दिवालिया घोषित करने वाली कंपनी के ख़िलाफ़ NI एक्ट की धारा 138 के तहत कार्रवाई पर रोक लगाई जा सकती है?

Update: 2020-02-22 02:52 GMT

Supreme Court of India

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने अटर्नी जनरल को उस याचिका पर नोटिस भेजा है जिसमें नेगोशिएबल इंस्ट्रुमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 138 के तहत ख़ुद को दिवालिया घोषित करने वाली कंपनी के ख़िलाफ़ कार्रवाई पर रोक लगाने की मांग की गई है।

बीएसआई लिमिटेड एवं अन्य बनाम गिफ़्ट होल्डिंग्स प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य के मामले पर भरोसा करते हुए याचिकाकर्ता कंपनी के वक़ील ने कहा कि चूंकि, राष्ट्रीय कंपनी क़ानून अधिकरण (एनसीएलटी) की चेन्नई की एक खंडपीठ ने 10 जुलाई 2017 को एक आदेश के द्वारा रोक लगा दी थी इसलिए धारा 138 के तहत जारी वैधानिक नोटिस पर रोक लग जाती है।

याचिकाकर्ता के वक़ील ने एनसीएलटी के आदेश को उद्धृत करते हुए कहा कि जब तक भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता कोड (Insolvency and Bankruptcy Code) की धारा 14 के तहत कोर्पोरेट इंसोलवेंसी रेज़लूशन प्रक्रिया पूरी नहीं कर ली जाती है, इन बातों पर रोक लगा दी जानी चाहिए।

"(a) मामले की सुनवाई या लंबित मामले की सुनवाई या निगमित ऋण प्राप्तकर्ता के ख़िलाफ़ किसी क़ानूनी अदालत, अधिकरण, मध्यस्थता पैनल या अन्य अथॉरिटी में कोई कार्रवाई।

(b) किसी निगमित क़र्ज़दार का अपनी किसी संपत्ति या क़ानूनी अधिकारों या उसमें लाभकारी हितों के स्थानांतरण, रोक, अलग करना या उसको निपटाना।

(c) SARFAESI Act, 2002 सहित किसी निगमित क़र्ज़दार द्वारा अपनी परिसंपत्ति को लेकर किसी भी तरह की सेक्योरिटी इंट्रेस्ट पर रोक लगाने, उसकी रिकवरी को लेकर किसी तरह की कार्रवाई।

(d) अगर कोई संपत्ति किसी कोर्पोरेट क़र्ज़दार के क़ब्ज़े में है तो उस संपत्ति की उसके मालिक या उसे किराए पर लगानेवाले द्वारा रिकवरी।

उपरोक्त को देखते हुए याचिकाकर्ता कंपनी के वक़ील ने कहा कि चूँकि नेगोशिएबल इंस्ट्रुमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 138 के तहत शिकायत भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता कोड (Insolvency and Bankruptcy Code)की धारा 14 के तहत रोक लगाए जाने की सूचना के जारी होने के बाद दर्ज की गई थी, कंपनी चेक से उस राशि को नहीं चुका सकती थी।

पीठ ने इस मामले पर ग़ौर करना उचित समझा कि क्या वाक़ई इस प्रक्रिया पर रोक लगाई जा सकती है कि नहीं और इसीलिए भारत के अटर्नी जनरल को इस बारे में नोटिस जारी किया।

"जिस तरह की स्थिति बनी है, हमें अटर्नी जनरल को नोटिस जारी करना उचित लगा ताक वह अगले मौक़े पर कोई क़ानून अधिकारी अदालत की मदद कर सके।"

याचिकाकर्ता कंपनी ने मद्रास हाईकोर्ट से भी इसी तरह की अपील की थी जहां न्यायमूर्ति जीके इलाथीरैयन ने याचिका ठुकरा दी थी। यह कहा गया कि Negotiable Instruments Act की धारा 138 एक पीनल प्रावधान है जो अदालत को यह अधिकार देता है कि वह जेल में डालने या जुर्माना लागाने का आदेश पास करे।

अदालत ने कहा कि उपरोक्त प्रावधान से लगता है कि रोक के तहत आपराधिक प्रक्रिया नहीं आती है और इसलिए याचिकाकर्ता को Insolvency and Bankruptcy Code की धारा 14 के तहत संरक्षण नहीं मिल सकता।

आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




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