उपयुक्त संतुष्टि के बिना डीएनए टेस्ट का आदेश नहीं दिया जा सकता, पढ़ें सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट
आदेश को रद्द करते हुए पीठ ने यह कहा,"पुलिस अधिकारियों ने इस निष्कर्ष पर छलांग लगा दी कि मामले में डीएनए परीक्षण किया जाना चाहिए। पुलिस अधिकारियों द्वारा पर्याप्त जांच किए बिना डीएनए परीक्षण के संचालन के लिए अनुरोध करना जल्दबाजी थी।"
सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा है कि डीएनए परीक्षण का आदेश परीक्षण की आवश्यकता के लिए उचित संतुष्टि हो जाने के बाद ही दिया जा सकता है । सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि डीएनए टेस्ट की आवश्यकता के लिए उपयुक्त संतुष्टि के बिना डीएनए टेस्ट का आदेश नहीं दिया जा सकता।
क्या था यह मामला
दरअसल इस मामले में [काठी डेविड राजू बनाम आंध्र प्रदेश राज्य] आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 465, 468, 471 और 420 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी, जिसमें यह आरोप लगाया गया था कि उसने फर्जी जाति प्रमाण पत्र प्राप्त किया था। अदालत ने आरोपी, उसकी मां और दो भाइयों का डीएनए परीक्षण कराने के लिए दायर आवेदन को अनुमति दी। उच्च न्यायालय ने आदेश को रद्द करने से इनकार कर दिया था।
आरोपी पक्ष की ओर से दिया गया तर्क एवं पीठ का विचार
शीर्ष अदालत के सामने आरोपियों की ओर से यह तर्क दिया गया था कि जांच अधिकारियों ने जांच पूरी नहीं की है और चलती-फिरती जांच के रूप में उन्हें डीएनए परीक्षण करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। इस संदर्भ में न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ ने यह कहा :
"किसी उपयुक्त मामले में डीएनए टेस्ट कराने के लिए न्यायालय की अनुमति लेने के पुलिस अधिकारियों के अधिकार का कोई विवाद नहीं हो सकता। वर्तमान मामले में एफआईआर में अपीलकर्ता द्वारा अपना नाम और मां- पिता का नाम बदलकर गलत तरीके से जाति प्रमाण पत्र प्राप्त करने का आरोप लगाया गया है। आदेश में खुद ही यह नोटिस किया गया है कि जांच अभी पूरी नहीं हुई है और तथ्य साक्ष्य एकत्र किए जाने बाकी हैं। बिना साक्ष्य एकत्र किए या पर्याप्त जांच सामग्री पर संतुष्ट हुए बिना पुलिस अधिकारियों ने डीएनए परीक्षण के लिए अनुरोध किया है, जो कि एक व्यक्ति, उसकी मां और भाइयों के खिलाफ चलती- फिरती जांच के अलावा कुछ भी नहीं है। यह एक गंभीर मामला है जिसे इस तरह के परीक्षण की आवश्यकता के लिए उपयुक्त संतुष्टि के बिना हल्के ढंग से नहीं लेना चाहिए।"
"किसी ठोस जांच के अभाव में डीएनए परीक्षण की मांग उचित नहीं"
पीठ ने यह कहा कि यद्यपि सीआरपीसी की धारा 53 पुलिस अधिकारियों को एक व्यक्ति की जांच करने के लिए चिकित्सा जांच का अनुरोध करने का अधिकार देता है, लेकिन कोई ठोस जांच किए बिना इसकी मांग नहीं की जा सकती है। आदेश को रद्द करते हुए पीठ ने यह कहा:
"पुलिस अधिकारियों ने इस निष्कर्ष पर छलांग लगा दी कि मामले में डीएनए परीक्षण किया जाना चाहिए। पुलिस अधिकारियों द्वारा पर्याप्त जांच किए बिना डीएनए परीक्षण के संचालन के लिए अनुरोध करना जल्दबाजी थी।"
मामले का निपटारा करते हुए पीठ ने यह स्पष्ट किया कि यह न्यायालय के लिए खुला रहेगा कि वह इस तरह का कोई भी निर्णय लेने के लिए रिकॉर्ड पर पर्याप्त सामग्री होने पर डीएनए परीक्षण के अनुरोध पर विचार करे।