डीआरएटी प्री-डिपोजिट पर जोर दिये बिना SARFAESI एक्ट की धारा 18 के तहत अपील की सुनवाई नहीं कर सकता : सुप्रीम कोर्ट
“डीआएटी कारणों को रिकॉर्ड पर लाने के बाद डिपोजिट राशि को अधिक से अधिक 25 प्रतिशत तक कम कर सकता है, लेकिन राशि पूरी तरह समाप्त नहीं कर सकता।”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ऋण वसूली अपीलीय न्यायाधिकरण (डीआरएटी) प्री-डिपोजिट पर जोर दिये बिना सिक्यूरिटाईजेशन एंड रिकंस्ट्रक्शन ऑफ़ फाइनेंशियल एसेट्स एंड एन्फोर्समेंट ऑफ़ सिक्यूरिटी इंटरेस्ट (SARFAESI) अधिनियम की धारा 18 के तहत एक अपील की सुनवाई नहीं कर सकता है।
न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की खंडपीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले को निरस्त कर दिया जिसमें उसने कहा था कि डीआरएटी द्वारा अपील की सुनवाई के लिए प्री-डिपोजिट की आवश्यकता नहीं है।
बेंच ने 'नारायण चंद्र घोष बनाम यूको बैंक एवं अन्य' के मामले का उल्लेख करते हुए कहा :
"धारा की भाषा को ध्यान में रखते हुए, ऋण वसूली न्यायाधिकरण (डीआरटी) द्वारा भले ही राशि या ऋण का निर्धारण नहीं किया गया हो, लेकिन डीआरएटी द्वारा प्री-डिपोजिट पर जोर दिये बिना अपील की सुनवाई नहीं की जा सकती। डीआरएटी कारणों को दर्ज करने के बाद राशि 25 फीसदी तक कम कर सकता है, लेकिन डिपोजिट को पूरी तरह माफ नहीं कर सकता।
इस कोर्ट ने यह भी व्यवस्था दी कि धारा 18(एक) के तहत अपील का अधिकार दूसरे प्रावधान में निर्धारित शर्तों पर निर्भर करता है, जिसमें कहा गया है कि ऋणी व्यक्ति जब तक रक्षित ऋणदाता के दावे के अनुसार बकाये ऋण या डीआरटी द्वारा निर्धारित ऋण राशि (दोनों में से जो भी कम हो) का 50 फीसदी जमा नहीं कर देता तब तक उसकी अपील नहीं सुनी जायेगी। तीसरा प्रावधान डीआरएटी को यह अधिकार देता है कि वह कारण दर्ज करने के बाद प्री-डिपोजिट राशि को 25 फीसदी तक कम कर सकता है।"
बेंच ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए कहा कि एक गारंटर या ऋण पुनर्भुगतान को सुरक्षित करने के लिए अपनी सम्पत्ति रेहन (बंधक) रखने वाला व्यक्ति भी ऋणी के रूप में एक ही पायदान पर खड़ा है और यदि वह अपील दायर करना चाहता है तो उसे भी सरफेसी कानून की धारा 18 की शर्तोँ का पालन करना होगा।
केस नाम : यूनियन बैँक ऑफ इंडिया बनाम रजत इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड
केस नं. सिविल अपील नं. 1902/2020
कोरम : न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस
वकील : एडवोकेट ओ. पी. गग्गर और सीनियर एडवोकेट विक्रम चौधरी
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