सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ लोकसभा और विधानसभा में एससी/एसटी और एंग्लो-इंडियन के लिए आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिका पर 1 नवंबर को सुनवाई करेगी

Update: 2022-09-07 06:18 GMT

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की संविधान पीठ लोकसभा और राज्य विधानमंडल में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति और एंग्लो इंडियन समुदायों को दिए गए राजनीतिक आरक्षण को संविधान द्वारा निर्धारित मूल दस वर्षों से आगे बढ़ाने की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर 1 नवंबर को सुनवाई करेगी।

मामला संविधान पीठ के समक्ष रखा गया था जिसमें जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस एम.आर. शाह, जस्टिस कृष्णा मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा शामिल हैं।

भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 330-334 एंग्लो इंडियन और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदायों के लिए संसद के साथ-साथ राज्य विधानमंडलों में राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षा उपाय हैं। यह अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति समुदायों के लिए लोकसभा और विधानसभाओं में सीटों के आरक्षण और एंग्लो इंडियन के लिए नामांकन का प्रावधान करता है। आरक्षण और नामांकन, दोनों पर शुरू में 10 साल के लिए विचार किया गया था। हालांकि, यह देखते हुए कि उक्त समुदायों की सामाजिक स्थिति में सुधार नहीं हुआ था और इसलिए प्रत्येक 10 साल की समाप्ति के बाद विस्तार दिया गया था। पिछला विस्तार संविधान (104वां संशोधन अधिनियम) 2020 के माध्यम से दिया गया था।

2020 में दिए गए विस्तार का लाभ केवल एससी / एसटी समुदायों को मिलता है, न कि एंग्लो इंडियन को। एससी/एसटी समुदायों के लिए 2020 में बढ़ाया गया आरक्षण 2030 तक जारी रहेगा।

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