दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में किए अपराधों की जांच के लिए सीबीआई को उस राज्य की सहमति की जरूरत नहीं, जहां अभियुक्त कार्यरत होः सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेंट्रल ब्यूरो एजेंसी (सीबीआई) किसी अभियुक्त द्वारा किसी अन्य राज्य में किए गए अपराध की जांच के संबंध में, सबंधित राज्य की अनुमति के बिना, किसी केंद्र शासित प्रदेश में भी जांच कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक मामले में अभियुक्त ने सवाल उठाया था कि क्या बिहार सरकार के मामलों के संबंध में नियोजित लोक सेवकों के खिलाफ सीबीआई को मामला दर्ज का अधिकार है।
कथित तौर पर धोखाधड़ी के एक मामले में आरोपी अभियुक्त की तर्क था कि आईएएस ऑफिसर होने के कारण बिहार सरकार के मामलों के संबंध में, वह औरंगाबाद जिले में जिला मजिस्ट्रेट के रूप में कार्यरत था, और राज्य की पूर्व सहमति के बिना सीबीआई उसके खिलाफ जांच नहीं कर सकती है।
दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम की योजना की जांच करने के बाद जस्टिस एएम खानविलकर और दिनेश माहेश्वरी की पीठ कहा कि केंद्र शासित प्रदेशों के अंतर्गत निर्दिष्ट अपराधों और अन्य अपराधों की जांच के लिए विशेष पुलिस बल (डीएसपीई) को सहमति आवश्यक नहीं हो सकती है।
"ऐसे हो सकता है, भले ही दिए गए मामले में शामिल आरोपियों में से एक राज्य/स्थानीय निकाय / निगम, कंपनी या राज्य/ संस्थान द्वारा नियंत्रित या राज्य सरकार द्वारा वित्तीय सहायता प्राप्त कर चुके या प्राप्त कर रहे बैंक, जैसा कि मामला हो सकता है, के संबंध में किसी अन्य राज्य (केंद्र शासित प्रदेश के बाहर) में रह रहा हो या कार्यरत हो।
किसी भी अन्य दृष्टिकोण के लिए, विशेष पुलिस बल को आवश्यकता होगी कि वह यूनियन टेरीटरी के अंतर्गत निर्दिष्ट अपराध के संबंध में भी जांच के लिए, संबंधित राज्य से, सहमति की औपचारिकता का पालन कर सके, केवल इसलिए कि आकस्मिक स्थित जो कि संबंधित अपराध का हिस्सा, किसी अन्य राज्य में उत्पन्न हुई है और अपराध में शामिल अभियुक्त उस राज्य के मामलों के संबंध में वहीं रहता या कार्यरत है।
इस तरह की व्याख्या से बेतुकी स्थिति उत्पन्न होती है, खासकर जब 1946 अधिनियम पूरे भारत पर लागू होता है और 1946 अधिनियम की धारा 3 के तहत जारी अधिसूचना के संदर्भ में विशेष पुलिस बल का गठन केंद्र शासित प्रदेश के अंतर्गत निर्दिष्ट अपराधों की जांच के लिए एक विशेष उद्देश्य के के लिए किया गया है।"
कोर्ट ने एफआईआर की सामग्री पर ध्यान देते हुए कहा कि राज्य पुलिस के पास अपराध की जांच का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है, जैसा कि पंजीकृत है, और इसलिए इस तरह के अपराध के संबंध में राज्य की सहमति लेने की आवश्यकता नहीं है।
कोर्ट ने कहा:
"निर्विवाद रूप से, BRBCL का पंजीकृत कार्यालय केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली) के अधिकार क्षेत्र में है और कथित तौर पर दिल्ली में अपराध किया गया है, जिस कारण संज्ञान लेने का अधिकार क्षेत्र दिल्ली न्यायालय के पास होगा। इसे अन्य तरीके से देखें तो विचाराधीन अपराध बिहार राज्य के बाहर किया गया है। कथित अपराध की जांच अपीलकर्ता के कृत्यों के कारण जो कि उस राज्य का निवासी है बिहार राज्य के मामलों के संबंध में नियोजित है, संयोग से बिहार राज्य की सीमा के बाहर हो सकती है।
हालांकि, यह विशेष पुलिस बल (डीएसपीई) के दिल्ली में किए गए अपराध की जांच में बाधा नहीं बन सकती है और इसलिए पंजीकृत किया गया है और इसकी जांच की जा रही है। यदि यह राज्य के आधिकारिक रिकॉर्ड में हेरफेर और बिहार राज्य के अधिकारियों की संलिप्तता तक सीमित अपराध होता तो यह एक अलग मामला होता। अपीलकर्ता या बिहार राज्य का यह मामला नहीं है कि भारत सरकार के एक उपक्रम के साथ दिल्ली में फ्रॉड हुआ है, ( जिसका दिल्ली में पंजीकृत कार्यालय है) और इस अपराध जांच बिहार सरकार द्वारा की जा सकती है।
यदि राज्य पुलिस के पास विचाराधीन अपराध की जांच करने का अधिकार क्षेत्र नहीं है, जैसा कि पंजीकृत है, तो, इस तरह के अपराध के संबंध में राज्य की सहमति की भी जरूरत नहीं है।"
1996 के अधिसूचना प्रावधान पर विवाद के संबंध में पीठ ने कहा,
"वास्तव में, उक्त अधिसूचना में एक प्रावधान है, जो यह निर्धारित करता है कि यदि बिहार सरकार के मामलों के संबंध में नियोजित लोक सेवक का संबंध ऐसे अपराध से है, जिसकी विशेष पुलिस बल द्वारा जांच की जा रही है तो अधिसूचना के अनुसार, उस अधिकारी से पूछताछ के लिए राज्य सरकार की पूर्व सहमति प्राप्त करनी होगी। यह प्रावधान उन मामलों या अपराधों तक सीमित होना चाहिए जो बिहार राज्य की सीमा के भीतर किए गए हैं।
यदि निर्दिष्ट अपराध बिहार राज्य के बाहर किया गया है, जैसा कि दिल्ली में इस मामले में है, राज्य पुलिस के पास इस तरह के अपराध की जांच करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं होगा और जिस कारण से मामले की जांच के लिए राज्य की सहमति की आवश्यकता नहीं होगी। "
केस नं .: क्रिमिनल अपील नंबर 414 ऑफ 2020
केस टाइटल: कंवल तनुज बनाम बिहार राज्य
कोरम: जस्टिस एएम खानविलकर और दिनेश माहेश्वरी
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