13 साल पुरानी आपराधिक अपील का निस्तारण करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली अपने आप में एक सजा हो सकती है"
सुप्रीम कोर्ट ने 13 साल पहले दायर एक आपराधिक अपील को खारिज करते हुए कहा कि हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली खुद भी एक सजा हो सकती है। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस ओका की पीठ ने कहा कि आरोप तय करने से पैदा हुई एक अपील 13 वर्षों तक सुप्रीम कोर्ट में लंबित रही।
अदालत एक ऐसे मामले की सुनवाई कर रही थी जिसमें एक छात्र ने स्कूल प्रबंधन द्वारा उसके खिलाफ शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्रवाई के बाद आत्महत्या कर ली थी। छात्र के पिता द्वारा दर्ज की गई शिकायत पर शिक्षक, विभागाध्यक्ष और प्रधानाचार्य के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया था कि उन्होंने आत्महत्या के लिए उकसाया था। ट्रायल कोर्ट ने वर्ष 2009 में अभियुक्तों के खिलाफ आरोप तय किए थे।
अभियुक्तों ने हाईकोर्ट के समक्ष आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दायर की, जिसे यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि कार्यवाही प्रारंभिक चरण में थी और इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं थी।
इस प्रकार आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसने वर्ष 2009 में अंतरिम रोक लगा दी।
पीठ ने 13 साल बाद अपील के निस्तारण के आदेश में कहा,
"वर्तमान अपीलों को इसलिए दायर किया गया था कि आदेश और अंतरिम रोक दहलीज पर दी गई थी। स्वाभाविक रूप से इस न्यायालय द्वारा रोक के मद्देनजर मुकदमा आगे नहीं बढ़ा। यह मामला पिछले तेरह वर्षों से उसी पर टिका हुआ है!",
पीठ ने आदेश में कहा,
"हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली स्वयं एक सजा हो सकती है! इस मामले में वास्तव में ऐसा ही हुआ है। एक प्रकरण में आत्महत्या के लिए उकसाने के मुद्दे पर 14 साल....एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति।"
पीठ ने अपील पर विचार किया और कहा कि शिकायत के आधार पर चार्जशीट को पढ़ने के बाद भी आत्महत्या के लिए उकसाने का कोई मामला नहीं बनता है। अंततः अपील को अभियुक्तों को छोड़ने की अनुमति दी गई।
केस डिटेलः वीपी सिंह बनाम पंजाब राज्य | 2022 लाइवलॉ (SC) 994 | Crl.A 103/2010 | 24 Nov 2022| 24 नवंबर 2022 | जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस ओका