[दिल्ली प्रदूषण] 'मीडिया में मेरे खिलाफ गलत बयान चलाया जा रहा कि मैंने पराली जलाने पर कोर्ट को गुमराह किया': सुप्रीम कोर्ट में सॉलिसिटर जनरल ने बताया
सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली के बिगड़ते वायु प्रदूषण से संबंधित मामले की सुनवाई में भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बुधवार को बताया कि वायु प्रदूषण में पराली जलाने में योगदान के बारे में सोमवार को दिए गए उनके बयान को मीडिया में गलत तरीके से चलाया गया। इस संबंध में उनके खिलाफ "गैर जिम्मेदाराना और भद्दे बयान" दिए गए।
मुख्य न्यायाधीश एनवी रमाना के नेतृत्व वाली पीठ से सॉलिसिटर जनरल ने कहा,
"मुझे शुरुआत में ही कुछ कहना है। मैंने टेलीविजन मीडिया पर अपने खिलाफ कुछ गैर-जिम्मेदार और भद्दे बयान सुने कि मैंने पराली जलाने पर कोर्ट को गुमराह किया।"
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि कोर्ट को बिलकुल भी गुमराह नहीं किया गया।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा,
"उस दिन मुझे याद है कि जब मैंने 4% का आंकड़ा बताया था (जैसा कि केंद्र के हलफनामे में पराली जलाने के योगदान के बारे में बताया गया है), विकास सिंह ने बताया कि हलफनामे के अनुलग्नक में यह आंकड़ा 35% है। हम बिल्कुल भी गुमराह नहीं थे।"
भारत के मुख्य न्यायाधीश ने एसजी से कहा,
"मैंने आपसे बार-बार कहा है कि जब आप किसी सार्वजनिक पद पर होते हैं तो आपको इस प्रकार की आलोचना का सामना करना पड़ता है।"
इसके बाद एसजी ने अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए केंद्र सरकार के हलफनामे को पढ़कर सुनाया। उन्होंने कहा कि साल भर में पराली जलाने का कुल योगदान कम हो सकता है लेकिन अक्टूबर-नवंबर महीनों के दौरान इसका योगदान बढ़ जाता है।
एसजी ने स्पष्ट किया,
"मैंने कहा कि कुछ कारक साल भर में योगदान करते हैं और कुछ सीमित समय के लिए जैसे कि पड़ोसी राज्यों में दो महीने तक पराली जलाना। इन महीनों के दौरान एनसीआर की दिशा में हवा की गति भी बढ़ी है...मैंने यह भी कहा कि दिवाली के बाद आग और पराली जलाने की घटनाओं में वृद्धि हुई है। पराली जलाने को कम करने के लिए प्रयास करने की आवश्यकता है, क्योंकि यह 2 महीने में 35-40 प्रतिशत हो जाता है।"
सॉलिसिटर जनरल ने कहा,
"ऐसा अनुमान लगाया गया जैसे केंद्र सरकार ने चुनावों (पंजाब में आगामी विधानसभा चुनाव) के कारण 4% (पराली जलाने के योगदान के रूप में) कहा था।"
एसजी ने कहा,
"एक कानून अधिकारी के रूप में मैं मीडिया के पास नहीं जा सकता और अदालत ही एकमात्र मंच है जिसे मुझे स्पष्ट करना है।"
याचिकाकर्ता आदित्य दुबे की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने प्रस्तुत किया कि पिछले दिनों एसजी द्वारा एक मौखिक बयान दिया गया कि पराली जलाने का योगदान 10% से कम है।
सिंह ने कहा,
"एक मौखिक बयान दिया गया कि 10% से भी कम पराली जलाई जा रही है..."
भारत के मुख्य न्यायाधीश ने सिंह से कहा कि वह "मुद्दे को मोड़ें" नहीं।
सीजेआई ने कहा,
"यह सामान्य ज्ञान की बात है ... और इन दो महीनों में इन मामलों (पराली जलाने) में वृद्धि हुई है।"
दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ अभिषेक मनु सिंघवी ने बताया कि एक अध्ययन में प्रदूषण में पराली जलाने का योगदान 36 प्रतिशत के करीब होने का अनुमान है।
डॉ सिंघवी ने कहा,
"केंद्र सरकार के एक पेपर में कहा गया कि यह 0 से 58 प्रतिशत तक भिन्न होता है। संभवतः मेहता ने चार या छह महीने का औसत लिया है।"
डॉ सिंघवी ने आगे कहा,
"यह कहा गया कि अगर पराली जलाना 3-4% रहा है तो इसे संबोधित करने की आवश्यकता नहीं है। हम कहना चाहते हैं कि यह एक कारण है।"
भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि न्यायालय ने कहा कि वह किसानों को दंडित नहीं करना चाहता है। उन्होंने सुझाव दिया कि उन्हें पराली जलाने से रोकने के लिए राजी किया जाना चाहिए।
सीजेआई ने कहा,
"हम किसानों को दंडित नहीं करना चाहते। हमने राज्यों से किसानों को पराली न जलाने के लिए मनाने का अनुरोध किया है। आप इसे बार-बार क्यों उठा रहे हैं?"
सीजेआई ने यह भी कहा कि मीडिया में बहस "प्रदूषण" को बढ़ा रही है।
सीजेआई ने जोड़ा,
"आप कुछ मुद्दे का उपयोग करना चाहते हैं, हमें निरीक्षण करना। फिर आप इसे विवादास्पद बनाना चाहते हैं और बाद में केवल एक-दूसरे को दोष देना रह जाएगा। टीवी में बहस सभी की तुलना में अधिक प्रदूषण पैदा कर रही है। हर किसी का अपना एजेंडा है। वे कुछ भी नहीं समझते हैं।"
सीजेआई एनवी रमना, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ जनहित याचिका आदित्य दुबे बनाम भारत संघ और अन्य की सुनवाई कर रही है, जो राष्ट्रीय राजधानी की वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए तत्काल उपाय करने की मांग करती है।