डिजिटल अरेस्ट घोटाला | सुप्रीम कोर्ट का कड़ा कदम, 73 वर्षीय महिला AoR को ठगने वाले आरोपियों की जमानत पर रोक

Update: 2025-11-17 10:41 GMT

'डिजिटल अरेस्ट' घोटालों पर स्वतः संज्ञान (suo motu) लिए गए मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आज 73 वर्षीय महिला एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड (AoR) को ठगने के आरोपियों की जेल से रिहाई पर रोक लगा दी।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमल्य बागची की खंडपीठ ने यह आदेश तब पारित किया जब AoR विपिन नायर ने SCAORA की इंटरवेंशन अर्जी का उल्लेख करते हुए महिला AoR के साथ हुए पूरे घटनाक्रम को कोर्ट के सामने रखा।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने विशेष पीठ में अपनी व्यस्तता के कारण स्थगन की मांग की, लेकिन उन्होंने SCAORA की इंटरवेंशन का समर्थन किया। SG ने बताया कि उन्होंने स्वयं पीड़ित AoR से बातचीत की थी और उनकी पीड़ा को समझा है।

नायर द्वारा 'डिजिटल अरेस्ट' मामलों में खामियों और आवश्यक सिफारिशों का उल्लेख करने के बाद, कोर्ट ने SCAORA की अर्जी स्वीकार कर ली। जब यह बताया गया कि 90 दिन की अवधि पूरी होने के कारण आरोपी जल्द रिहा हो सकते हैं, तब खंडपीठ ने तुरंत आदेश पारित करते हुए उनकी रिहाई पर रोक लगा दी।

कोर्ट ने निर्देश दिया, “आरोपियों को किसी भी अदालत से जमानत नहीं दी जाएगी, जब तक कि जांच तार्किक निष्कर्ष तक न पहुंचे। यदि उन्हें किसी राहत की आवश्यकता है, तो वे सीधे सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं।”

पृष्ठभूमि: सुप्रीम कोर्ट ने क्यों लिया था स्वतः संज्ञान?

17 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में बढ़ रहे “डिजिटल अरेस्ट” घोटालों पर स्वतः संज्ञान लिया था। ये वे मामले हैं जिनमें ठग खुद को पुलिस अधिकारी, CBI, NIA या न्यायिक अधिकारी बताकर लोगों—विशेष रूप से बुजुर्गों—से करोड़ों रुपये ठगते हैं।

इस कार्रवाई की शुरुआत 73 वर्षीय अंबाला निवासी महिला की शिकायत से हुई, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि ठगों ने फर्जी सुप्रीम कोर्ट आदेश दिखाकर उन्हें ऑनलाइन “डिजिटल अरेस्ट” में रखा और उनसे 1 करोड़ रुपये से अधिक वसूल लिए।

महिला ने अपनी शिकायत सीधे तत्कालीन CJI बी.आर. गवई को भेजी थी, जिसमें कहा गया कि ठगों ने पूर्व CJI संजीव खन्ना के नाम का जाली आदेश दिखाया था।

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने “In Re: Victims of Digital Arrest Related to Forged Documents” शीर्षक से स्वतः संज्ञान मामला दर्ज किया।

जस्टिस सूर्यकांत की खंडपीठ ने कहा कि:

“न्यायालयों के नाम, मोहर और अधिकार का दुरुपयोग तथा फर्जी न्यायिक आदेश तैयार करना अत्यंत गंभीर अपराध है। यह सार्वजनिक विश्वास और विधि के शासन पर सीधा प्रहार है।”

खंडपीठ ने यह भी कहा कि ऐसे अपराधों को साधारण धोखाधड़ी या साइबर अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।

केंद्र, राज्यों और CBI को सख्त कार्रवाई के निर्देश

कोर्ट ने कहा कि पूरे देश में इस तरह के घोटालों का नेटवर्क फैला हुआ है, जिसे उजागर करने के लिए केंद्र और राज्य पुलिस के बीच समन्वित कार्रवाई जरूरी है।

सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किए—

• गृह मंत्रालय (भारत सरकार)

• सीबीआई निदेशक

• हरियाणा सरकार

• एसपी साइबर क्राइम, अंबाला

साथ ही, भारत के अटॉर्नी जनरल से भी इस मामले में सहायता माँगी गई।

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