डिफ़ॉल्ट सजा को एक साथ चलाने के लिए निर्देशित नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2021-08-21 04:45 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक दोषी को दी गयी डिफ़ॉल्ट सजा को एक साथ चलाने के लिए निर्देशित नहीं किया जा सकता है।

इस मामले में, आरोपियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 120-बी के साथ पठित महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम की धारा 3(1)(ii),3(2) और 3(4) के तहत दोषी ठहराया गया था और उन्हें 7/10 साल की कारावास की सजा सुनाई गई थी।

प्रत्येक मामले में पांच-पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया और जुर्माना न देने पर अतिरिकत तीन साल के कठोर कारावास का आदेश दिया गया। हालांकि सभी सजाओं को एक साथ चलाने का आदेश दिया गया था।

अपील में, यह दलील दी गयी थी कि दोषियों को दी गई डिफॉल्ट सजा उनकी आर्थिक स्थिति को देखते हुए अधिक थी।

न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने इन तर्कों पर विचार करते हुए कहा कि 'शरद हीरू किलाम्बे बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य [(2018) 18 एससीसी 718]' मामले में यह व्यवस्था दी गयी थी कि डिफ़ॉल्ट सजा को एक साथ चलाने के लिए निर्देशित नहीं किया जा सकता है।

उक्त फैसले में, कोर्ट ने कहा था कि संहिता की धारा 31 और 427, जो मूल सजा से संबंधित हैं, कुछ मामलों में अदालतों को एक से अधिक सजा को एक साथ चलाने का निर्देश देने का अधिकार देती हैं।

लेकिन आईपीसी की धारा 64 और संहिता की धारा 30 में या "जुर्माने का भुगतान न करने पर कारावास" या डिफ़ॉल्ट सजा के संबंध में सजा देने की शक्ति से संबंधित किसी अन्य प्रावधान में ऐसा कोई विनिर्देश उपलब्ध नहीं है। इस पर ध्यान देते हुए, कोर्ट ने कहा कि डिफ़ॉल्ट सजा को एक साथ चलाने के लिए निर्देशित नहीं किया जा सकता है।

पीठ ने कहा कि शरद हीरू मामले में अदालत ने पाया था कि संबंधित आरोपी को तीन-तीन मामलों में तीन-तीन साल की डिफ़ॉल्ट सजा अत्यधिक पाई गई थी।

अदालत ने आदेश दिया,

"इसी तरह की स्थिति वर्तमान मामले में दिखती है और अपीलकर्ताओं की वित्तीय स्थिति भी उसी तर्ज पर है। इसलिए, हम वर्तमान अपीलकर्ताओं को समान राहत प्रदान करने के लिए आगे बढ़ते हैं और निर्देश देते हैं कि उपरोक्त तीन मामलों में प्रत्येक अपीलकर्ता को दी गई डिफ़ॉल्ट सजा इस तरह की गणना के संबंध में प्रत्येक मामले में एक वर्ष हो। यहां ऊपर बताए गए संशोधन को छोड़कर, दोषसिद्धि और मूल सजा के साथ-साथ जुर्माना सहित शेष निष्कर्ष अपरिवर्तित रहते हैं।"

केस: दुम्या उर्फ लखन उर्फ इनामदार बनाम महाराष्ट्र सरकार; क्रिमिनल अपील 818-820/2021

साइटेशन: एलएल 2021 एससी 396

कोरम: न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी

वकील: अपीलकर्ताओं के लिए एडवोकेट प्रवीण सातले, सरकार के लिए एडवोकेट राहुल चिटनिस

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