अयोध्या विवाद में सुप्रीम कोर्ट का फैसला , विवादित स्थल पर मंदिर बनाने का आदेश, मुस्लिम पक्ष को अलग ज़मीन
सुप्रीम कोर्ट शनिवार को अयोध्या बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में बहुप्रतीक्षित फैसला सुना दिया। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अदालत ने शनिवार को फैसला सुनाया और कहा कि विवादित ढांचा पूरी तरह से हिंदू पक्ष को दिया जाता है , जबकि मुसलिम पक्ष को अलग से मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ ज़मीन देने का आदेश दिया।
अदालत ने निर्मोही अखाड़ा और शिया पक्ष के भूमि पर दावों को खारिज कर दिया। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सालों से चले आ रहे विवाद का निपटान कर दिया। अदालत ने यह भी कहा कि मस्जिद के निर्माण के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ का एक वैकल्पिक भूखंड आवंटित किया जाता है। न्यायालय ने कहा कि 1992 में बाबरी मस्जिद का विनाश कानून का उल्लंघन था।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को तीन महीनों के भीतर मंदिर निर्माण के लिए ट्र्स्ट बनाने का निर्देश दिया।
सीजेआई रंजन गोगोई, जस्टिस बोबडे, चंद्रचूड़, अशोक भूषण और अब्दुल नजीर की पीठ ने फैसला सुनाने के लिए शनिवार को विशेष सीटिंग की और फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने चालीस दिन की मैराथन सुनवाई के बाद मामले में 16 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
फैसले से प्रमुख बिंदु।
अनुमान के रूप में एएसआई रिपोर्ट के निष्कर्षों को अलग नहीं किया जा सकता ।
एएसआई की रिपोर्ट बताती है कि बाबरी मस्जिद किसी खाली पड़ी जमीन पर नहीं बनाई गई थी। अंतर्निहित संरचना इस्लामिक मूल की नहीं थी।
हिंदुओं का विश्वास है कि यह स्थान भगवान राम का जन्म स्थान है।
राम जन्मभूमि का कोई निर्णायक व्यक्तित्व नहीं है। लेकिन राम लल्ला, देवता का न्यायिक व्यक्तित्व है।
सुन्नी वक्फ बोर्ड द्वारा मुकदमा बनाए रखा जा सकता है और सीमा से रोक नहीं है।
सुन्नी वक्फ बोर्ड प्रतिकूल कब्जा साबित नहीं कर पाया है। यह दिखाने के लिए सबूत हैं कि हिंदू 1857 से पहले परिसर में आए थे।