न्याय में एकरूपता के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नीति की जरूरत: CJI का सुझाव

Update: 2025-11-27 08:28 GMT

चीफ़ जस्टिस सुर्यकांत ने बुधवार को कहा कि देशभर की अदालतों में न्यायिक दृष्टिकोण में एकरूपता और पूर्वानुमान को मजबूत करना समय की जरूरत है। संविधान दिवस पर सुप्रीम कोर्ट परिसर में आयोजित समारोह में उन्होंने कहा कि 25 हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की विभिन्न पीठों के कारण कई बार अनावश्यक भिन्नताएँ सामने आती हैं, जिन्हें कम किया जाना चाहिए।

CJI ने कहा कि न्याय व्यवस्था को एक "सिंफ़नी" की तरह काम करना चाहिए—कई आवाज़ें और कई भाषाएँ, लेकिन एक समान संवैधानिक दिशा के साथ। उन्होंने एक राष्ट्रीय न्यायिक नीति बनाने का सुझाव दिया, जिससे सभी न्यायालयों में स्पष्टता और स्थिरता आ सके।

चीफ़ जस्टिस ने यह भी स्वीकार किया कि न्याय तक पहुँच अब भी लाखों लोगों के लिए कठिन है। उन्होंने कहा कि खर्च, भाषा, दूरी और देरी जैसे कारक आम लोगों के लिए बड़ी बाधाएँ बने हुए हैं। उनका कहना था कि अधिकार तभी सार्थक हैं जब उन्हें लागू करने के प्रभावी उपाय भी उपलब्ध हों।

उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को इस अंतर को पाटने के लिए भौतिक ढांचे के साथ-साथ तकनीकी और मानव संसाधन आधारित प्रणालियों को भी मजबूत करना होगा। CJI ने मध्यस्थता को आधुनिक न्याय दर्शन का महत्वपूर्ण हिस्सा बताया और कहा कि यह कम खर्चीला, सहभागी और मानवीय समाधान प्रदान करता है।

उन्होंने “Mediation for the Nation” अभियान का उल्लेख करते हुए बताया कि बड़ी संख्या में लोगों ने matrimonial, मोटर दुर्घटना और व्यावसायिक विवादों को निपटाने के लिए इसमें भाग लिया है। इसके साथ ही उन्होंने 40 घंटे से अधिक का ऑनलाइन मध्यस्थता प्रशिक्षण मॉड्यूल विकसित होने की जानकारी दी।

तकनीक को न्याय प्रणाली की "रीढ़" बताते हुए CJI ने कहा कि डिजिटल फाइलिंग, वर्चुअल सुनवाई, बहुभाषी प्लेटफॉर्म और आधुनिक केस-मैनेजमेंट टूल्स न्याय तक पहुँच को सरल बना रहे हैं। लेकिन उन्होंने चेताया कि तकनीकी नवाचारों में उन लोगों को पीछे नहीं छोड़ा जाना चाहिए जिनके पास संसाधन या इंटरनेट की सुविधा नहीं है।

अंतरराष्ट्रीय न्यायिक सहयोग का उल्लेख करते हुए CJI ने कहा कि वैश्विक कोर्ट प्रणाली एक-दूसरे से सीखकर अधिक मजबूत बन सकती है।

संविधान के 76 वर्षों की यात्रा को याद करते हुए उन्होंने कहा कि संविधान ने देश को स्थिरता के साथ परिवर्तन और स्पष्ट दिशा के साथ विकास का आधार दिया है।

समापन में CJI ने कहा कि संवैधानिक लोकतंत्र की असली ताकत केवल अधिकारों की घोषणा में नहीं, बल्कि उन्हें प्रभावी ढंग से सुरक्षित करने की क्षमता में निहित है।

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