तीन महीने के लिए निजी स्कूलों की फीस से छूट और पूरे में देश मेंं शिक्षा के लिए नियामक तंत्र बनाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में ताज़ा याचिका
सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ लाॅकडाउन के दौरान 1 अप्रैल से 1 जुलाई 2020 तक तीन महीने के लिए निजी स्कूलों की फीस से छूट और पूरे भारत में फीस की संरचना का विनियामक तंत्र और संग्रहण तंत्र बनाने की मांग की गई है।
यह जनहित याचिका नौ राज्यों की पैरेंटस एसोसिएशन ने अपने अधिवक्ता मयंक क्षीरसागर के माध्यम से दायर की गई है,जिसमें राजस्थान, ओडिशा, पंजाब, गुजरात, हरियाणा, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, दिल्ली और मध्य प्रदेश शामिल है। याचिका में कहा गया है कि '' संविधान के तहत मिले जीवन के मौलिक अधिकार के साथ-साथ शिक्षा के अधिकार की भी रक्षा की जाए''। याचिकाकर्ताओं के अनुसार इस समय चल रही महामारी की स्थिति के कारण वह अपने इन अधिकारों से ''वंचित'' हो रहे हैं।
''महामारी-COVID19 की चल रही इस अवधि में निरंतर आर्थिक रूप से अक्षम माता-पिता बच्चों की फीस के भुगतान का दबाव भी झेल रहे हैं। इस निरंतर वित्तीय और भावनात्मक कठिनाइयों का सामना कर रहे कुछ माता-पिता के पास तो अपने बच्चों का स्कूल छुड़वाने के सिवाय कोई विकल्प नहीं बचा है क्योंकि वह फीस मांग रहे स्कूल या संस्थानों की मांग पूरी नहीं कर सकते हैं। इसलिए एक अप्रत्याशित अवधि के लिए उन्होंने अपने बच्चों को स्कूल से निकाल लिया है।''
इस याचिका में विभिन्न मुद्दों को उठाया गया है जो महामारी और उसके बाद लगाए गए लॉकडाउन के कारण उभर कर सामने आए हैं, जैसे वित्तीय आपदा ,जिसने केवल आर्थिक क्षेत्र को ही नहीं बल्कि सभी माता-पिता को भी प्रभावित किया है।
याचिका में कहा गया है कि-
''विभिन्न अभिभावकों ने अपने वित्तीय संकट का हवाला दिया है और किसी भी स्कूल में पूर्ण रूप से कोई कामकाज नहीं हो रहा है और/ या किसी भी सेवा निर्वहन नहीं किया जा रहा है। उसके बावजूद, किसी भी निजी सहायता प्राप्त/ गैर-सहायता प्राप्त स्कूल ने अप्रैल 2020 से शुरू हुई इस लाॅकडाउन की अवधि के दौरान स्कूल की फीस में पूरी तरह या आंशिक छूट नहीं दी है।''
इस प्रकार, याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह सरकार का कर्तव्य है कि वह ''वित्तीय कठिनाइयों के कारण माता-पिता द्वारा फीस का भुगतान न कर पाने की स्थिति में शिक्षा के मौलिक अधिकार की रक्षा करे क्योंकि यह सुरक्षा प्रदान की गई है .. संविधान में।''
माता-पिता की तरफ से यह भी दलील दी गई है कि शिक्षा प्रदान करने की ऑनलाइन प्रणाली से ईडब्ल्यूएस श्रेणी के छात्र शिक्षा प्राप्त करने से वंचित हो रहे हैं क्योंकि उनके पास ऐसी ऑनलाइन कक्षाओं (मोबाइल, टैबलेट, इंटरनेट कनेक्शन आदि) तक पहुंचने के लिए आवश्यक बुनियादी संसाधनों का अभाव है।
वहीं कर्नाटक राज्य विभाग ने किंडरगार्टन से कक्षा 7 के छात्रों के लिए ऑनलाइन कक्षाओं के संचालन पर और ऑनलाइन कक्षाओं के नाम पर स्कूल की फीस वसूलने पर प्रतिबंध लगा दिया है, लेकिन कर्नाटक और मध्य प्रदेश को छोड़कर किसी अन्य राज्य में इसे लागू नहीं किया गया है।
