जिस कर्मचारी ने झूठी घोषणा की है/ आपराधिक मामले में भागीदारी को दबाया है, वह नियुक्ति का हकदार नहीं है/अधिकार के रूप में सेवा मे जारी नहीं रह सकता हैः सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक कर्मचारी जिसने झूठी घोषणा की थी और/या एक आपराधिक मामले में अपनी संलिप्तता के भौतिक तथ्य को छुपाया था, वह नियुक्ति के लिए या अधिकार के रूप में सेवा में बने रहने का हकदार नहीं होगा।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एएस बोपन्ना की खंडपीठ ने कहा, "जहां नियोक्ता को लगता है कि एक कर्मचारी जिसने प्रारंभिक चरण में ही गलत बयान दिया है और/या भौतिक तथ्यों का खुलासा नहीं किया है और/या भौतिक तथ्यों को छुपाया है और इसलिए उसे सेवा में जारी नहीं रखा जा सकता है क्योंकि ऐसे कर्मचारी पर भविष्य में भी भरोसा नहीं किया जा सकता है, नियोक्ता को ऐसे कर्मचारी को जारी रखने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। ऐसे कर्मचारी को जारी रखने या न रखने का पसंद/ विकल्प हमेशा नियोक्ता को दिया जाना चाहिए।"
इस मामले में राजस्थान राज्य विद्युत प्रसार निगम लिमिटेड के कर्मचारी ने दस्तावेज सत्यापन के दौरान एक घोषणा पत्र प्रस्तुत किया था कि उसके खिलाफ न तो आपराधिक मामला लंबित है और न ही उसे किसी आपराधिक मामले में किसी अदालत द्वारा दोषी ठहराया गया है। हालांकि जब यह पाया गया कि उसे एक आपराधिक मामले में दोषी ठहराया गया है तो उसकी सेवाओं को नियोक्ता द्वारा समाप्त कर दिया गया।
कर्मचारी ने बर्खास्तगी के आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने अवतार सिंह बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2016) 8 एससीसी 471 के फैसले पर भरोसा करते हुए रिट याचिका की अनुमति दी और बर्खास्तगी के आदेश को रद्द कर दिया और सभी परिणामी लाभों के साथ कर्मचारी की बहाली का निर्देश दिया।
अपील की अनुमति देने के लिए सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कई पुराने निर्णयों का उल्लेख किया। कर्मचारी की एक दलील यह थी कि उसे अधिनियम 1958 की धारा 12 का लाभ दिया गया था, जिसमें प्रावधान है कि एक व्यक्ति को दोषसिद्धि से संबंद्ध अयोग्यता का सामना नहीं करना पड़ेगा।
इस संबंध में कोर्ट ने कहा, "बाद में अधिनियम 1958 की धारा 12 का लाभ प्राप्त करना प्रतिवादी के लिए सहायक नहीं होगा क्योंकि प्रश्न 14.04.2015 को एक झूठी घोषणा दाखिल करने के संबंध में है, जिसमें उसने कहा था कि उसके खिलाफ न तो कोई आपराधिक मामला लंबित है और न ही उसे किसी अदालत द्वारा दोषी ठहराया गया है, जो विद्वान सत्र न्यायालय द्वारा पारित आदेश से बहुत पहले अधिनियम 1958 की धारा 12 का लाभ प्रदान करता था। जैसा कि यहां ऊपर देखा गया है, यहां तक कि बाद में बरी होने के मामले में भी, कर्मचारी ने अगर एक बार झूठी घोषणा की और/या लंबित आपराधिक मामले के भौतिक तथ्य को दबाया है तो वह अधिकार के रूप में नियुक्ति पाने का हकदार नहीं होंगा।" (पैरा 11)
सवाल भरोसे का है
अपील की अनुमति देते हुए अदालत ने कहा, सवाल यह नहीं है कि क्या कोई कर्मचारी मामूली किस्म के विवाद में शामिल था और क्या बाद में उसे बरी कर दिया गया है या नहीं।
प्रश्न ऐसे कर्मचारी की विश्वसनीयता और/या भरोसे का है, जो रोजगार के प्रारंभिक चरण में, यानी घोषणा/सत्यापन प्रस्तुत करते समय और/या किसी पद के लिए आवेदन करते समय झूठी घोषणा करता है और/या खुलासा नहीं करता है और/या आपराधिक मामले में शामिल होने के भौतिक तथ्य को दबाता है। यदि सही तथ्यों का खुलासा किया गया होता तो नियोक्ता ने उसे नियुक्त नहीं किया होता। फिर सवाल भरोसे का है। इसलिए ऐसी स्थिति में जहां नियोक्ता को लगता है कि एक कर्मचारी जिसने प्रारंभिक चरण में ही गलत बयान दिया है और/या महत्वपूर्ण तथ्यों का खुलासा नहीं किया है और/या महत्वपूर्ण तथ्यों को छुपाया है और इसलिए उसे सेवा में जारी नहीं रखा जा सकता है क्योंकि ऐसे कर्मचारी पर भरोसा भी नहीं किया जा सकता है। भविष्य में, नियोक्ता को ऐसे कर्मचारी को जारी रखने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। ऐसे कर्मचारी को जारी रखने या न रखने का पसंद/विकल्प हमेशा नियोक्ता को दिया जाना चाहिए। ...ऐसा कर्मचारी अधिकार के रूप में नियुक्ति का दावा नहीं कर सकता है और/या अधिकार के रूप में सेवा में बना रह सकता है।
प्रशस्ति पत्र: एलएल 2021 एससी 466
केस शीर्षक:राजस्थान राज्य विद्युत प्रसारण निगम लिमिटेड बनाम अनिल कांवरिया
केस नं| डेट : CA 5743-5744 OF 2021 | 17 सितंबर 2021
कोरम: जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एएस बोपन्ना
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