चश्मदीद गवाह के साक्ष्य को केवल इसलिए खारिज नहीं किया जा सकता, क्योंकि उसने मृतक पर हमले के समय हस्तक्षेप नहीं किया था: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2022-02-27 12:10 GMT

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक चश्मदीद गवाह के साक्ष्य को केवल इस कारण से खारिज नहीं किया जा सकता है कि उसने कथित तौर पर खतरे की कोई घंटी नहीं बजाई थी या मृतक पर हमला होने पर हस्तक्षेप करने की कोशिश नहीं की थी।

कोर्ट ने यह टिप्पणी एक आरोपी द्वारा दायर अपील खारिज करते हुए की, जिसे हत्या के एक मामले में आईपीसी की धारा 302 और शस्त्र अधिनियम की धारा 25 और 27 के तहत अपराधों का दोषी ठहराया गया था।

अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरोपी का मृतका के साथ प्रेम संबंध था, लेकिन जब उसने मृतका को दूसरे लड़के से बात करते देखा तो वह भड़क गया; और मृतका को नुकीले चाकू से जख्मी कर दिया, जिससे उसकी मौत हो गई। उसकी दोषसिद्धि एक चश्मदीद गवाह द्वारा दिए गए सबूतों के आधार पर की गयी थी, जिसने दावा किया था कि उसने आरोपी को बार-बार मृतका को जख्मी करते देखा था।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आरोपी का तर्क था कि उक्त गवाह को विश्वसनीय गवाह नहीं कहा जा सकता है, खासकर जब घटना कथित रूप से उसके घर के सामने हुई हो, लेकिन उसने न तो कोई खतरे की घंटी बजाई थी, न ही मृतका को बचाने की कोशिश की। आगे यह दलील दी गयी कि मृतका के व्यक्ति पर अत्यधिक संख्या में जख्म एक से अधिक व्यक्तियों की संलिप्तता का संकेत दे रहे हैं।

न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने आरोपी द्वारा उठाए गए उपरोक्त दोनों तर्कों को खारिज करते हुए कहा, "पीडब्लू-1 (अभियोजन पक्ष के गवाह-1) के साक्ष्य, घटना का चश्मदीद गवाह होने के नाते, अभेद्य बना हुआ है और दो न्यायालयों ने उस पर भरोसा किया है।

उसके साक्ष्य को केवल इस कारण से खारिज नहीं किया जा सकता है कि उसने कथित तौर पर कोई खतरे की घंटी नहीं बजाई या उस वक्त हस्तक्षेप नहीं किया था जब मृतक पर बेरहमी से हमला किया जा रहा था और छुरा घोंपा जा रहा था। चोटों की अत्यधिक संख्या वास्तव में एक से अधिक व्यक्तियों के शामिल होने के बारे में अनुमान नहीं लगाती है; बल्कि चोटों की प्रकृति और उनके आकार/आयाम की समानता केवल इस अनुमान को जन्म देगी कि उसे बेरहमी से और बार-बार एक ही हथियार और एक ही व्यक्ति द्वारा मारा गया था, इसलिए कोर्ट ने अपील खारिज कर दी।

हेडनोट्स

आपराधिक मुकदमा - चश्मदीद गवाह - चश्मदीद गवाह के साक्ष्य को केवल इस कारण खारिज नहीं किया जा सकता है कि उसने कथित तौर पर कोई खतरे की घंटी नहीं बजाई थी या जब मृतक पर बेरहमी से हमला किया जा रहा था तब उसने हस्तक्षेप करने की कोशिश नहीं की थी।

भारतीय दंड संहिता, 1860 - धारा 302 - धारा 302 के तहत समवर्ती दोषसिद्धि के खिलाफ अपील - चोटों की अत्यधिक संख्या वास्तव में एक से अधिक व्यक्तियों की भागीदारी के बारे में अनुमान नहीं लगाती है; बल्कि चोटों की प्रकृति और उनके आकार/आयाम की समानता से केवल यह अनुमान लगाया जा सकता है कि उसे एक ही हथियार और एक ही व्यक्ति द्वारा बेरहमी से और बार-बार चाकू मारा गया था - घटना के चश्मदीद गवाह का सबूत, बेदाग रहता है और दो न्यायालयों द्वारा इस पर भरोसा भी जताया गया है है - वर्तमान मामले में प्रकट अवैधता का मामला न समझें, ताकि हस्तक्षेप की मांग की जा सके।

केस : सुरेश यादव @ गुड्डू बनाम छत्तीसगढ़ सरकार | सीआरए 1349/2013 | 25 फरवरी 2022

साइटेशन : 2022 लाइव लॉ (एससी) 217

कोरम: जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस विक्रम नाथ

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