों।
इस मामले में आत्मानन्द सिंह ने हाईकोर्ट के समक्ष एक रिट याचिका दायर की थी, जिसमें उसने पंजाब नेशनल बैंक को करार के तहत कानूनी तौर पर स्वीकृत दावों के अनुरूप भुगतान करने तथा तत्काल प्रभाव से उसके आयकर कागजात जमा कराने के निर्देश देने का अनुरोध किया था।
बैंक ने रिट याचिका में उठाये गये जटिल तथ्यों को आधार बनाकर उसकी स्वीकार्यता पर ही सवाल खड़े कर दिये थे। बैंक का कहना था कि जटिल तथ्यों वाली याचिकाओं का निपटारा रिट अधिकार क्षेत्र के इस्तेमाल के तहत नहीं किया जा सकता। बैंक ने लेनदेन एवं दस्तावेजों पर सवाल खड़े करते हुए हलफनामा भी दाखिल किया था।
हालांकि, आत्मानंद की रिट याचिका हाईकोर्ट ने स्वीकार कर ली थी। एकल पीठ ने कहा था कि याचिकाकर्ता ने पर्याप्त दस्तावेज पेश किये थे। हाईकोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि 'बैंक रिट याचिका की स्वीकार्यता को लेकर तकनीकी तौर पर आपत्ति दर्ज कराते हुए इस जटिल स्थिति से बच निकलना चाहता था।'
न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की बेंच ने हाईकोर्ट के इस रुख को नामंजूर करते हुए कहा :
"जब याचिका में जटिल प्रक़ृति के सवाल खड़े किये जाते हैं, जैसा कि इस मौजूदा मामले में किया गया है, तो उनके निर्धारण के लिए संबंधित पक्ष द्वारा मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्य पेश करने और उन्हें साबित करने की आवश्यकता होती है।
इस मामले में केवल राशि रिफंड का आदेश देने संबंधी राहत मांगी गयी थी, इसलिए हाईकोर्ट को इस रिट याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर लेना चाहिए था और इसके बजाय उसे संबंधित पक्षों को सिविल वाद का रास्ता अपनाने के लिए कहना चाहिए था।
यदि यह ऐसा मामला होता जहां रिट याचिका में उल्लेखित महत्वपूर्ण तथ्य स्वीकृत या निर्विवाद तथ्य होते तो उच्च न्यायालय को कानून के दायरे में याचिका के गुण-दोष के आधार पर रिट याचिकाकर्ता के दावे की जांच को उचित ठहराया जा सकता था।"
कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए कहा कि हाईकोर्ट को रिट याचिका की सुनवाई से खुद को अलग रखना चाहिए था और संबंधित पक्षों के बीच विवादित मुद्दों को निपटाने के लिए उन्हें न्याय का कोई अन्य उपयुक्त तरीका अपनाने को कहना चाहिए था।
केस नं : एसएलपी (सिविल) नं- 11603/2017
केस नाम : पंजाब नेशनल बैंक बनाम आत्मानन्द सिंह
कोरम : न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी
वकील : वरिष्ठ अधिवक्ता ध्रुव मेहता, जे. एस. अत्री एवं वकील देवाशीष भरुका
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