उच्च न्यायालय CrPC की धारा 482 के तहत जांच के तरीके में हस्तक्षेप नहीं कर सकता, पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का फैसला

Update: 2019-09-06 02:38 GMT

सर्वोच्च न्यायालय ने यह दोहराया है कि उच्च न्यायालय संहिता द्वारा धारा 482 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए, जांच/अन्वेषण के तरीके में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आरोपी द्वारा धारा 482 CrPC के तहत दायर एक याचिका का निस्तारण करते हुए कुछ निर्देश दिए थे, जिनमें अन्वेषण अधिकारी को बदलने के निर्देश के साथ अनुपूरक रिपोर्ट में नामजद अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का निर्देश शामिल था।

न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता ने कहा कि संहिता की धारा 482 के तहत दाखिल एक याचिका में इस तरह के निर्देश देना, उच्च न्यायालय के दायरे से बाहर है। अदालत ने यूपी बनाम अमन मित्तल में देखा:

"आरोपियों द्वारा दायर याचिका में आरोपी के हित के खिलाफ संहिता की धारा 482 के तहत कार्यवाही करते हुए उच्च न्यायालय के निर्देश, उसके अधिकार क्षेत्र से परे हैं और इस प्रकार, इस तरह की सभी टिप्पणियों और निर्देशों को खारिज कर दिया जाता है।

जांच अधिकारी को बदलने के संबंध में जारी किए गए निर्देश और जिला न्यायाधीश को ऐसी विभिन्न कार्रवाई से जोड़ना, जो विशेष रूप से जांच एजेंसी के अधिकार क्षेत्र में आती हैं, संहिता की धारा 482 के तहत दायर याचिका के दायरे से बाहर हैं और इसलिए, अदालत के आदेश को रद्द किया जाना आवश्यक है।"

इस मामले में विचार किया गया एक अन्य मुद्दा यह था कि क्या आईपीसी के तहत सभी अपराधों को कानूनी मेट्रोलॉजी अधिनियम, 2009 की धारा 3 के मद्देनजर बाहर रखा गया है या केवल weights and measures से संबंधित अपराध जिन्हे अध्याय XIII आईपीसी में समाहित किया गया है, को अधिनियम की धारा 51 के मद्देनजर बाहर रखा गया है। इस संबंध में, पीठ ने देखा:

* अधिनियम की धारा 3, अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए अपराधों और दंड के संबंध में आईपीसी के अध्याय XIII के प्रावधानों को पूरी तरह से समाप्त/ओवरराइड कर देती है, चूंकि यह एक विशेष अधिनियम है, इसलिए, यदि यह खुलासा किया जाता है कि अपराध, अधिनियम के प्रावधानों के तहत हुए हैं, तो आईपीसी के अध्याय XIII के तहत एक अभियुक्त को उस अपराध के लिए आरोपित नहीं किया जा सकता है।

* अधिनियम की धारा 51 को पढ़ने से यह स्पष्ट होता है कि आईपीसी के प्रावधान, जहाँ तक वो वजन या माप को लेकर अपराधों से संबंधित हैं, इस विशेष अधिनियम के तहत दंडनीय किसी भी अपराध पर लागू नहीं होंगे। इसलिए, आईपीसी के अध्याय XIII में शामिल केवल वो प्रावधान जो कि वजन एवं माप के संबंध में अपराधों से संबंधित हैं हैं, लागू नहीं होंगे। किसी भी व्यक्ति को अधिनियम के प्रावधानों के मद्देनजर, आईपीसी के अध्याय XIII के तहत आने वाले वजन या माप से संबंधित अपराध के लिए चार्ज नहीं किया जा सकता है।

* अधिनियम की योजना, गैर-मानक वजन और माप के उपयोग, या किसी भी वजन या माप के मानकों, माध्यमिक मानकों या वर्किंग मानकों के साथ छेड़छाड़ या बदलाव करने से सम्बंधित अपराधों के लिए है। यह अधिनियम, आईपीसी की धारा 415 या धारा 467, 468 और आईपीसी के 471 के तहत परिभाषित धोखाधड़ी से सम्बंधित किसी भी अपराध की कल्पना नहीं करता है। इसी तरह, धारा 34 के तहत अपराध का खुलासा करने वाले एक सामान्य आशय को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से किया गया एक कार्य, अधिनियम के प्रावधानों द्वारा कवर नहीं किया जाता है।

* एक आपराधिक षड्यंत्र का खुलासा करने वाला अपराध, जो धारा 120-बी आईपीसी के तहत दंडनीय है, वह भी इस विशेष अधिनियम के तहत अपराध नहीं है। चूंकि ऐसे अपराध अधिनियम के प्रावधानों के तहत दंडनीय नहीं हैं, इसलिए, ऐसे अपराधों के लिए अभियोजन बनाए रखा जा सकता है क्योंकि ऐसे अपराधों का परीक्षण, विशेष अधिनियम के किसी भी प्रावधान के साथ असंगत नहीं है। यदि बात धारा 467, 468, 471 आईपीसी के लिए भी सत्य है, क्योंकि ऐसे अपराध अधिनियम के प्रावधानों द्वारा कवर नहीं किए जाते हैं।

* पीठ ने, धारा 265 और 267 आईपीसी के तहत आरोपों को खारिज करने के उच्च न्यायालय के आदेश को छोड़कर, उसके सम्पूर्ण आदेश को रद्द कर दिया। न्यायालय ने इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि अधिनियम, अपने आप में एक पूर्ण संहिता है, जिसमें उक्त अधिनियम के तहत अपराध और दंड के प्रावधान हैं, इसलिए, अधिनियम के किसी भी प्रावधान के किसी भी उल्लंघन के लिए, अभियोजन केवल अधिनियम के तहत दर्ज किया जा सकता है और उन अपराधों के लिए नहीं जो आईपीसी के तहत अपराध हों।



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