'दसवीं अनुसूची' लागू होने के बाद दल-बदल के मामलों में 'काफी' कमी आई, इसमें संशोधन की जरूरत नहीं: केंद्र सरकार

Update: 2022-12-16 07:21 GMT

केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने गुरुवार को राज्यसभा को सूचित किया कि संविधान में दसवीं अनुसूची (दलबदल विरोधी कानून) के शामिल होने के बाद दल-बदल के मामलों में "काफी कमी" आई है और इसमें संशोधन करने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि इसमें किया गया संशोधन समय की कसौटी पर खरा उतरा है।

केंद्रीय कानून मंत्री भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राज्यसभा सांसद गणगुर चेलुवेगौड़ा चंद्रशेखर द्वारा उठाए गए सवाल का जवाब दे रहे थे कि क्या सरकार दलबदल विरोधी कानून को मजबूत करने की योजना बना रही है।

इसके अलावा सांसद चंद्रशेखर ने केंद्र से यह जवाब भी मांगा कि क्या सरकार को इस बात की जानकारी है कि देश भर में राज्य सरकारों का गिरना इतना आम हो गया है, अगर यह सही हो तो फिर इसके तथ्य और उसका विवरण क्या है।

इन सवालों के जवाब में केंद्रीय कानून मंत्री ने लिखित जवाब में कहा:

"दसवीं अनुसूची को संविधान में बावनवें (संशोधन) अधिनियम, 1985 द्वारा सम्मिलित किया गया। यह निर्वाचित सदस्यों की अयोग्यता के प्रावधानों को किसी अन्य राजनीतिक दल में दल-बदल के आधार पर निर्धारित करता है। हाल के दिनों में कार्यान्वयन के कारण दसवीं अनुसूची में दल-बदल के मामलों में काफी कमी आई है। चूंकि, दसवीं अनुसूची के प्रावधान समय और कई न्यायिक जांचों की कसौटी पर खरे उतरे हैं, इसलिए अब तक कोई संशोधन करने की कोई आवश्यकता प्रतीत नहीं होती है। "

उल्लेखनीय हैं कि दसवीं अनुसूची, जिसे आमतौर पर 'दल-बदल विरोधी कानून' के रूप में जाना जाता है, उसको संविधान [संविधान बावनवें (संशोधन) अधिनियम, 1985 द्वारा] में शामिल किया गया, ताकि विधायकों के व्यवहार को बदलने से रोका जा सके। इसका प्राथमिक उद्देश्य विधायकों को उनके चुनाव के बाद दल बदलने से हतोत्साहित करके सरकारों में स्थिरता लाना है।

इससे पहले इस साल जुलाई में भी केंद्रीय कानून मंत्री ने राज्यसभा को सूचित किया था कि दसवीं अनुसूची (दलबदल विरोधी कानून) के प्रावधानों में संशोधन करने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वे समय और न्यायिक जांच की कसौटी पर खरे उतरे हैं।

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