'ज़मीनी हकीकत देखनी होगी, पहलगाम हमले को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता': जम्मू-कश्मीर में राज्य का दर्जा बहाल करने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में राज्य का दर्जा बहाल करने के निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए मौखिक रूप से कहा कि इस क्षेत्र की ज़मीनी हकीकत पर विचार करना बेहद ज़रूरी है। हाल ही में हुए पहलगाम आतंकवादी हमले जैसी घटनाओं को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की खंडपीठ केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
आवेदक और कॉलेज शिक्षक ज़हूर अहमद भट की ओर से सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन ने ज़ोर देकर कहा,
"उस फैसले (अनुच्छेद 370 मामले) को 21 महीने हो चुके हैं, लेकिन कोई प्रगति नहीं हुई है, क्योंकि जब केंद्र ने अदालत के सामने यह बयान दिया कि वे राज्य का दर्जा लागू करेंगे तो उन्हें केंद्र पर पूरा भरोसा था।"
यह आवेदन निपटाए गए मामले "संविधान के अनुच्छेद 370 के संबंध में" में विविध आवेदन के रूप में दायर किया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को निरस्त करने के फैसले को बरकरार रखा था।
उस फैसले में न्यायालय ने सॉलिसिटर जनरल द्वारा दिए गए इस आश्वासन के मद्देनजर कि राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा, जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 की संवैधानिकता के मुद्दे पर विचार नहीं किया, जिसने जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश में बदल दिया। न्यायालय ने बिना कोई समय-सीमा निर्धारित किए केवल यह निर्देश दिया कि "राज्य का दर्जा जल्द से जल्द और यथाशीघ्र बहाल किया जाएगा"।
गोपाल एस ने इस बात पर प्रकाश डाला कि अनुच्छेद 370 के संबंध में दिए गए फैसले के अनुसार, न्यायालय ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में चुनावों के बाद यथाशीघ्र राज्य का दर्जा बहाल किया जाए।
फैसले में दिए गए निर्देशों में कहा गया:
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा (लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के अलावा)। इस वक्तव्य के मद्देनजर, हम यह निर्धारित करना आवश्यक नहीं समझते कि अनुच्छेद 3 के तहत जम्मू-कश्मीर राज्य का लद्दाख और जम्मू-कश्मीर दो केंद्र शासित प्रदेशों में पुनर्गठन स्वीकार्य है या नहीं। हालांकि, हम अनुच्छेद 3(क) के साथ पठित स्पष्टीकरण I के मद्देनजर लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के निर्णय की वैधता को बरकरार रखते हैं, जो किसी भी राज्य से किसी क्षेत्र को अलग करके केंद्र शासित प्रदेश बनाने की अनुमति देता है; और
II. हम निर्देश देते हैं कि भारत के चुनाव आयोग द्वारा पुनर्गठन अधिनियम की धारा 14 के तहत गठित जम्मू और कश्मीर विधानसभा के चुनाव 30 सितंबर 2024 तक कराने के लिए कदम उठाए जाएँ। राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल किया जाएगा।
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्य सचिव, जो अनुच्छेद 370 के मुद्दे में मध्यस्थ थे, उसके वकील ने कहा कि वे वर्तमान याचिका का समर्थन करते हैं। इस संबंध में अपनी याचिका भी दायर करेंगे।
केंद्र की ओर से स्पेशल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रस्तुत किया कि वर्तमान आवेदन विचारणीय नहीं है। अतीत में भी न्यायालय ने राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग वाली ऐसी याचिकाओं पर जुर्माना लगाया।
सॉलिसिटर जनरल ने कहा,
"चुनाव हो चुके हैं, माननीय न्यायाधीश देश के इस हिस्से से उभर रही विशिष्ट स्थिति से अवगत हैं; निर्णय लेने में कई बातों पर विचार किया गया।"
एक अन्य वकील ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि "आश्वासन की वास्तविकता भी महत्वपूर्ण है" और केंद्र द्वारा दिए गए आश्वासन को व्यावहारिक रूप से लागू करने की आवश्यकता पर बल दिया।
चीफ जस्टिस ने आगे कहा,
"आपको जमीनी हकीकत को भी ध्यान में रखना होगा, आप पहलगाम में जो हुआ है उसे नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते।"
राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग करने वाले वकीलों ने आग्रह किया कि इस मुद्दे पर विचार करने और सभी आवेदनों और याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई के लिए एक अलग पीठ बनाई जाए।
एक अन्य आवेदक इरफान लोन की ओर से सीनियर एडवोकेट मेनका गुरुस्वामी भी उपस्थित हुईं।
न्यायालय ने अब मामले को 8 सप्ताह बाद सूचीबद्ध किया।
चीफ जस्टिस ने यह भी कहा,
"उन्हें 8 सप्ताह के तुरंत बाद जवाब दाखिल करने दें।"
जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग क्यों की जा रही है?
आवेदक, कॉलेज शिक्षक ज़हूर अहमद भट और कार्यकर्ता खुर्शीद अहमद मलिक ने कहा कि सॉलिसिटर जनरल द्वारा जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने के आश्वासन के बावजूद, केंद्र ने अनुच्छेद 370 मामले में फैसले के बाद पिछले ग्यारह महीनों में इस संबंध में कोई कदम नहीं उठाया।
आवेदकों ने तर्क दिया कि जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल न करना संघवाद की मूल विशेषता का उल्लंघन है।
उन्होंने कहा,
"जम्मू-कश्मीर के राज्य के दर्जे को समयबद्ध तरीके से बहाल न करना संघवाद की अवधारणा का उल्लंघन है, जो भारत के संविधान के मूल ढांचे का एक हिस्सा है।"
आवेदकों ने कहा कि विधानसभा चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुए और यह दर्शाता है कि राज्य का दर्जा बहाल करने में कोई बाधा नहीं है।
आवेदन में कहा गया,
"इसलिए सुरक्षा संबंधी चिंताओं, हिंसा या किसी अन्य गड़बड़ी की कोई बाधा नहीं है, जो जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा देने/बहाली में बाधा उत्पन्न करे या उसे रोके, जैसा कि वर्तमान कार्यवाही में भारत संघ द्वारा आश्वासन दिया गया था।"
यह याचिका AoR सोएब कुरैशी द्वारा दायर की गई।
Case Details : ZAHOOR AHMAD BHAT AND ANR. Versus UNION OF INDIA MA 2259/2024 and connected matter