सीपीआई (एम) की दिल्ली स्टेट कमेटी ने दक्षिणी दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में विध्वंस अभियान के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की दिल्ली स्टेट कमेटी ने हाल ही में दक्षिण दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में किए जा रहे 'अवैध' विध्वंस अभियान को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।
याचिका में अतिक्रमण हटाने के कार्यक्रम की आड़ में विध्वंस को 'अवैध', 'अमानवीय' और 'प्राकृतिक न्याय, क़ानून और संविधान के सिद्धांतों का पूर्ण उल्लंघन' बताया गया है।
दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में विध्वंस अभियान से संबंधित एक मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष 20.04.2022 को रात 10:45 बजे पेश किया गया।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एन वी रमाना की अध्यक्षता वाली पीठ ने जहांगीरपुरी में विशेष संयुक्त अतिक्रमण हटाने के कार्यक्रम के खिलाफ यथास्थिति का आदेश पारित किया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद, अधिकारियों ने कहा कि वे 'अतिक्रमण हटाने के अभियान' को तब तक बंद नहीं करेंगे जब तक कि उनके सामने अदालत का आदेश पेश नहीं किया जाता। दोपहर 12.25-12:30 बजे उक्त आदेश प्रस्तुत करने पर तोड़फोड़ रोक दी गई।
जस्टिस एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने 21.04.2022 को उक्त विध्वंस को चुनौती देने वाली रिट याचिका में नोटिस जारी किया और विध्वंस पर रोक लगा दी।
28.04.2022 को दक्षिणी दिल्ली नगर निगम (एसडीएमसी) ने पुलिस अधिकारियों को एसडीएमसी के तहत विभिन्न क्षेत्रों में अतिक्रमण हटाने के अभियान के लिए कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए अपने कर्मचारियों को आवश्यक पुलिस बल प्रदान करने के लिए एक पत्र जारी किया।
एसडीएमसी द्वारा 30.04.2022 और 13.05.2022 के बीच किए जाने वाले विध्वंस के लिए पुलिस बल की मांग करते हुए एक संशोधित पत्र लिखा गया था। 04.05.2022 को संबंधित अधिकारियों ने संघम विहार क्षेत्र के भवनों में बुलडोजर चला दिया। लेकिन कालिंदी कुंज क्षेत्र में पुलिस बल की कमी के कारण तोड़-फोड़ नहीं की गई। याचिकाकर्ता को संदेह है कि अधिकारी अब 09.05.2022 से 13.05.2022 तक शाहीनबाग और अन्य क्षेत्रों में इमारतों को ध्वस्त करने की योजना बना रहे हैं।
याचिका में आरोप लगाया गया कि दक्षिणी दिल्ली में किया जा रहा विध्वंस का वर्तमान दौर बिना किसी कारण बताओ नोटिस के है और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों, दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 की वैधानिक योजना और संविधान द्वारा संरक्षित अधिकारों का पूर्ण अपमान है। इमारतों के मालिकों और रहने वालों को वैधानिक नोटिस जारी नहीं किए गए हैं, जो ज्यादातर गरीब और हाशिए के समुदायों से संबंधित हैं।
संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत संरक्षित अधिकारों को पूरी तरह छोड़ते हुए मनमाने ढंग से विध्वंस किया जा रहा है। याचिका में दावा किया गया कि विध्वंस अभियान राजनीति से प्रेरित है और पूरी तरह से और स्पष्ट रूप से मनमाना है।
याचिका में दक्षिणी दिल्ली के इलाकों में किए जा रहे विध्वंस अभियान पर रोक लगाने की भी मांग की गई है।
याचिका एडवोकेट सुभाष चंद्रन के.आर. और एडवोकेट बीजू पी. रमन द्वारा दायर की गई।