दावा दाखिल करने में ईपीएफओ कर्मी आईबीसी समयसीमा का पालन करें, गलती करने वाले अफसरों पर हो कार्रवाई : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के आयुक्त और कर्मचारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 के तहत समयसीमा का अनुपालन करें। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि अनुपालन में विफलता के मामले में समय-सीमा को लेकर गलती करने वाले कर्मचारियों के विरुद्ध कार्रवाई की जानी चाहिए।
जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एसवी भट्टी की पीठ ने टिप्पणी की,
".. हमारा विचार है कि ईपीएफओ के आयुक्त और कर्मचारियों को यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने चाहिए कि दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 के तहत प्रदान की गई समयसीमा का अनुपालन हो। विफलता के कानूनी परिणाम हो सकते हैं। ईपीएफओ के कर्मचारियों को अवश्य ही ऐसा करना चाहिए। अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए परिणामों से अवगत रहें। यदि कर्तव्य में लापरवाही होती है, तो दोषी कर्मचारियों के खिलाफ कानून के अनुसार कार्रवाई की जानी चाहिए।''
शीर्ष अदालत राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय ट्रिबयूनल (एनसीएलएटी) के आदेश के खिलाफ ईपीएफओ द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसने निर्णायक प्राधिकरण और समाधान पेशेवर द्वारा उसके दावे की अस्वीकृति को चुनौती देने वाली उसकी अपील को खारिज कर दिया था। एनसीएलएटी ने यह कहते हुए अपील खारिज कर दी थी कि ईपीएफओ द्वारा दावा दायर करने में अत्यधिक देरी हुई थी।
“रिकॉर्ड पर लाए गए तथ्यों से यह प्रतीत होता है कि अपीलकर्ता द्वारा दावा दायर करने में अत्यधिक देरी हुई थी।
एनसीएलएटी ने अपने आदेश में दर्ज किया था,
" अपीलकर्ता द्वारा दायर आईए संख्या 439 / 2023 को निर्णायक प्राधिकरण ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि समाधान योजना को मंज़ूरी दे दी गई है, कोई भी दावा टिक नहीं सकता है।"
शीर्ष अदालत ने यह कहते हुए एनसीएलएटी के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया कि ऐसा करने का कोई अच्छा आधार या कारण नहीं है।
शीर्ष अदालत ने जोड़ा,
“..हमारी राय है कि आईबीसी की धारा 36(4)(ए) (iii) के मद्देनज़र, आपेक्षित फैसला किसी भी तरह से ईपीएफओ के कानून के अनुसार आगे बढ़ने के अधिकारों को प्रभावित नहीं करता है।”