कोर्ट अभियुक्त के वादे से मुकर जाने के कारण मेरिट के आधार पर उसकी जमानत याचिका सुनने से इनकार नहीं कर सकता : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2020-10-04 06:06 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोई कोर्ट एक अभियुक्त की जमानत याचिका मेरिट के आधार पर सुनने से सिर्फ इसलिए इनकार नहीं कर सकता कि वह वाद निपटारे के लिए पूर्व में किये गये प्रस्ताव पर अमल करने में विफल रहा था।

 न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने यह टिप्पणी करते हुए मद्रास हाईकोर्ट के उस फैसले को दरकिनार कर दिया, जिसमें अभियुक्त की जमानत याचिका इस आधार पर खारिज कर दी गयी थी कि वह वाद निपटारे के लिए किया गया अपना वायदा पूरा करने में विफल रहा था।

यह मामला (जी. सेल्वकुमार बनाम तमिलनाडु सरकार) विश्वास तोड़ने और धोखाधड़ी आदि के आरोपों के आधार पर दर्ज प्राथमिकी के कारण उत्पन्न हुआ था। अभियुक्त ने यह कहते हुए अंतरिम जमानत मांगी थी कि एक बार रिहा होने के बाद वह पैसे के भुगतान से संबंधित विवाद का निपटारा कर देगा।

अंतरिम जमानत पर रिहा होने के बाद अभियुक्त ने कोर्ट से कहा था कि उसे कुछ घरेलू परिस्थितियों के कारण पैसे का भुगतान कर पाने में कठिनाइयां हो रही है। हाईकोर्ट अभियुक्त के इस जवाब से संतुष्ट नहीं हुआ था।

हाईकोर्ट ने अभियुक्त की नियमित जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा था,

"अंतरिम जमानत पाने के बाद उसे (अभियुक्त को) अंडरटेकिंग का सम्मान करना चाहिए था। यदि अभियुक्त जानता था कि वह भुगतान कर पाने की स्थिति में नहीं होगा तो उसे नियमित जमानत के लिए अर्जी दाखिल करनी चाहिए थी।

अंतरिम जमानत पर बाहर आने के बाद याचिकाकर्ता कोर्ट के समक्ष दिये गये अंडरटेकिंग पर अमल किये बिना अंतरिम जमानत को नियमित जमानत में बदलने का अनुरोध नहीं कर सकता।"

हाईकोर्ट द्वारा नियमित जमानत अर्जी निरस्त किये जाने के खिलाफ अभियुक्त ने शीर्ष अदालत में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर की थी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट को मेरिट के आधार पर जमानत याचिका का निपटारा करना चाहिए था और इसे इस आधार पर खारिज नहीं करना चाहिए था कि उसने अपना वादा नहीं निभाया था।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

"किसी भी हाल में हाईकोर्ट को मेरिट के आधार पर जमानत याचिका सुननी चाहिए थी और इस आधार पर खारिज नहीं कर करनी चाहिए थी याचिकाकर्ता 18 फरवरी 2020 को हाईकोर्ट से किये गये वादे से मुकर गया है।"

बेंच ने कहा कि उसका इरादा मामले को हाईकोर्ट के पास फिर से विचार के लिए वापस भेजने का नहीं है।

बेंच ने अभियुक्त को ट्रायल कोर्ट को संतुष्ट करने वाली शर्तों के अधीन जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया। बेंच में न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी भी शामिल थे।

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आर बसंत और एडवोकेट ए. कार्तिक एवं सरत एस. जनार्दनन पेश हुए।

आदेश की प्रति डाउनलोड करें



Tags:    

Similar News