धर्मार्थ संस्थानों की संपत्तियों को गलत दावों से बचाना अदालतों का कर्तव्यः केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि धार्मिक और धर्मार्थ संस्थानों की संपत्तियों को गलत दावों या हेराफेरी से बचाना और उनकी रक्षा करना अदालतों का कर्तव्य है।
जस्टिस अनिल के नरेंद्रन और जस्टिस पीजी अजितकुमार की खंडपीठ ने उक्त टिप्पणियों के साथ त्रावणकोर देवास्वम बोर्ड द्वारा दिल्ली के एक ट्रस्ट को पंबा क्षेत्र में नौ दिवसीय 'रामकथा' पाठ कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति वापस ले ली।
कोर्ट ने कहा,
"कई ऐसे उदाहरण हैं, जहां मंदिरों, देवताओं और देवास्वम बोर्डों की संपत्तियों के प्रबंधन और सुरक्षा की जिम्मेदारी जिन्हें सौंपी गई, उन्होंने स्वामित्व या किरायेदारी या प्रतिकूल कब्जे के झूठे दावों को स्थापित करके ऐसी संपत्तियों को हड़प लिया और उनका दुरुपयोग किया है।
यह केवल संबंधित अधिकारियों की सक्रिय मिलीभगत या निष्क्रियता से ही संभव है। 'बाड़ ही फसलों को खा जाए' ऐसे कृत्यों से सख्ती से निपटा जाना चाहिए।
सरकार, सदस्यों या बोर्ड / ट्रस्टों के ट्रस्टियों और भक्तों को इस तरह के किसी भी हड़पने या अतिक्रमण को रोकने के लिए सतर्क रहना चाहिए। यह भी कि धार्मिक और धर्मार्थ संस्थानों की संपत्तियों को गलत दावों या दुर्विनियोजन से बचाना अदालतों का कर्तव्य है।"
पम्बा क्षेत्र में निर्माण के मुद्दे पर अदालत ने एक स्वत: संज्ञान मामला शुरू किया, जिसमें उक्त टिप्पणियां की गई। इस संबंध में एक मलयालम दैनिक, मातृभूमि में रिपोर्ट छपी थी।
रिपोर्ट में कहा गया था कि त्रावणकोर बोर्ड ने श्री नंदकिशोर बाजोरिया चैरिटेबल ट्रस्ट को मोरारी बापू की "रामकथा" आयोजित करने के लिए उक्त क्षेत्र को पट्टे पर दिया था। ट्रस्ट ने स्थाना के धार्मिक महत्व का हवाला देते हुए वहां पर पाठ आयोजित करने पर जोर दिया।
ट्रस्ट ने टेंट, पार्किंग, प्रसारण और हेलीपैड आदि के लिए जगह की मांग की। बोर्ड को इस संबंध में प्रसाद के रूप में 7 लाख रुपये की पेशकश की गई, जिसमें 3 लाख का भुगतान पहले ही कर दिया गया। बोर्ड की अनुमति मिलने पर ट्रस्ट ने इलाके में निर्माण कार्य शुरू कर दिया।
वरिष्ठ सरकारी वकील एस राजमोहन ने दलील दी कि बोर्ड को पंबा में जमीन तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए दी गई थी, जिसका उपयोग रामकथा कार्यक्रम सहित किसी अन्य उद्देश्य के लिए नहीं किया जा सकता है।
त्रावणकोर-कोचीन हिंदू धार्मिक संस्थान अधिनियम, 1950 और केरल हिंदू प्लेसेज ऑफ पब्लिक वर्शिप (अथॉराइजेशन ऑफ इंट्री) एक्ट, 1965 के अवलोकन के बाद अदालत ने इस तर्क में योग्यता पाई।
इसके अलावा, एए गोपालकृष्णन बनाम कोचीन देवास्वम बोर्ड में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया गया कि देवताओं, मंदिरों और देवास्वम बोर्डों की संपत्तियों को उनके ट्रस्टियों, अर्चकों, शेबैत या कर्मचारियों द्वारा संरक्षित करने की आवश्यकता है।
इस फैसले में इस बात पर भी जोर दिया गया कि धार्मिक और धर्मार्थ संस्थाओं के हितों और संपत्तियों की रक्षा और सुरक्षा करना अदालतों का कर्तव्य है।
इसके अतिरिक्त, बेंच ने स्थापित किया कि हिंदू कानून के तहत प्रासंगिक सिद्धांत स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि एक देवता के साथ हमेशा एक नाबालिग के समान व्यवहार किया जाता है।
इसलिए, यह पाया गया कि हाईकोर्ट देवता का संरक्षक है और भूमि सुधार अधिनियम की धारा 103 के तहत अधिकार क्षेत्र के अलावा, माता-पिता का सिद्धांत भी अपने अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने में लागू होगा।
विचार के लिए उपलब्ध कराए गए चल रहे निर्माण की तस्वीरों को देखने के बाद, न्यायालय ने कहा कि पंबा-मनलप्पुरम का एक बड़ा हिस्सा अब अस्थायी संरचनाओं द्वारा कब्जा कर लिया गया है, जिससे कुंभमासा पूजा के लिए 13 फरवरी से सबरीमाला में सन्निधानम जाने वाले तीर्थयात्रियों को "बाधा और असुविधा" हो रही थी।
ऐसे में बेंच ने ऐसे सभी निर्माणों को तत्काल हटाने का निर्देश दिया। सबरीमाला के विशेष आयुक्त को यह भी निर्देश दिया गया कि भविष्य में पम्बा मनालप्पुरम में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
यह सुनिश्चित करने के लिए किए जाने वाले उपायों के बारे में अदालत के समक्ष एक रिपोर्ट प्रस्तुत किया जाए।
इस मामले में बोर्ड के स्थायी वकील जी. बीजू, विशेष सरकारी वकील (वन) नागराज नारायणन और एमिकस क्यूरी अधिवक्ता एन रघुराज पेश हुए।
सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (केरल) 88