यह भी दलील दी गई है कि लम्बे समय तक स्क्रीन को देखना छात्रों की आँखों की दृष्टि के लिए हानिकारक हो सकता है और साथ ही उन्हें साइबर-धमकी, यौन शोषण, जबरन वसूली आदि का खतरा भी हो सकता है।
''इस प्रकार, याचिकाकर्ताओं का दावा है कि छात्रों पर पड़ने वाले प्रभाव और उसकी विश्वसनीयता पर विचार किए बिना ही ऑनलाइन शिक्षा एक अनियमित तरीके से चल रही है। इसलिए माननीय न्यायालय द्वारा इस पर विचार किया जाना चाहिए ... कुछ स्कूल तो ट्यूशन फीस वसूलने की आड़ में अतिरिक्त राशि वसूलने का भी प्रयास कर रहे हैं जो अनैतिक और अनावश्यक है।''
याचिका में मांग की गई है कि अप्रैल 2020 से शुरू हुई इस अवधि के दौरान स्कूल फीस का भुगतान न कर पाने की स्थिति में किसी भी तरह का मौद्रिक दंड न लगाया जाए या उससे छूट दी जाए। वहीं ''पैरेन्स पटैरिया'' की अवधारणा पर भरोसा करते हुए इन दावों की पुष्टि की गई है। चूंकि यह अवधारणा राज्य के उन आम लोगों पर लागू होती है,जो इस तरह की आपदा के शिकार हैं और ऐसी स्थिति में ''केंद्र और राज्य सरकारें अपने निवासियों की अभिभावक होती हैं।''
कहा गया है कि-
'' इस संदर्भ में देश के बच्चों के जीवन और शिक्षा के अधिकारों की रक्षा संबंधित सरकार द्वारा की जानी चाहिए। इसके लिए सरकार को ऐसी विशेष परिस्थितियों के दौरान उनकी वित्तीय और विकासात्मक आवश्यकताओं की देखभाल करने की व्यवस्था करनी चाहिए।''
फीस और अन्य पहलुओं के भुगतान के लिए देश भर में एक समान नीति बनाने की वकालत करते हुए याचिका में कहा गया है कि इस मामले में विभिन्न हाईकोर्ट ने अलग-अलग आदेश पारित किए हैं।इसलिए इन दिशानिर्देशों/ निर्देशों /आदेशों का समेकन करना आज के समय की आवश्यकता है और इसलिए एकीकृत दिशा-निर्देश जारी करने के लिए इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप की आवश्यकता हो गई है। ताकि सभी राज्यों के शिक्षा विभाग के प्रमुख को शामिल करके एक कमेटी का गठन किया जा सकें और अखिल भारतीय स्तर पर स्कूल फीस की संरचना और संग्रह तंत्र को विनियमित करने और लागू करने का काम किया जा सकें।
इसके अतिरिक्त याचिका में यह भी मांग की गई है कि राज्य सरकारों को निर्देश दिया जाए कि वह सभी निजी स्कूलों को केवल ''ट्यूशन फीस'' वसूलने का निर्देश जारी कर सकें। ताकि ऐसे स्कूलों के नामांकित छात्रों से अप्रैल, मई और जून, 2020 तक की अवधि के दौरान कोई छिपा हुआ या अतिरिक्त शुल्क न वसूला जा सकें। वहीं फीस का भुगतान नहीं करने के कारण किसी भी छात्र का नाम न काटा जाए या स्कूल से न निकला जाए।
याचिका की वैकल्पिक प्रार्थनाओं में यह भी मांग की गई है कि सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग से जुड़े छात्रों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम, 2009 के तहत ऑनलाइन कक्षाओं के लिए सुविधाएं प्रदान की जाएं और देश में ऑनलाइन शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए दिशानिर्देश जारी किए जाएं। ।
याचिका अधिवक्ता पंखुड़ी द्वारा तैयार की गई है और सिद्धार्थ शंकर शर्मा द्वारा व्यवस्थित की है।
याचिका डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें