स्लम से बेघर हुए परिवारों को राज्य सरकार व्यवस्था होने तक 15,000 रुपये महीना किराया दे, बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला
बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र के महुल में परियोजना प्रभावित व्यक्तियों (पीएपी) को बड़ी राहत प्रदान करते हुए सोमवार को राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह उन लोगों के लिए रहने की वैकल्पिक व्यवस्था करे, साथ ही जब तक यह व्यवस्था नहीं होती है तब तक उन्हें 15,000 रुपये प्रतिमाह ट्रांजिट किराया तथा 45,000 रुपये जमानत राशि का भुगतान करे।
कोर्ट ने कहा कि महुल इलाके में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर है और हवा में कैंसरकारी तत्व मौजूद हैं।
मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नंदराजोग और न्यायमूर्ति भारती डांगरे की खंडपीठ ने व्यवस्था दी कि मलीन बस्तियों (स्लम) को हटाये जाने के परिणामस्वरूप बेघर हुए परिवारों को महुल या अम्बापाड़ा की पीएपी कॉलोनियों में नहीं बसाया जायेगा तथा जिन्हें स्लम रिहेबिलिटेशन स्कीम के तहत इन दो कॉलोनियों में पुनर्वासित किया गया है, उन्हें कहीं अन्यत्र रहने की व्यवस्था उपलब्ध कराई जायेगी।
मुकदमे की पृष्ठभूमि
पिछले कुछ दशकों से महुल नौ प्रमुख औद्योगिक इकाइयों का केंद्र बन चुका है, जिनमें एचपीसीएल, बीपीसीएल, राष्ट्रीय केमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स लिमिटेड की रिफाइनरियां तथा भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र तथा टाटा पावर थर्मल पावर प्लांट, सीलॉर्ड कंटेनर्स एवं एगिज लॉजिस्टिक जैसी निजी इकाइयां भी शामिल हैं।
'एवरस्माइल' पीएपी कॉलोनी के निवासियों ने इस इलाके में कई लोगों की अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के अलावा सांस की समस्याओं की शिकायत के बाद इन चालों के आवंटन को चुनौती दी थी।
इस पीएपी कॉलोनी में 72 बिल्डिंग और 17,205 चाल हैं। इस कॉलोनी और बीपीसीएल रिफाइनरी के बीच महज 15 मीटर चौड़ी सड़क है। एवरस्माइल पीएपी कॉलोनी से 300 मीटर की दूरी पर सीलॉर्ड कंटेनर्स लॉजिस्टिक कंपनी स्थित है, जो तेल, गैस एवं रसायन उद्योगों को कंटेनर उपलब्ध कराती है। यहां 5000 से 10000 किलोलीटर रसायनों वाले 10 स्टोरेज टर्मिनल हैं। इन रसायनों में स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक रसायन शामिल हैं। ये रसायन समुद्री मार्ग से लाये जाते हैं तथा पीर पाऊ जेटी पर उतारे जाते हैं।
कॉलोनी के दक्षिणी छोर पर बीपीसीएल रिफाइनरी से हटकर टाटा पावर थर्मल एनर्जी प्लांट, भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर स्थित है। यह रिसर्च सेंटर देश का सबसे बड़ा परमाणु अनुसंधान रिएक्टर तथा देश के परमाणु हथियार कार्यक्रम के लिए नितांत आवश्यक प्लूटोनियम आधारित ईंधन का प्रमुख उत्पादक है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि तीन कारणों से एवरस्माइल कॉलोनी लोगों के रहने लायक नहीं है। पहला पीएपी कॉलोनी रिफाइनरियों के बगल में है, जिसके कारण यहां पुनर्वासित किये गये याचिकाकर्ताओं को कैंसरजनित तत्व वाले वायु प्रदूषण के सम्पर्क में आने से अनेक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं आ रही हैं।
दूसरा- औद्योगिक इकाइयों के बिल्कुल करीब आवासीय परिसरों की मौजूदगी के कारण उद्योगों और रिफाइनरियों के साथ ही निवासियों को भी खतरा है। तीसरा, याचिकाकर्ताओं ने यह भी दलील दी है कि पीएपी कॉलोनी स्वास्थ्य की दृष्टि से तो बदतर है ही, स्कूल एवं मेडिकल केंद्र सहित अन्य मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित है।
एनजीटी ट्रिब्यूनल का फैसला
कोर्ट ने 'चारूदत्त पांडुरंग कोली बनाम मेसर्स सीलॉर्ड एवं अन्य' के मामले में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटीद) की पश्चिमी जोन पीठ के 18 दिसम्बर 2015 के फैसले का उल्लेख किया। इस फैसले में क्षेत्र में जहरीले वायु प्रदूषण संबंधी याचिकाकर्ताओं की दलीलों को आधार बनाया गया है।
