दिल्ली हाईकोर्ट ने सुदर्शन टीवी के शो पर रोक लगाई, यूपीएससी में मुस्लिमों की भर्ती को बताया है जिहादी एजेंडा
दिल्ली हाईकोर्ट ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों द्वारा दायर याचिका पर सिविल सर्विसेज में कथित रूप से "मुस्लिमों की घुसपैठ" पर आधारित सुदर्शन न्यूज चैनल के ट्रेलर के प्रसारण पर रोक लगा दी है।
जस्टिस नवीन चावला की एकल पीठ ने तत्काल सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया है।
याचिकाकर्ताओं ने सुदर्शन न्यूज पर "बिंदास बोल" नामक कार्यक्रम के प्रस्तावित प्रसारण को प्रतिबंधित करने की मांग की थी, जिसे आज रात 8 बजे प्रसारित किया जाना है, जिसमें कथित तौर पर जामिया मिल्लिया इस्लामिया, इसके पूर्व छात्रों और मुस्लिम कम्युनिटी के खिलाफ नफरत फैलाने, हमला करने और उकसाने वाली सामग्री शामिल है।
याचिकाकर्ताओं के अनुसार, उन्होंने पत्रकार सुरेश चव्हाणके के शो का ट्रेलर देखा है, और यह आरोप लगाया है कि श्री चव्हाणके जामिया मिल्लिया इस्लामिया और मुस्लिम समुदाय के छात्रों के खिलाफ अभद्र भाषा का प्रयोग किया है और मानहानि की है।
कथित तौर पर, शो में दावा किया गया है कि सिविल सेवा परीक्षा 2020 में जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों की सफलता "मुसलमानों द्वारा सिविल सेवा में घुसपैठ करने की साजिश" का प्रतिनिधित्व करती है।
यह आरोप लगाया गया है कि श्री चव्हाणके ने "खुलकर लक्षित गैर-मुस्लिम दर्शकों को उकसाया है कि "जामिया मिल्लिया इस्लामिया के जिहादी या आतंकवादी जल्द ही कलेक्टर और सेक्रेटरी जैसे शक्तिशाली पदों पर आसीन होंगे।"
यह कहा गया है कि ट्रेलर के साथ प्रस्तावित प्रसारण केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम के तहत निर्धारित प्रोग्राम कोड का उल्लंघन करता है, जिसे केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम 1994 के साथ पढ़ा जाता है। प्रस्तावित प्रसारण और ट्रेलर में अभद्र भाषा और आपराधिक मानहानि भी होती है और यह भारतीय दंड संहिता की धारा 153A (1), 153B (1), 295A और 499 के तहत अपराध है।
याचिकाकर्ताओं ने कहा, "यदि प्रस्तावित प्रसारण को अनुमति दी जाती है, तो याचिकाकर्ताओं, अन्य छात्रों और जामिया मिल्लिया इस्लामिया के पूर्व छात्रों और 2020 में सिविल सेवा परीक्षा पास कर चुके छात्रों और मुस्लिम कम्युनिटी एक स्पष्ट और मौजूदा खतरे का सामना करना पड़ेगा, और यह उन्हें हिंसा के आसन्न खतरे के ख़िलाफ खुला छोड़ देगा, जिसमें लिंचिंग की आशंका भी शामिल है। यह अनुच्छेद 21 के तहत याचिकाकर्ताओं को प्रदत्त जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का खुला उल्लंघन होगा।"