हालांकि इसमें यहीं अंतर है कि उपरोक्त मुकदमा अम्बापाड़ा और महुल गांव के निवासियों द्वारा दायर की गयी थी, जो वायु प्रदूषण से उनके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों से परेशान थे। वे पीएपी के निवासी नहीं थे। वे कई दशकों से पीएपी कॉलोनी के निकट महुल में रह रहे थे।
एमपीसीबी, सीपीसीबी और नीरी की ओर से एक जनवरी 2019 को एक संयुक्त रिपोर्ट भी तैयार की गयी थी, जो एनजीटी के समक्ष मुकदमे का हिस्सा भी बना। इस रिपोर्ट में वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर का जिक्र किया गया है, खासकर वोलेटाइल ऑर्गेनिक कम्पाउंड्स (वीओसी) के रूप में। एनजीटी ने चेम्बुर के महुल में प्रदूषण के लिए सीलॉर्ड कंटेनर्स के साथ ही बीपीसीएल और एचपीसीएल रिफाइनरियों को प्रमुख तौर जिम्मेदार ठहराया था।
उसके बाद महाराष्ट्र सरकार ने तीन साल बाद इस फैसले को चुनौती दी थी। हालांकि सरकार ने फैसले को मानते हुए एनजीटी के आदेश पर अमल शुरू भी किया था।
राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान नीरी की एक रिपोर्ट का उल्लेख किया था, जिसमें उसने कहा था कि उस इलाके में प्रदूषण का स्तर कम हुआ है और पीएपी को अब वहां रखने में कोई समस्या नहीं है।
गत पांच मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी थी कि एनजीटी ने अंतिम फैसला दे दिया है और अब इसे चुनौती नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने कहा था कि महाराष्ट्र प्रदूषण बोर्ड, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और नीरी की समकालीन रिपोर्ट के अध्ययन से पता चलता है कि महुल में वायु प्रदूषण खतरनाक रूप से उच्च स्तर पर है और आज भी इससे जान को खतरा है।
फैसला
कोर्ट ने कहा,
"संग्रह किये गये आंकड़े और सरकार की विशेष पर्यावरण एजेंसियों की व्याख्या के अध्ययन से यह स्वीकार किया जा सकता है कि महुल में वायु प्रदूषण, खासकर वीओसी की मौजूदगी दुर्गंध की एक निश्चित सीमा, वायु की गुणवत्ता मानकों तथा वायु में वीओसी की मौजूदगी के नियमन संबंधी अन्य अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप निर्धारित सीमा से बहुत अधिक है।"
बेंच बॉम्बे हाईकोर्ट के एक फैसले पर भी भरोसा किया जिसमें ओसवाल एग्रो मिल्स लिमिटेड बनाम हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड एवं अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी उल्लेख किया गया था।
न्यायालय ने कहा,
"यह निश्चित है कि ऐसी रिफाइनरियों के बगल में स्थित आवासीय परिसर विभिन्न प्रकार से सुरक्षा की दृष्टि से खतरनाक हैं। यह खतरा न केवल निवासियों के स्वास्थ्य से जुड़़ा है, बल्कि इन रिफाइनरियों को निशाना बनाकर यदि आतंकवादी हमले किए जाते हैं तो इससे शहर के भीतर भीषण तबाही मच सकती है, जिससे चेंबूर क्षेत्र के आसपास रहने वाले बड़ी संख्या में लोग प्रभावित हो सकते हैं।"
न्यायालय ने इंटरनेशनल कन्वेनेंट ऑन इकोनॉमी, सोशल एंड कल्चरल राइट्स के अनुच्छेद 11(1) का उल्लेख भी किया जिसमें कहा गया है कि
" संबंधित सरकार को जीवन स्तर में सुधार के लिए समुचित भोजन, कपड़ा और आवास जैसे अधिकारों को भी मान्यता देनी चाहिए। मुक्त सहमति के आधार पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग के आवश्यक महत्व को समझते हुए सरकारें इनपर अमल सुनिश्चित करने के लिए आवश्य कदम उठाएगी।"
बेंच ने अंततः यह व्यवस्था दी कि मलीन बस्तियों (स्लम) को हटाये जाने के परिणामस्वरूप बेघर हुए परिवारों को महुल या अम्बापाड़ा की पीएपी कॉलोनियों में नहीं बसाया जायेगा तथा जिन्हें स्लम रिहेबिलिटेशन स्कीम के तहत इन दो कॉलोनियों में पुनर्वासित किया गया है, उन्हें कहीं अन्यत्र रहने की व्यवस्था उपलब्ध कराई जायेगी तथा वैकल्पिक व्यवस्था होने तक उन्हें ट्रांजिट रेंट और सिक्योरिटी डिपोजिट भी दिया जाएगा।
कोर्ट ने इस आदेश पर अमल के लिए राज्य सरकार को 12 सप्ताह का समय दिया है।